मंगलवार, 21 अगस्त 2012

तंत्र से लक्ष्मी प्राप्ति के प्रयोग

नागेश्वर तंत्रःनागेश्वर को प्रचलित भाषा में ‘नागकेसर’ कहते हैं। काली मिर्च के समान गोल, गेरु के रंग का यह गोल फूल घुण्डीनुमा होता है। पंसारियों की दूकान से आसानी से प्राप्त हो जाने वाली नागकेसर शीतलचीनी (कबाबचीनी) के आकार से मिलता-जुलता फूल होता है। यही यहाँ पर प्रयोजनीय माना गया है।१॰ किसी भी पूर्णिमा के दिन बुध की होरा में गोरोचन तथा नागकेसर खरीद कर ले आइए। बुध की होरा काल में ही कहीं से अशोक के वृक्ष का एक अखण्डित पत्ता तोड़कर लाइए। गोरोचन तथा नागकेसर को दही में घोलकर पत्ते पर एक स्वस्तिक चिह्न बनाएँ। जैसी भी श्रद्धाभाव से पत्ते पर बने स्वस्तिक की पूजा हो सके, करें। एक माह तक देवी-देवताओं को धूपबत्ती दिखलाने के साथ-साथ यह पत्ते को भी दिखाएँ। आगामी पूर्णिमा को बुध की होरा में यह प्रयोग पुनः दोहराएँ। अपने प्रयोग के लिये प्रत्येक पुर्णिमा को एक नया पत्ता तोड़कर लाना आवश्यक है। गोरोचन तथा नागकेसर एक बार ही बाजार से लेकर रख सकते हैं। पुराने पत्ते को प्रयोग के बाद कहीं भी घर से बाहर पवित्र स्थान में छोड़ दें।
२॰ किसी शुभ-मुहूर्त्त में नागकेसर लाकर घर में पवित्र स्थान पर रखलें। सोमवार के दिन शिवजी की पूजा करें और प्रतिमा पर चन्दन-पुष्प के साथ नागकेसर भी अर्पित करें। पूजनोपरान्त किसी मिठाई का नैवेद्य शिवजी को अर्पण करने के बाद यथासम्भव मन्त्र का भी जाप करें ‘ॐ नमः शिवाय’। उपवास भी करें। इस प्रकार २१ सोमवारों तक नियमित साधना करें। वैसे नागकेसर तो शिव-प्रतिमा पर नित्य ही अर्पित करें, किन्तु सोमवार को उपवास रखते हुए विशेष रुप से साधना करें। अन्तिम अर्थात् २१वें सोमवार को पूजा के पश्चात् किसी सुहागिनी-सपुत्रा-ब्राह्मणी को निमन्त्रण देकर बुलाऐं और उसे भोजन, वस्त्र, दान-दक्षिणा देकर आदर-पूर्वक विदा करें।इक्कीस सोमवारों तक नागकेसर-तन्त्र द्वारा की गई यह शिवजी की पूजा साधक को दरिद्रता के पाश से मुक्त करके धन-सम्पन्न बना देती है।
३॰ पीत वस्त्र में नागकेसर, हल्दी, सुपारी, एक सिक्का, ताँबे का टुकड़ा, चावल पोटली बना लें। इस पोटली को शिवजी के सम्मुख रखकर, धूप-दीप से पूजन करके सिद्ध कर लें फिर आलमारी, तिजोरी, भण्डार में कहीं भी रख दें। यह धनदायक प्रयोग है। इसके अतिरिक्त “नागकेसर” को प्रत्येक प्रयोग में “ॐ नमः शिवाय” से अभिमन्त्रित करना चाहिए।

४॰ कभी-कभी उधार में बहुत-सा पैसा फंस जाता है। ऐसी स्थिति में यह प्रयोग करके देखें-किसी भी शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रुई धुनने वाले से थोड़ी साफ रुई खरीदकर ले आएँ। उसकी चार बत्तियाँ बना लें। बत्तियों को जावित्री, नागकेसर तथा काले तिल (तीनों अल्प मात्रा में) थोड़ा-सा गीला करके सान लें। यह चारों बत्तियाँ किसी चौमुखे दिए में रख लें। रात्रि को सुविधानुसार किसी भी समय दिए में तिल का तेल डालकर चौराहे पर चुपके से रखकर जला दें। अपनी मध्यमा अंगुली का साफ पिन से एक बूँद खून निकाल कर दिए पर टपका दें। मन में सम्बन्धित व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम, जिनसे कार्य है, तीन बार पुकारें। मन में विश्वास जमाएं कि परिश्रम से अर्जित आपकी धनराशि आपको अवश्य ही मिलेगी। इसके बाद बिना पीछे मुड़े चुपचाप घर लौट आएँ। अगले दिन सर्वप्रथम एक रोटी पर गुड़ रखकर गाय को खिला दें। यदि गाय न मिल सके तो उसके नाम से निकालकर घर की छत पर रख दें।

५॰ जिस किसी पूर्णिमा को सोमवार हो उस दिन यह प्रयोग करें। कहीं से नागकेसर के फूल प्राप्त कर, किसी भी मन्दिर में शिवलिंग पर पाँच बिल्वपत्रों के साथ यह फूल भी चढ़ा दीजिए। इससे पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, गंगाजल, शहद, दही से धोकर पवित्र कर सकते हो। तो यथाशक्ति करें। यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक निरन्तर करते रहें। इस पूजा में एक दिन का भी नागा नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर आपकी पूजा खण्डित हो जायेगी। आपको फिर किसी पूर्णिमा के दिन पड़नेवाले सोमवार को प्रारम्भ करने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। इस एक माह के लगभग जैसी भी श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना बन पड़े, करें। भगवान को चढ़ाए प्रसाद के ग्रहण करने के उपरान्त ही कुछ खाएँ। अन्तिम दिन चढ़ाए गये फूल तथा बिल्वपत्रों में से एक अपने साथ श्रद्धाभाव से घर ले आएँ। इन्हें घर, दुकान, फैक्ट्री कहीं भी पैसे रखने के स्थान में रख दें। धन-सम्पदा अर्जित कराने में नागकेसर के पुष्प चमत्कारी प्रभाव दिखलाते हैं।

कुंडली मिलान


भारतीय ज्योतिष में विवाह शादी के लिए कुंडली मिलान के लिए गुण मिलान की विधि आज भी सबसे अधिक प्रचलित है। इस विधि के अनुसार वर-वधू की जन्म कुंडलियों में चन्द्रमा की स्थिति के आधार पर निम्नलिखित अष्टकूटों का मिलान किया जाता है।
1)    वर्ण
2)    वश्य
3)    तारा
4)    योनि
5)    ग्रह-मैत्री
6)    गण
7)    भकूट
8)    नाड़ी

उपरोक्त अष्टकूटों को क्रमश: एक से आठ तक गुण प्रदान किये जाते हैं, जैसे कि वर्ण को एक, नाड़ी को आठ तथा बाकी सबको इनके बीच में दो से सात गुण प्रदान किये जाते हैं। इन गुणों का कुल जोड़ 36 बनता है तथा इन्हीं 36 गुणों के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित किया जाता है। 36 में से जितने अधिक गुण मिलें, उतना ही अच्छा कुंडलियों का मिलान माना जाता है। 36 गुण मिलने पर उत्तम, 36 से 30 तक बहुत बढ़िया, 30 से 25 तक बढ़िया तथा 25 से 20 तक सामान्य मिलान माना जाता है। 20 से कम गुण मिलने पर कुंडलियों का मिलान शुभ नहीं माना जाता है। 


