बुधवार, 15 अगस्त 2012

जन्म समय क्या होता है व इस का निर्धारण कैसे करना चाहिए ?

जैसा कि सभी जानते हैं कि हमारे भारतीय ज्योतिष शास्त्र में जन्म समय को बहुत ही महतवपूर्ण माना गया है | इसी जन्म समय को सही मान कर ही भारतीय ज्योतिष शास्त्र अनुसार जन्म कुंडली का निर्माण किया जाता है | जन्म की तिथि के साथ-साथ जन्म समय का भी सही वक्त ज्ञात होना भारतीय ज्योतिष शास्त्र अनुसार बहुत ही जरूरी है | जो लोग भारतीय ज्योतिष शास्त्र को मानते हैं उन्हें इस बात की और अपनी तवज्जो जरूर देनी चाहिए | यदि कोई व्यक्ति अपने जन्म समय का सही ज्ञान नहीं रखता तो उस उसे अपने जन्म समय का सही ज्ञान प्राप्त नही है तो उस व्यक्ति के जन्म कुंडली सही प्रकार से निर्मित नहीं की जा सकती | कुंडली के सही निर्माण (बनाने) के लिए सही समय का ज्ञान होना अति महत्पूर्ण है | इसलिए अकांक्ष, रेखांश, जन्म तारीख का सही निर्धारण करने के पश्चात जन्म समय का सही सही निर्धारण करना चाहिए |

जैसे कि उपरोक्त पैराग्राफ में कहा गया है कि जन्म समय निर्धारित करना अति महत्वपूर्ण है, वैसे ही सबसे ज्यादा गलतियाँ जन्म समय को निर्धारिण करने में ही होती हैं | जन्म के समय को ठीक प्रकार से जानने के लिए हम प्राय: लेडी डाक्टर, दाई (मिडवाइफ), नर्स या बच्चे के जन्म के समय पर वहीँ पर उपस्थित महिला पर ही निर्भर होते हैं |
1 प्राय: गाँवों (ग्रामों) में बच्चे के जन्म समय (प्रसव के वक्त) दाई (मिडवाइफ) ही मौजूद होती है | ऐसी स्थिति में जन्म समय को जानना अत्यंत कठिन सा होता है | इन के पास प्राय: घडी नहीं होती | यदि हो तो ही वे समय की आवश्यकता को न समझते हुए इसे प्रमुखता नहीं देती | यदि समय नोट भी कर लिया जाए तो तो भी संशय बना रहता है कि जो समय नोट किया गया होगा वो सही समय होगा भी या नही क्यों कि ये जरूरी नहीं कि वो घडी सही समय दिखा रही हो |

2. गावों के बात तो छोड़िये प्राय: हस्पतालों में भी यही हालत है | प्राय: नर्स जन्म समय कुछ बताती है व उस हस्पताल के रिकार्ड में कुछ और समय दर्ज कर दिया जाता है व इसके पीछे तर्क ये दिया जाता है कि हमे सबसे पहले जच्चा-बच्चा की देखभाल की और ध्यान देना होता है | इतना कहकर बात को खत्म कर दिया जाता है |

इस तरह बच्चे के जन्म समय को अनुमानित समय के आधार पर ही बच्चे का जन्म समय लिख दिया जाता है | ऐसे जन्म समय पर जन्म कुंडली का निर्माण दुष्कर व भ्रम जैसा होता है व कुंडली निर्माण के कार्य को ग्रहों के चाल को निर्धारण की प्रक्रिया पर प्रमाणित करना कठिन हो जाता है |

शिशु के जन्म समय के विषय में प्राय: विवाद उत्पन्न होता रहता है कि शिशु के कौन से समय को जन्म समय माने जाए | इस संबंध में भी कई मत हैं | जन्म समय का निर्धारण कैसे किये जाए, इनमें से कुछ मन निम्नलिखित हैं :-
 1. पहला मत : जब शिशु का कोई भी अंग बाहर दिखे तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |
2. दूसरा मत : जब शिशु पूर्ण रूप से बाहर आ जाए तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |
3. तीसरा मत : जब शिशु बाहर आ कर रोना आरम्भ आकर दे या किसी प्रकार की आवाज करे तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |
4. चौथा मत : जब शिशु की नाल काटकर शिशु को अपनी माँ से पूर्णतया अलग कर दिया जाता है तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |

उपरोक्त चारों विकल्पों में से किसी भी के विकल्प को मान लेने से सही जन्म समय को जानने से भ्रम की स्थिति तो फिर भी बनी रहेगी | बहुत से विद्वान शिशु के रोने या आवाज किये जाने को शिशु का जन्म समय मानते हैं | यदि किसी कारणवश शिशु जन्म के उपरांत रोने की कोई आवाज उत्पन्न न करे तो नाल काटने के समय को जन्म समय मान लेना चाहिए | इसका मतलब तो ये हुआ कि शिशु के रोने की आवाज या शिशु के नाल काटने के समय में से जो भी पहले हो उस समय को जन्म समय मान लेना चाहिए | इस प्रकार इस मत को मान लेने से भी भ्रम की स्थिति पैदा होती है | क्योंकि समय तो एक ही होना चाहिए व वो समय सभी को मान्य होना चाहिए |

     उपरोक्त दोनों तथ्यों का मनन करने पर पता चलता है कि सबसे उपयुक्त व तर्कसंगत जन्म समय वो ही मानना चहिये जब शिशु को नाल से काट कर अलग किया जाता है | नाम से काटने के पश्चात् ही शिशु का स्वतंत्र अस्तित्व शुरू होता है | यही समय ही शिशु का जन्म समय हो सकता है | ज्यादातर विद्वान भी इसी मत पर सहमत हैं व इसी मत को मानते हैं व इस समय को जन्म समय मानते हुए कुंडली निर्मित करते हैं | इसी समय को ध्यानपूर्वक नोट करना चाहिए |

     कुंडली निर्माण के लिए इस प्रकार के शुद्ध जन्म समय की जरूरत होती है| जहाँ सही समय का ज्ञान होने से कुंडली निर्माण लाभकारी सिद्ध होया सकता है वहीं सही समय ज्ञात न होने से किसी भी कुंडली कर निर्माण परेशानी व मानसिक तनाव का कारण बन सकता है |

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