बुधवार, 1 अगस्त 2012

वरमाला

विवाह तब तक पूरा नहीं माना जाता जब तक वर-वधू एक दूसरे को वरमाला ना पहना दे। वरमाला प्रतीक है दो आत्माओं के मिलन का। जब श्रीराम ने सीता स्वयंवर में धनुष तोड़ा, तब सीता ने उन्हें वरमाला पहना कर पति रूप में स्वीकार किया। इसी तरह वरमाल के संबंध में कई प्रसंग हमारे धर्म ग्रंथों में भी दिए गए हैं। वरमाला फूलों और धागे से बनती है। फूल प्रतिक हैं खुशी, उत्साह, उमंग और सौंदर्य का, वहीं धागा इन सभी भावनाओं को सहेज कर रखने वाला माध्यम है। जिस तरह फूलों के मुरझाने पर भी धागा उन फूलों का साथ नहीं छोड़ता उसी तरह वरमाला नव दंपत्ति को भी यही संदेश देते हैं कि जैसे अच्छे समय में हम साथ-साथ रहे वैसे ही बुरे समय में भी एक-दूसरे के साथ कदम से कदम मिलाकर चले, किसी एक को अकेला ना छोड़े।

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