किन्तु व्यवहारिक रूप में गुण मिलान की यह विधि अपने आप में पूर्ण नहीं है तथा सिर्फ इसी विधि के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित कर देना उचित नहीं है। इस विधि के अनुसार वर-वधू की कुंडलियों में नवग्रहों में से सिर्फ चन्द्रमा की स्थिति ही देखी जाती है तथा बाकी के आठ ग्रहों के बारे में बिल्कुल भी विचार नहीं किया जाता जो किसी भी पक्ष से व्यवहारिक नहीं है क्योंकि नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह का अपना महत्त्व है तथा किसी भी एक ग्रह के आधार पर इतना महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया जा सकता। इस लिए गुण मिलान की यह विधि कुंडलियों के मिलान की विधि का एक हिस्सा तो हो सकती है लेकिन पूर्ण विधि नहीं। आइए अब विचार करें कि एक अच्छे ज्योतिषि को कुंडलियों के मिलान के समय किन पक्षों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
 

सबसे पहले एक अच्छे ज्योतिषि को यह देखना चाहिए कि क्या वर-वधू दोनों की कुंडलियों में सुखमय वैवाहिक जीवन के लक्ष्ण विद्यमान हैं या नहीं। उदाहरण के लिए अगर दोनों में से किसी एक कुंडली मे तलाक या वैध्वय का दोष विद्यमान है जो कि मांगलिक दोष, पित्र दोष या काल सर्प दोष जैसे किसी दोष की उपस्थिति के कारण बनता हो, तो बहुत अधिक संख्या में गुण मिलने के बावज़ूद भी कुंडलियों का मिलान पूरी तरह से अनुचित हो सकता है। इसके पश्चात वर तथा वधू दोनों की कुंडलियों में आयु की स्थिति, कमाने वाले पक्ष की भविष्य में आर्थिक सुदृढ़ता, दोनों कुंडलियों में संतान उत्पत्ति के योग, दोनों पक्षों के अच्छे स्वास्थय के योग तथा दोनों पक्षों का परस्पर शारीरिक तथा मानसिक सामंजस्य देखना चाहिए। उपरोक्त्त विष्यों पर विस्तृत विचार किए बिना कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित करना मेरे विचार से सर्वथा अनुचित है। इस लिए कुंडलियों के मिलान में दोनों कुंडलियों का सम्पूर्ण निरीक्षण करना अति अनिवार्य है तथा सिर्फ गुण मिलान के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित करने के परिणाम दुष्कर हो सकते हैं। 

 सिर्फ गुण मिलान की विधि से ही 25 से अधिक गुण मिलने के कारण वर-वधू की शादी करवा दी गई तथा कुंडली मिलान के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया गया जिसके परिणाम स्वरुप इनमें से बहुत से केसों में शादी के बाद पति पत्नि में बहुत तनाव रहा तथा कुछ केसों में तो तलाक और मुकद्दमें भी देखने को मिले। अगर 28-30 गुण मिलने के बाद भी तलाक, मुकद्दमें तथा वैधव्य जैसी परिस्थितियां देखने को मिलती हैं तो इसका सीधा सा मतलब निकलता है कि गुण मिलान की प्रचलित विधि सुखी वैवाहिक जीवन बताने के लिए अपने आप में न तो पूर्ण है तथा न ही सक्षम। इसलिए इस विधि को कुंडली मिलान की विधि का एक हिस्सा मानना चाहिए न कि अपने आप में एक सम्पूर्ण विधि।


भारतीय ज्योतिष में कुंडली मिलान के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की विधि में मिलाए जाने वाले अष्टकूटों में नाड़ी और भकूट को सबसे अधिक गुण प्रदान किए जाते हैं। नाड़ी को 8 तथा भकूट को 7 गुण प्रदान किए जाते हैं। इस तरह अष्टकूटों के इस मिलान में प्रदान किए जाने वाले 36 गुणों में से 15 गुण केवल इन दो कूटों अर्थात नाड़ी और भकूट के हिस्से में ही आ जाते हैं। इसी से गुण मिलान की विधि में इन दोनों के महत्व का पता चल जाता है। नाड़ी और भकूट दोनों को ही या तो सारे के सारे या फिर शून्य गुण प्रदान किए जाते हैं, अर्थात नाड़ी को 8 या 0 तथा भकूट को 7 या 0 अंक प्रदान किए जाते हैं। नाड़ी को 0 अंक मिलने की स्थिति में वर-वधू की कुंडलियों में नाड़ी दोष तथा भकूट को 0 अंक मिलने की स्थिति में वर-वधू की कुंडलियों में भकूट दोष बन जाता है। भारतीय ज्योतिष में प्रचलित धारणा के अनुसार इन दोनों दोषों को अत्यंत हानिकारक माना जाता है तथा ये दोनों दोष वर-वधू के वैवाहिक जीवन में अनेक तरह के कष्टों का कारण बन सकते हैं और वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु का कारण तक बन सकते हैं। तो आइए आज भारतीय ज्योतिष की एक प्रबल धारणा के अनुसार अति महत्वपूरण माने जाने वाले इन दोनों दोषों के बारे में चर्चा करते हैं।  


आइए सबसे पहले यह जान लें कि नाड़ी और भकूट दोष वास्तव में होते क्या हैं तथा ये दोनों दोष बनते कैसे हैं। नाड़ी दोष से शुरू करते हुए आइए सबसे पहले देखें कि नाड़ी नाम का यह कूट वास्तव में होता क्या है। नाड़ी तीन प्रकार की होती है, आदि नाड़ी, मध्या नाड़ी तथा अंत नाड़ी। प्रत्येक व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा की किसी नक्षत्र विशेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है। नक्षत्र संख्या में कुल 27 होते हैं तथा इनमें से किन्हीं 9 विशेष नक्षत्रों में चन्द्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है। उदाहरण के लिए :
 

चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की आदि नाड़ी होती है :
 

अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तर फाल्गुणी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा तथा पूर्व भाद्रपद।  


चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की मध्य नाड़ी होती है :
 

भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्व फाल्गुणी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा तथा उत्तर भाद्रपद।
 

चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की अंत नाड़ी होती है :
 

कृत्तिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाती, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती। 

 गुण मिलान करते समय यदि वर और वधू की नाड़ी अलग-अलग हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 8 अंक प्राप्त होते हैं, जैसे कि वर की आदि नाड़ी तथा वधू की नाड़ी मध्या अथवा अंत। किन्तु यदि वर और वधू की नाड़ी एक ही हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 0 अंक प्राप्त होते हैं तथा इसे नाड़ी दोष का नाम दिया जाता है। नाड़ी दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार वर-वधू दोनों की नाड़ी आदि होने की स्थिति में तलाक या अलगाव की प्रबल संभावना बनती है तथा वर-वधू दोनों की नाड़ी मध्य या अंत होने से वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु की प्रबल संभावना बनती है। नाड़ी दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है :

यदि वर-वधू दोनों का जन्म एक ही नक्षत्र के अलग-अलग चरणों में हुआ हो तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता।
 

यदि वर-वधू दोनों की जन्म राशि एक ही हो किन्तु नक्षत्र अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता।
 

यदि वर-वधू दोनों का जन्म नक्षत्र एक ही हो किन्तु जन्म राशियां अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता।
 

नाड़ी दोष के बारे में विस्तारपूर्वक जानने के बाद आइए अब देखें कि भकूट दोष क्या होता है। यदि वर-वधू की कुंडलियों में चन्द्रमा परस्पर 6-8, 9-5 या 12-2 राशियों में स्थित हों तो भकूट मिलान के 0 अंक माने जाते हैं तथा इसे भकूट दोष माना जाता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि वर की जन्म कुंडली में चन्द्रमा मेष राशि में स्थित हैं, अब :

यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा कन्या राशि में स्थित हैं तो इसे षड़-अष्टक भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर कन्या राशि छठे तथा कन्या राशि से गिनती करने पर मेष राशि आठवें स्थान पर आती है। 


यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा धनु राशि में स्थित हैं तो इसे नवम-पंचम भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर धनु राशि नवम तथा धनु राशि से गिनती करने पर मेष राशि पांचवे स्थान पर आती है। 


यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा मीन राशि में स्थित हैं तो इसे द्वादश-दो भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर मीन राशि बारहवें तथा मीन राशि से गिनती करने पर मेष राशि दूसरे स्थान पर आती है। 


भकूट दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार षड़-अष्टक भकूट दोष होने से वर-वधू में से एक की मृत्यु हो जाती है, नवम-पंचम भकूट दोष होने से दोनों को संतान पैदा करने में मुश्किल होती है या फिर सतान होती ही नहीं तथा द्वादश-दो भकूट दोष होने से वर-वधू को दरिद्रता का सामना करना पड़ता है। भकूट दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है :
 

यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो तो भकूट दोष खत्म हो जाता है। जैसे कि मेष-वृश्चिक तथा वृष-तुला राशियों के एक दूसरे से छठे-आठवें स्थान पर होने के बावजूद भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि मेष-वृश्चिक दोनों राशियों के स्वामी मंगल हैं तथा वृष-तुला दोनों राशियों के स्वामी शुक्र हैं। इसी प्रकार मकर-कुंभ राशियों के एक दूसरे से 12-2 स्थानों पर होने के बावजूद भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि इन दोनों राशियों के स्वामी शनि हैं।
 

यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों के स्वामी आपस में मित्र हैं तो भी भकूट दोष खत्म हो जाता है जैसे कि मीन-मेष तथा मेष-धनु में भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि इन दोनों ही उदाहरणों में राशियों के स्वामी गुरू तथा मंगल हैं जो कि आपसे में मित्र माने जाते हैं।
 

इसके अतिरिक्त अगर दोनो कुंडलियों में नाड़ी दोष न बनता हो, तो भकूट दोष के बनने के बावजूद भी इसका असर कम माना जाता है। 

 किन्तु इन दोषों के द्वारा बतायी गईं हानियां व्यवहारिक रूप से इतने बड़े पैमाने पर देखने में नहीं आतीं और न ही यह धारणाएं तर्कसंगत प्रतीत होती हैं। उदाहरण के लिए नाड़ी दोष लगभग 33 प्रतिशत कुंडलियों के मिलान में देखने में आता है कयोंकि कुल तीन नाड़ियों में से वर और वधू की नाड़ी एक होने की सभावना लगभग 33 प्रतिशत बनती है। इसी प्रकार की गणना भकूट दोष के विषय में भी करके यह तथ्य सामने आता है कि कुंडली मिलान की लगभग 50 से 60 प्रतिशत उदाहरणों में नाड़ी या भकूट दोष दोनों में से कोई एक अथवा दोनों ही उपस्थित होते हैं। और क्योंकि बिना कुंडली मिलाए विवाह करने वाले लोगों में से 50-60 प्रतिशत लोग ईन दोनों दोषों के कारण होने वाले भारी नुकसान नहीं उठा रहे इसलिए इन दोनों दोषों से होने वाली हानियों तथा इन दोनों दोषों की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। 

मेरे अपने अनुभव के अनुसार नाड़ी दोष तथा भकूट दोष अपने आप में दो लोगों के वैवाहिक जीवन में उपर बताई गईं विपत्तियां लाने में सक्षम नहीं हैं तथा इन दोषों और इनके परिणामों को कुंडली मिलान के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं के साथ ही जोड़ कर देखना चाहिए। नाड़ी दोष तथा भकूट दोष से होने वाले बुरे प्रभावों को ज्योतिष के विशेष उपायों से काफी हद तक कम किया जा सकता है।

शनिवार, 18 अगस्त 2012

भाद्रपद अधिक मास फल 2012


भारतीय कैलेण्डर चान्द्र मास पर आधारित होता है. जिस चान्द्र मास में सूर्य संक्रान्ति नहीं होती वह माह “अधिक मास” कहलाता है और जिस चान्द्र मास में दो संक्रान्तियों का संक्रमण हो रहा हो अर्थात एक ही चान्द्र मास में दो संक्रान्ति आ रही हों वह “क्षयमास” कहलाता है.  इस लेख में हम भाद्रपद अधिक मास की चर्चा करेगें. आम भाषा में अधिक मास को अधिमास, मलमास, पुरुषोत्तम मास आदि के नामों से जाना जाता है.
वर्ष 2012 में भाद्रपद माह में अधिकमास पड़ रहा है. इस वर्ष भाद्रपद अधिक मास की अवधि 18 अगस्त से 16 सितम्बर 2012 तक रहेगी.
एक सौर वर्ष में 365 दिन तथा 6 घंटे होते हैं और एक चान्द्र मास में 354 दिन तथा 9 घंटे होते हैं. हो सकता है कि सौर मास तथा चान्द्र मास में समीकरण स्थापित करने के लिए ही अधिकमास की रचना की गई हो. विद्वानों के अनुसार एक मल मास से दूसरे मल मास तक की अवधि 28 माह से लेकर 36 माह तक की हो सकती है. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हर तीसरे वर्ष में एक अधिकमास आता ही है. यदि इस अधिकमास की परिकल्पना नहीं की गई तो चांद्र मास का सारा सिस्टम ही बिगड़ जाएगा.
संवत 2069 अर्थात वर्ष 2012 में 18 अगस्त दिन शनिवार से 16 सितम्बर दिन रविवार की मध्य रात्रि तक अधिकमास का प्रभाव बना रहेगा.
माह के जिस दिन मलमास का आरंभ हो रहा हो उस दिन प्रात: स्नानादि कर्म से निवृत होकर भगवान सूर्य नारायण का पुष्प, अक्षत तथा लाल चंदन से पूजन करें. फिर शुद्ध घी, गेहूँ और गुड. के मिश्रण से 33 पूएँ बनाएँ. इन पूओं को कांसे के बर्तन में रखकर प्रतिदिन फल, वस्त्र, मिष्ठान और दक्षिणा समेत दान करें. आप यह दान अपनी सामर्थ्यानुसार ही करें. दान करते समय निम्न मंत्र का जाप करें :-
ऊँ विष्णु रूप: सहस्त्रांशु सर्वपाप प्रणाशन: । अपूपान्न प्रदानेन मम पापं व्यपोहतु ।
इस मंत्र के बाद भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हुए निम्न मंत्र बोलें :-
यस्य हस्ते गदाचक्रे गरुड़ोयस्य वाहनम । शंख करतले यस्य स मे विष्णु: प्रसीदतु ।
मलमास में कुछ नित्य कर्म, कुछ नैमित्तिक कर्म और कुछ काम्य कर्मों को निषिद्ध माना गया है. जैसे विवाह संस्कार, मुंडन संस्कार, नववधु का गृह प्रवेश, नव यज्ञोपवीत कर्म करना, नए वस्त्रों को धारण करना आदि कार्य इस मास में नहीं करने चाहिए. इसके अतिरिक्त नई गाड़ी खरीदना, बच्चे का नामकरण संस्कार करना, देव प्रतिष्ठा करना अर्थात मूर्ति स्थापना करना, कूआं, तालाब या बावड़ी आदि बनवाना, बाग अथवा बगीचे आदि भी इस मास में नहीं बनाए जाते.

काम्य व्रतों का आरंभ भी इस मास में नहीं किया जाता है. भूमि क्रय करना, सोना खरीदना, तुला या गाय आदि का दान करना भी वर्जित माना गया है. अष्टका श्राद्ध का संपादन भी निषेध माना गया है.  

जो काम काम्य कर्म अधिकमास से पहले ही आरंभ किए जा चुके हैं उन्हें इस माह में किया जा सकता हे. शुद्धमास में मृत व्यक्ति का प्रथम वार्षिक श्राद्ध किया जा सकता है. यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक बीमार है और रोग की निवृति के लिए रुद्र जपादि अनुष्ठान किया जा सकता है.

कपिल षष्ठी जैसे दुर्लभ योगों का प्रयोग, संतान जन्म के कृत्य, पितृ श्राद्ध, गर्भाधान, पुंसवन संस्कार तथा सीमांत संस्कार आदि किए जा सकते हैं. ऎसे संस्कार भी किए जा सकते हैं जो एक नियत अवधि में समाप्त हो रहे हों. इस मास में पराया अन्न और तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिए
जो व्यक्ति मलमास में पूरे माह व्रत का पालन करते हैं उन्हें पूरे माह भूमि पर ही सोना चाहिए. एक समय केवल सादा तथा सात्विक भोजन करना चाहिए. इस मास में व्रत रखते हुए भगवान पुरुषोत्तम अर्थात विष्णु जी का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए तथा मंत्र जाप करना चाहिए.  श्रीपुरुषोत्तम माहात्म्य की कथा का पठन अथवा श्रवण करना चाहिए. श्री रामायण का पाठ या रुद्राभिषेक का पाठ करना चाहिए. साथ ही श्रीविष्णु स्तोत्र का पाठ करना शुभ होता है.
मलमास के आरम्भ के दिन श्रद्धा भक्ति से व्रत तथा उपवास रखना चाहिए. इस दिन पूजा - पाठ का अत्यधिक माहात्म्य माना गया है. मलमास मे प्रारंभ के दिन दानादि शुभ कर्म करने का फल अत्यधिक मिलता है. जो व्यक्ति इस दिन व्रत तथा पूजा आदि कर्म करता है वह सीधा गोलोक में पहुंचता है और भगवान कृष्ण के चरणों में स्थान पाता है.
अधिकमास की समाप्ति पर स्नान, दान तथा जप आदि का अत्यधिक महत्व होता है. इस मास की समाप्ति पर व्रत का उद्यापन करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी श्रद्धानुसार दानादि करना चाहिए. इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह है कि मलमास माहात्म्य की कथा का पाठ श्रद्धापूर्वक प्रात: एक सुनिश्चित समय पर करना चाहिए.

इस मास में रामायण, गीता तथा अन्य धार्मिक व पौराणिक ग्रंथों के दान आदि का भी महत्व माना गया है. वस्त्रदान, अन्नदान, गुड़ और घी से बनी वस्तुओं का दान करना अत्यधिक शुभ माना गया है.

बुधवार, 15 अगस्त 2012

जन्म समय क्या होता है व इस का निर्धारण कैसे करना चाहिए ?

जैसा कि सभी जानते हैं कि हमारे भारतीय ज्योतिष शास्त्र में जन्म समय को बहुत ही महतवपूर्ण माना गया है | इसी जन्म समय को सही मान कर ही भारतीय ज्योतिष शास्त्र अनुसार जन्म कुंडली का निर्माण किया जाता है | जन्म की तिथि के साथ-साथ जन्म समय का भी सही वक्त ज्ञात होना भारतीय ज्योतिष शास्त्र अनुसार बहुत ही जरूरी है | जो लोग भारतीय ज्योतिष शास्त्र को मानते हैं उन्हें इस बात की और अपनी तवज्जो जरूर देनी चाहिए | यदि कोई व्यक्ति अपने जन्म समय का सही ज्ञान नहीं रखता तो उस उसे अपने जन्म समय का सही ज्ञान प्राप्त नही है तो उस व्यक्ति के जन्म कुंडली सही प्रकार से निर्मित नहीं की जा सकती | कुंडली के सही निर्माण (बनाने) के लिए सही समय का ज्ञान होना अति महत्पूर्ण है | इसलिए अकांक्ष, रेखांश, जन्म तारीख का सही निर्धारण करने के पश्चात जन्म समय का सही सही निर्धारण करना चाहिए |

जैसे कि उपरोक्त पैराग्राफ में कहा गया है कि जन्म समय निर्धारित करना अति महत्वपूर्ण है, वैसे ही सबसे ज्यादा गलतियाँ जन्म समय को निर्धारिण करने में ही होती हैं | जन्म के समय को ठीक प्रकार से जानने के लिए हम प्राय: लेडी डाक्टर, दाई (मिडवाइफ), नर्स या बच्चे के जन्म के समय पर वहीँ पर उपस्थित महिला पर ही निर्भर होते हैं |
1 प्राय: गाँवों (ग्रामों) में बच्चे के जन्म समय (प्रसव के वक्त) दाई (मिडवाइफ) ही मौजूद होती है | ऐसी स्थिति में जन्म समय को जानना अत्यंत कठिन सा होता है | इन के पास प्राय: घडी नहीं होती | यदि हो तो ही वे समय की आवश्यकता को न समझते हुए इसे प्रमुखता नहीं देती | यदि समय नोट भी कर लिया जाए तो तो भी संशय बना रहता है कि जो समय नोट किया गया होगा वो सही समय होगा भी या नही क्यों कि ये जरूरी नहीं कि वो घडी सही समय दिखा रही हो |

2. गावों के बात तो छोड़िये प्राय: हस्पतालों में भी यही हालत है | प्राय: नर्स जन्म समय कुछ बताती है व उस हस्पताल के रिकार्ड में कुछ और समय दर्ज कर दिया जाता है व इसके पीछे तर्क ये दिया जाता है कि हमे सबसे पहले जच्चा-बच्चा की देखभाल की और ध्यान देना होता है | इतना कहकर बात को खत्म कर दिया जाता है |

इस तरह बच्चे के जन्म समय को अनुमानित समय के आधार पर ही बच्चे का जन्म समय लिख दिया जाता है | ऐसे जन्म समय पर जन्म कुंडली का निर्माण दुष्कर व भ्रम जैसा होता है व कुंडली निर्माण के कार्य को ग्रहों के चाल को निर्धारण की प्रक्रिया पर प्रमाणित करना कठिन हो जाता है |

शिशु के जन्म समय के विषय में प्राय: विवाद उत्पन्न होता रहता है कि शिशु के कौन से समय को जन्म समय माने जाए | इस संबंध में भी कई मत हैं | जन्म समय का निर्धारण कैसे किये जाए, इनमें से कुछ मन निम्नलिखित हैं :-
 1. पहला मत : जब शिशु का कोई भी अंग बाहर दिखे तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |
2. दूसरा मत : जब शिशु पूर्ण रूप से बाहर आ जाए तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |
3. तीसरा मत : जब शिशु बाहर आ कर रोना आरम्भ आकर दे या किसी प्रकार की आवाज करे तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |
4. चौथा मत : जब शिशु की नाल काटकर शिशु को अपनी माँ से पूर्णतया अलग कर दिया जाता है तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |

उपरोक्त चारों विकल्पों में से किसी भी के विकल्प को मान लेने से सही जन्म समय को जानने से भ्रम की स्थिति तो फिर भी बनी रहेगी | बहुत से विद्वान शिशु के रोने या आवाज किये जाने को शिशु का जन्म समय मानते हैं | यदि किसी कारणवश शिशु जन्म के उपरांत रोने की कोई आवाज उत्पन्न न करे तो नाल काटने के समय को जन्म समय मान लेना चाहिए | इसका मतलब तो ये हुआ कि शिशु के रोने की आवाज या शिशु के नाल काटने के समय में से जो भी पहले हो उस समय को जन्म समय मान लेना चाहिए | इस प्रकार इस मत को मान लेने से भी भ्रम की स्थिति पैदा होती है | क्योंकि समय तो एक ही होना चाहिए व वो समय सभी को मान्य होना चाहिए |

     उपरोक्त दोनों तथ्यों का मनन करने पर पता चलता है कि सबसे उपयुक्त व तर्कसंगत जन्म समय वो ही मानना चहिये जब शिशु को नाल से काट कर अलग किया जाता है | नाम से काटने के पश्चात् ही शिशु का स्वतंत्र अस्तित्व शुरू होता है | यही समय ही शिशु का जन्म समय हो सकता है | ज्यादातर विद्वान भी इसी मत पर सहमत हैं व इसी मत को मानते हैं व इस समय को जन्म समय मानते हुए कुंडली निर्मित करते हैं | इसी समय को ध्यानपूर्वक नोट करना चाहिए |

     कुंडली निर्माण के लिए इस प्रकार के शुद्ध जन्म समय की जरूरत होती है| जहाँ सही समय का ज्ञान होने से कुंडली निर्माण लाभकारी सिद्ध होया सकता है वहीं सही समय ज्ञात न होने से किसी भी कुंडली कर निर्माण परेशानी व मानसिक तनाव का कारण बन सकता है |

शनिवार, 11 अगस्त 2012

लाल किताब के अनुसार जिस घर में कोई ग्रह न हो तथा जिस घर पर किसी ग्रह की नज़र नहीं पड़ती हो उसे सोया हुआ घर माना जाता है.

लाल किताब का मानना है जो घर सोया (Lal Kitab Sleepy Planets) होता है उस घ्रर से सम्बन्धित फल तब तक प्राप्त नहीं होता है जबतक कि वह घर जागता नहीं है. लाल किताब में सोये हुए घरों को जगाने के लिए कई उपाय (Lal Kitab Remedies) बताए गये हैं.

जिन लोगों की कुण्डली में प्रथम भाव सोया हुआ हो उन्हें इस घर को जगाने के लिए मंगल का उपाय करना चाहिए. मंगल का उपाय करने के लिए मंगलवार का व्रत करना चाहिए. मंगलवार के दिन हनुमान जी को लडुडुओं का प्रसाद चढ़ाकर बांटना चाहिए. मूंगा धारण करने से भी प्रथम भाव जागता है. 

अगर दूसरा घर सोया हुआ हो तो चन्द्रमा का उपाय शुभ फल प्रदान करता है. चन्द्र के उपाय के लिए चांदी धारण करना चाहिए. माता की सेवा करनी चाहिए एवं उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए. मोती धारण करने से भी लाभ मिलता है. 

तीसरे घर को जगाने के लिए बुध का उपाय करना लाभ देता है. बुध के उपाय हेतु दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए. बुधवार के दिन गाय को चारा देना चाहिए.

लाल किताब के अनुसार किसी व्यक्ति की कुण्डली में अगर चौथा घर सोया हुआ है तो चन्द्र का उपाय करना लाभदायी होता है.

पांचवें घर को जागृत करने के लिए सूर्य का उपाय करना फायदेमंद होता है. नियमित आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ एवं रविवार के दिन लाल भूरी चीटियों को आटा, गुड़ देने से सूर्य की कृपा प्राप्त होती है. 

छठे घर को जगाने के लिए राहु का उपाय करना चाहिए. जन्मदिन से आठवां महीना शुरू होने पर पांच महीनों तक बादाम मन्दिर में चढ़ाना चाहिए, जितना बादाम मन्दिर में चढाएं उतना वापस घर में लाकर सुरक्षित रख दें. घर के दरवाजा दक्षिण में नहीं रखना चाहिए. इन उपायों से छठा घर जागता है क्योंकि यह राहु का उपाय है.

सोये हुए सातवें घर के लिए शुक्र को जगाना होता है. शुक्र को जगाने के लिए आचरण की शुद्धि सबसे आवश्यक है. 

सोये हुए आठवें घर के लिए चन्द्रमा का उपाय शुभ फलदायी होता है. 

जिनकी कुण्डली में नवम भाव सोया हो उनहें गुरूवार के दिन पीलावस्त्र धारण करना चाहिए. सोना धारण करना चाहिए व माथे पर हल्दी अथवा केशर का तिलक करना चाहिए. इन उपाय से गुरू प्रबल होता है और नवम भाव जागता है. 

दशम भाव को जागृत करने हेतु शनिदेव का उपाय करना चाहिए. 

एकादश भाव के लिए भी गुरू का उपाय लाभकारी होता है. 

अगर बारहवां घ्रर सोया हुआ हो तो घर मे कुत्ता पालना चाहिए. पत्नी के भाई की सहायता करनी चाहिए. मूली रात को सिरहाने रखकर सोना चाहिए और सुबह मंदिर मे दान करना चाहिए..

बुधवार, 1 अगस्त 2012

रक्षाबन्धन का पर्व


इस दिन बहनें अपने भाई के दायें हाथ पर राखी बाँधकर उसके माथे पर तिलक करती हैं और उसकी दीर्घ आयु की कामना करती हैं। बदले में भाई उनकी रक्षा का वचन देता है। ऐसा माना जाता है कि राखी के रंगबिरंगे धागे भाई-बहन के प्यार के बन्धन को मज़बूत करते है। भाई बहन एक दूसरे को मिठाई खिलाते है। और सुख दुख में साथ रहने का विश्वास दिलाते हैं। यह एक ऐसा पावन पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और सम्मान देता है।
सगे भाई बहन के अतिरिक्त अनेक भावनात्मक रिश्ते भी इस पर्व से बँधे होते हैं जो धर्म, जाति और देश की सीमाओं से परे हैं। रक्षाबन्धन का  पर्वभारत के राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री के निवास पर भी मनाया जाता है। जहाँ छोटे छोटे बच्चे जाकर उन्हें राखी बाँधते हैं। रक्षाबन्धन आत्मीयता और स्नेह के बन्धन से रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर न केवल बहन भाई को ही अपितु अन्य सम्बन्धों में भी रक्षा (या राखी) बाँधने का प्रचलन है। गुरु शिष्य को रक्षासूत्र बाँधता है तो शिष्य गुरु को। भारत में प्राचीन काल में जब स्नातक अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चातगुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षासूत्र बाँधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो। इसी परम्परा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षासूत्र बाँधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिये परस्पर एक दूसरे को अपने बन्धन में बाँधते हैं।
रक्षाबन्धन पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता या एकसूत्रता का सांस्कृतिक उपाय रहा है। विवाह के बाद बहन पराये घर में चली जाती है। इस बहाने प्रतिवर्ष अपने सगे ही नहीं अपितु दूरदराज के रिश्तों के भाइयों तक को उनके घर जाकर राखी बाँधती है और इस प्रकार अपने रिश्तों का नवीनीकरण करती रहती है। दो परिवारों का और कुलों का पारस्परिक योग (मिलन) होता है। समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भी एकसूत्रता के रूप में इस पर्व का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार जो कड़ी टूट गयी है उसे फिर से जागृत किया जा सकता है।
रक्षाबन्धन के अवसर पर कुछ विशेष पकवान भी बनाये जाते हैं जैसे घेवर, शकरपारे, नमकपारे और घुघनी। घेवर सावन का विशेष मिष्ठान्न है यह केवल हलवाई ही बनाते हैं जबकि शकरपारे और नमकपारे आमतौर पर घर में ही बनाये जाते हैं। घुघनी बनाने के लिये काले चने को उबालकर चटपटा छौंका जाता है। इसको पूरी और दही के साथ खाते हैं। हलवा और खीर भी इस पर्व के लोकप्रिय पकवान हैं।

वरमाला

विवाह तब तक पूरा नहीं माना जाता जब तक वर-वधू एक दूसरे को वरमाला ना पहना दे। वरमाला प्रतीक है दो आत्माओं के मिलन का। जब श्रीराम ने सीता स्वयंवर में धनुष तोड़ा, तब सीता ने उन्हें वरमाला पहना कर पति रूप में स्वीकार किया। इसी तरह वरमाल के संबंध में कई प्रसंग हमारे धर्म ग्रंथों में भी दिए गए हैं। वरमाला फूलों और धागे से बनती है। फूल प्रतिक हैं खुशी, उत्साह, उमंग और सौंदर्य का, वहीं धागा इन सभी भावनाओं को सहेज कर रखने वाला माध्यम है। जिस तरह फूलों के मुरझाने पर भी धागा उन फूलों का साथ नहीं छोड़ता उसी तरह वरमाला नव दंपत्ति को भी यही संदेश देते हैं कि जैसे अच्छे समय में हम साथ-साथ रहे वैसे ही बुरे समय में भी एक-दूसरे के साथ कदम से कदम मिलाकर चले, किसी एक को अकेला ना छोड़े।

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

नवरात्र में देवी माँ के व्रत


नवरात्र में देवी माँ के व्रत रखे जाते हैं । स्थान–स्थान पर देवी माँ की मूर्तियाँ बनाकर उनकी विशेष पूजा की जाती हैं । घरों में भी अनेक स्थानों पर कलश स्थापना कर दुर्गा सप्तशती पाठ आदि होते हैं भगवती के नौ प्रमुख रूप (अवतार) हैं तथा प्रत्येक बार 9-9 दिन ही ये विशिष्ट पूजाएं की जाती हैं। इस काल को नवरात्र कहा जाता है। वर्ष में दो बार भगवती भवानी की विशेष पूजा की जाती है। इनमें एक नवरात्र तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक होते हैं और दूसरे श्राद्धपक्ष के दूसरे दिन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आश्विन शुक्ल नवमी तक।
इस व्रत में नौ दिन तक भगवती दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ तथा एक समय भोजन का व्रत धारण किया जाता है। प्रतिपदा के दिन प्रात: स्नानादि करके संकल्प करें तथा स्वयं या पण्डित के द्वारा मिट्टी की वेदी बनाकर जौ बोने चाहिए। उसी पर घट स्थापना करें। फिर घट के ऊपर कुलदेवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन करें तथा 'दुर्गा सप्तशती' का पाठ कराएं। पाठ-पूजन के समय अखण्ड दीप जलता रहना चाहिए। वैष्णव लोग राम की मूर्ति स्थापित कर रामायण का पाठ करते हैं। दुर्गा अष्टमी तथा नवमी को भगवती दुर्गा देवी की पूर्ण आहुति दी जाती है। नैवेद्य, चना, हलवा, खीर आदि से भोग लगाकर कन्या तथा छोटे बच्चों को भोजन कराना चाहिए। नवरात्र ही शक्ति पूजा का समय है, इसलिए नवरात्र में इन शक्तियों की पूजा करनी चाहिए।
नवरात्र क्या है
पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं। उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र'
नौ दिन या रात
अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है। यहाँ रात गिनते हैं, इसलिए नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है।रूपक के द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है। इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है। इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्त्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।
शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुध्दि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है। सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, साफ सुथरे शरीर में शुध्द बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द होता है। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है।
इनका नौ जड़ी बूटी या ख़ास व्रत की चीज़ों से भी सम्बंध है, जिन्हें नवरात्र के व्रत में प्रयोग किया जाता है-
कुट्टू (शैलान्न)
दूध-दही
चौलाई (चंद्रघंटा)
पेठा (कूष्माण्डा)
श्यामक चावल (स्कन्दमाता)
हरी तरकारी (कात्यायनी)
काली मिर्च व तुलसी (कालरात्रि)
साबूदाना (महागौरी)
आंवला(सिद्धीदात्री)
क्रमश: ये नौ प्राकृतिक व्रत खाद्य पदार्थ हैं।
अष्टमी या नवमी
यह कुल परम्परा के अनुसार तय किया जाता है। भविष्योत्तर पुराण में और देवी भावगत के अनुसार, बेटों वाले परिवार में या पुत्र की चाहना वाले परिवार वालों को नवमी में व्रत खोलना चाहिए। वैसे अष्टमी, नवमी और दशहरे के चार दिन बाद की चौदस, इन तीनों की महत्ता "दुर्गासप्तशती" में कही गई है।
कन्या पूजन
अष्टमी और नवमी दोनों ही दिन कन्या पूजन और लोंगड़ा पूजन किया जा सकता है। अतः श्रद्धापूर्वक कन्या पूजन करना चाहिये।
सर्वप्रथम माँ जगदम्बा के सभी नौ स्वरूपों का स्मरण करते हुए घर में प्रवेश करते ही कन्याओं के पाँव धोएं।
इसके बाद उन्हें उचित आसन पर बैठाकर उनके हाथ में मौली बांधे और माथे पर बिंदी लगाएं।
उनकी थाली में हलवा-पूरी और चने परोसे।
अब अपनी पूजा की थाली जिसमें दो पूरी और हलवा-चने रखे हुए हैं, के चारों ओर हलवा और चना भी रखें। बीच में आटे से बने एक दीपक को शुद्ध घी से जलाएं।
कन्या पूजन के बाद सभी कन्याओं को अपनी थाली में से यही प्रसाद खाने को दें।
अब कन्याओं को उचित उपहार तथा कुछ राशि भी भेंट में दें।
जय माता दी कहकर उनके चरण छुएं और उनके प्रस्थान के बाद स्वयं प्रसाद खाने से पहले पूरे घर में खेत्री के पास रखे कुंभ का जल सारे घर में बरसाएँ।

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

झूलेलाल


झूलेलाल को वेदों में वर्णित जल-देवता, वरुण देव का अवतार माना जाता है। वरुण देव को सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि वाले देवता के रूप में सिंधी समाज भी पूजता है। उनका विश्वास है कि जल से सभी सुखों की प्राप्ति होती है और जल ही जीवन है। जल-ज्योति, वरुणावतार, झूलेलाल सिंधियों के ईष्ट देव हैं जिनके बागे दामन फैलाकर सिंधी यही मंगल कामना करते हैं कि सारे विश्व में सुख-शांति, अमन-चैन, कायम रहे और चारों दिशाओं में हरियाली और खुशहाली बने रहे।
भगवान झूलेलाल के अवतरण दिवस को सिंधी समाज चेटीचंड के रूप में मनाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार सिंध का शासक मिरखशाह अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगा था जिसके कारण सिंधी समाज ने 40 दिनों तक कठिन जप, तप और साधना की। तब सिंधु नदी में से एक बहुत बड़े नर मत्स्य पर बैठे हुए भगवान झूलेलाल प्रकट हुए और कहा मैं 40 दिन बाद जन्म लेकर मिरखशाह के अत्याचारों से प्रजा को मुक्ति दिलाउंगा। चैत्र माह की द्वितीया को एक बालक ने जन्म लिया जिसका नाम उडेरोलाल रखा गया। अपने चमत्कारों के कारण बाद में उन्हें झूलेलाल, लालसांई, के नाम से सिंधी समाज और ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर के नाम से मुसलमान भी पूजने लगे। चेटीचंड के दिन श्रद्धालु बहिराणा साहिब बनाते हैं। शोभा यात्रा में ‘छेज’ (जो कि गुजरात के डांडिया की तरह लोकनृत्य होता है) के साथ झूलेलाल की महिमा के गीत गाते हैं। ताहिरी (मीठे चावल), छोले (उबले नमकीन चने) और शरबत का प्रसाद बांटा जाता है। शाम को बहिराणा साहिब का विसर्जन कर दिया जाता है।   

भगवान झूलेलाल के प्रमुख संदेश

  • ईश्वर अल्लाह हिक आहे।
    ईश्वर अल्लाह एक हैं।
  • कट्टरता छदे, नफरत, ऊंच-नीच एं छुआछूत जी दीवार तोड़े करे पहिंजे हिरदे में मेल-मिलाप, एकता, सहनशीलता एं भाईचारे जी जोत जगायो।
    विकृत धर्माधता, घृणा, ऊंच-नीच और छुआछूत की दीवारे तोड़ो और अपने हृदय में मेल-मिलाप, एकता, सहिष्णुता, भाईचारा और धर्म निरपेक्षता के दीप जलाओ।
  • सभनि हद खुशहाली हुजे।
    सब जगह खुशहाली हो।
  • सजी सृष्टि हिक आहे एं असां सभ हिक परिवार आहियू।
    सारी सृष्टि एक है, हम सब एक परिवार हैं।

बुधवार, 25 जुलाई 2012

राशि बताएगी आपकी लव एंड सेक्‍स लाइफ ग्रह-नक्षत्रों का असर न केवल जीवन पर पड़ता है, बल्कि इंसान के प्रेम और सेक्‍स पर भी यह प्रभाव डालता है। लव व सेक्‍स लाइफ पर राशि के इस प्रभाव को आइए देखते हैं-


मेष राशि के लडकों का सेक्स के प्रति लगाव अधिक होता है, लेकिन लडकियों का बहुत कम। मेष राशि के लोग लाल रंग पर कुछ ज्‍यादा ही फिदा हो जाते हैं। इस राशि के लोगों को स्‍वास्‍थ्‍य जीवन के लिए साग-सब्जी, दूध व अंकुरित भोजन का सेवन अधिक करना चाहिए।

वृष राशि के लोग स्वभाव से बहुत ही रोमांटिक होते है। लडकियों को रोमांटिक संगीत सुनना और फिल्में देखना पसंद होता है जबकि लड़कों का सेंस ऑफ हयूमर गजब का होता है। इस राशि के लोगों को अच्‍छी सेहत के लिए बबूल व गोंद का हलवा तथा उडद की दाल का सेवन करना चाहिए।

मिथुन राशि का स्वामी बुध है। इस राशि के लड़के जल्‍दी ही आकर्षित हो जाते हैं जबकि इस राशि की लडकियां सरप्राइज पसंद होती हैं। इस राशि की लड़कियों को शादी की तस्‍वीर दिखाकर या रोमांटिक यादों से जुडी जगह पर ले जाकर अच्‍छा सरप्राइज दिया जा सकता है। इस राशि के लोगों को अपनी सेहत के लिए उडद की दाल से बनी चीजें तथा भोजन में गोंद का प्रयोग करना चाहिए।

कर्क राशि के लोग मनचले होते है। इस राशि के लोगों का मूड तुरंत रोमांटिक हो जाता है, खासकर एकांत स्‍थान पर। इस राशि के पुरुषों का अफेयर कई स्त्रियों से समय-समय पर या कई बार एक साथ ही चलता रहता है। इस राशि की लडकियों को कैंडल लाईट डिनर बहुत पसंद है। अच्‍छी सेहत के लिए इस राशि वाले लोग छुहारे व अक्ष्रवगंध का सेवन अवश्य करें।

सिंह राशि का स्वामी सूर्य है। इन लोगों को दिखावा बहुत भाता है। उचित माहौल में ही इनका मूड बनता है। लडकियों का मिजाज कुछ परिवर्तित होता है। बिस्‍तर पर भी इनका मूड माहौल को देखकर ही बनता है। रात में नहाना, परफ्यूम लगाना, पार्टनर की तारीफ करना, उनके अंगो से छेड़छाड़ करना जैसी बातें ऐसे लोगों के लिए सही माहौल तैयार करते हैं। भोजन में साठी के चावल, अंकुरित दाल का प्रयोग करें।

कन्या राशि के लोगों को हर तरह के सेक्स में आनंद आता हैं। इस राशि के लडके सेक्स के दौरान छेडखानी पसंद करते हैं। लडकियों का भी सेक्स की तरफ पूरा झुकाव होता है। इन्‍हें भोजन में गोंद, बादाम व छुहारे का सेवन नियमित करना चाहिए।

तुला राशि का स्वामी शुक्र है , जो काम शाक्ति का द्योतक है। इस राशि के लडको का स्वभाव बडा ही रोमांटिक होता है। इस राशि की लडकियों का सेक्स की तरफ रूझान कम होता है। ऐसे लोगों का मूड बनाने के लिए डिनर, चुटकले, चुंबन, एसएमएस आदि का उपयोग किया जा सकता है। इन्‍हें मेथी के लड्डू व बिनौले का सेवन करना चाहिए।

वृश्चिक राशि के लोग लव व सेक्‍स लाइफ को तरोताजा करने के लिए नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। अपने जीवनसाथी को आकर्षित करने के लिए नए-नए करतब करते हैं। इस राशि की लडकियों को भी रोमांस के मूड में लाने के लिए कुछ नए की जरूरत होती है। इस राशि के लोगों को अपने भोजन में खट्टा कम खाना चाहिए।

धनु राशि के लोग धार्मिक विचारों वाले होते हैं। इन लोगों को एकांत में रोमांस करना पसंद होता है। इन्‍हें रोमांस के लिए तैयार करने में पार्टनर को सेक्सी ड्रेस व अदाओं का सहारा लेना चाहिए। इन्‍हें अपने घर या शहर की जगह किसी हिल स्टेशन पर जाकर वादियों में रोमांस करना पसंद होता है। इस राशि की लडकियां रोमांटिक संगीत, फिल्‍म और बातों को पसंद करती हैं।

मकर राशि के लोगों को प्यार भरी बातों से अपनी ओर आकर्षित किया जा सकता है। इस राशि के लोग सेक्स करने के दौरान बात करना पसंद नहीं करते। इस राशि की लड़कियां रोमांटिक बातें करने और डेट पर जाने के बाद ही रोमांस के मूड में आती हैं। भोजन में इन्‍हें अधिक गर्म चीजें नहीं खानी चाहिए।

कुंभ राशि का स्वामी शनि है। इस राशि के लड़के सेक्‍स में अतिरिक्‍त की चाह रखते हैं। इस राशि की लड़कियां एकांत स्‍थान में अच्‍छे मूड में आती हैं। इस राशि के लोगों को गर्भ भोजन करना चाहिए।

मीन राशि के लडके शीघ्र आकर्षित होती हैं। लडकियों को आंखों में आंखें डालकर देखना व बातें करना अच्छा लगता है। लड़कियों को सरप्राइज गिफ्ट लेना पसंद होता हैं।

यहाँ कुछ ऐसे सरल टोटके बताये जा रहे हैं जिन्हें अपना कर अपने दांपत्य जीवन को सुखी बनाया जा सकता है|

  • जिन महिलायों के पति अधिक शराब का सेवन करते हैं तथा अपनी आय का अधिक हिस्सा शराब पर लुटातें हैं,उनके लिए यह सब से सरल उपाय है|जिस दिन आपके पति शराब पीकर घर आयें और अपने जूते और उनका जूता अपने आप ही उल्टा हो जाये तो आप उस जूते के वजन के बराबर आटा लेकर उसकी बिना तवे तथा चकले की मदद से रोटी बनाकर कुत्ते को खिला दें|कुछ ही समय में वह शराब से घृणा करने लगेंगे|यदि ऐसा संजोग लगातार कम से कम तीन दिन हो जाये तो वह तुरंत ही शराब छोड़ देंगे|
  • शराब छुड़ाने का एक उपाए यह भी है की आप किसी भी रविवार को एक शराब की उस ब्रांड की बोतल लायें जो ब्रांड आपके पति सेवन करते हैं|रविवार को उस बोतल को किसी भी भैरव मंदिर पर अर्पित करें तथा पुन: कुछ रूपए देकर मंदिर के पुजारी से वह बोतल वापिस घर ले आयें|जब आपके पति सो रहें हो अथवा शराब के नशे में चूर होकर मदहोश हों तो आप उस पूरी बोतल को अपने पति के ऊपर से उसारते हुए २१ बार "ॐ नमः भैरवाय"का जाप करें|उसारे के बाद उस बोतल को शाम को किसी भी पीपल के वृक्ष के नीचे छोड़ आयें|कुछ ही दिनों में आप चमत्कार देखेंगी|
  • कुत्ते का नाख़ून अथवा बिच्छु का डंक आप किसी भी बी हने से ताबीज में पति को धारण करवा दें|इसके प्रभाव से वो अन्य महिला का साथ छोड़ देंगे|
  • शराब छुडवाने का एक यह भी उपाय है की आप एक शराब की बोतल किसी शनिवार को पति के सो जाने के बाद उन पर से २१ बार वार लें|उस बोतल के साथ किसी अन्य बोतल में आठ सो ग्राम सरसों का तेल लेकर आपस में मिला लें और किसी बहते हुए पानी के किनारे में उल्टा गाढ़ दें जिससे बोतलों के ऊपर से जल बहता रहे|
  • आपको यदि शक हो की आपके पति के किसी अन्य महिला से सम्बन्ध हैं तो आप इसके लिए रात में थोडा कपूर अवश्य जलाया करें इससे यदि सम्बन्ध होंगे तो छूट जायेंगे|
  • रविवार की रात में सोते समय कुछ सिन्दूर बिस्तर पर पति के सोने वाले हिस्से की और बिखरा दें तथा प्रात: नहा कर माँ पार्वती का नाम लेकर उससे अपनी मांग भर लें|
  • जिस महिला से आपके पति का संपर्क है उसके नाम के अक्षर के बराबर मखाने लेकर प्रत्येक मखाने पर उसके नाम का अक्षर लिख दें|उस औरत से पति का छुटकारा पाने की ईशवर से प्रार्थना करते हुए उन सारे मखानो को जला दें तथा किसी भी प्रकार से उसकी काली भभूत को पति के पैर के नीचे आने की व्यवस्था करें|
  • किसी के पति यदि अधिक क्लेश करते हैं तो वह स्त्री सोमवार से यह उपाय आरम्भ करे |प्रथम सोमवार को अशोक वृक्ष के पास जाकर धुप-दीप से अर्चना कर अपनी समस्या का निवेदन कर जल अर्पित करें|सात पत्ते तोड़कर अपने घर के पूजास्थल में रख कर उनकी पूजा करें|अगले सोमवार को पुन:यह क्रिया दोहराएँ तथा सूखे पत्तों को मंदिर तथा बहते जल में प्रवाहित कर दें|
  • यदि पति पत्नी का आपस में बिना बात के झगड़ा होता है और झगडे का कोई कारण भी नही होता तो अपने शयनकक्ष में पति अपने तकिये के नीचे लाल सिन्दूर रखे व पत्नी अपने तकिये के नीचे कपूर रखे|प्रात: पति आधा सिन्दूर घर में ही कहीं गिरा दें और आधे से पत्नी की मांग भर दें तथा पत्नी कपूर जला दे|
  • पति-पत्नी के क्लेश के लिए पत्नी बुधवार को तीन घंटे का मोंन रखें|शुक्रवार को अपने हाथ से साबूदाने की खीर में मिश्री दाल कर खिलाएं तथा इतर दान करें व अपने कक्ष में भी रखें|इस प्रयोग से प्रेम में वृद्धि होती है|
  • कनेर के पुष्प को पानी मैं घिसकर अथवा तथा पीसकर उस से पति के माथे पर तिलक करें .यह भी अन्य महिला से सम्बन्ध समाप्त करने का अच्छा उपाय है .
  • जब आपको लगे की आपके पति किसी महिला के पास से आरहें हैं तो आप किसी भी बहाने से अपने पति का आंतरिक वस्त्र लेकर उसमे आग लगा दें और राख को किसी चौराहे पर फैंक कर पैरों से रगड़ कर वापिस आजाएं.
  • होली जलते समय तीन अभिमंत्रित गोमती चक्र लेकर उस महिला का नाम लेकर थोडा सिन्दूर लगाकर होली की अग्नि में फैंक दें|पति का उस महिला से पीछा छूट जायेगा|
  • किसी अन्य महिला के पीछे आपके पति यदि आपका अपमान करते हैं तो किसी भी गुरूवार को तीन सो ग्राम बेसन के लड्डू ,आटेके दो पेड़े,तीन केले व इतनी ही चने की गीली दाल लेकर किसी गाय को खिलाये जो अपने बछड़े को दूध पिला रही हो|उसे खिला कर यह निवेदन करें की हे माँ,मैंने आपके बच्चे को फल दिया आप मेरे बच्चे को फल देना|कुछ ही दिन में आपके पति रस्ते में आ जायेंगे|
  • गुरूवार को केले पर हल्दी लगाकर गुरु के १०८ नामों के उच्चारण से भी पति की मनोवृति बदलती है|
  • केले के वृक्ष के साथ यदि पीपल के वृक्ष की भी सेवा कर सकें तो फल और भी जल्दी प्राप्त होता है|
  • गृह क्लेश दूर करने के लिए तथा आर्थिक लाभ के लिए गेँहू शनिवार को पिसवाना चाहिए|उसमे प्रति दस किलो गेँहू पर सो ग्राम काले चने डालने चाहिए|
  • यदि किसी महिला अथवा किसी अन्य कारण से आपको लग रहा है की आपका परिवार टूट रहा है अथवा तलाक तक की हालत पैदा हो गयी हैं तो ऐसे परिस्थिति से बचाव के लिए किसी शिव मंदिर में श्रावण मास में आप किसी विद्वान ब्राह्मण से ग्यारह दिन तक लगातार 'रुद्राष्टध्यायी' जिसे म्हारुदरी यग भी कहते हैं ,से अभिषेक करवाएं|
  • यदि स्त्री को श्वेत प्रदर ,मासिक धर्म में अनियमितता अथवा इसके होने पर कमर दर्द हो तो वह पीपल की जटाको गुरूवार की दोपहर में काट कर छाया में सुखा लें|जब जटा अच्छी तरह से सुख जाये तो उसे पीस कर २०० ग्राम दही में १० ग्राम जटा का चूर्ण का नियमित सात दिन तक सेवन करे तथा रात में सोते समय त्रिफला चूर्ण भी सादा जल से ले|सात दिन में इस समस्या से मुक्ति मिल जाएगी |
  • यदि किसी स्त्री का समय से पहले अर्थात ४२ वर्षायु से पहले ही मासिक रुक जाये तो उस स्त्री को पुन:मासिक धर्म आरम्भ करने के लिए इन्द्रायन की जड़ का योनी पर धुआं देने से लाभ प्राप्त होता है|
  • यदि किसी स्त्री अथवा कन्या को मासिक से पहले पेट में बहुत दर्द होता है,तो उसे रात में सोते समय मूंज की रस्सी से पेट बाँध लें,प्रात: उस रस्सी को किसी चौराहे पर फैंक देने से लाभ होता है.
  • यदि किसी स्त्री को मासिक धर्म के समय कमर में दर्द हो तो वह मासिक आरम्भ होने से तीन दिन पहले पीपल की जड़ वह पीपल की सुखी शाखा को काले कपडे में लपेट कर अपने तकिये के नीच रख लें.
  • यदि किसी महिला को पेट मैं किसी कारण से अधिक दर्द रहता है तो वह मंगलवार से अपने सिरहाने किसी ताम्बे के लोटे में जल रखे और प्रति उठाने खाली पेट उस जल का सेवन करें .इस प्रकार से हर प्रकार के पेट दर्द का निवारण हो जायेगा .
  • प्रसूता के पेट पर यदि केसर का लेप किया जाये तो भी प्रसव आसानी से हो जाता है .
  • प्रसव काल से कुछ ही समय पहले यदि प्रसूता को १०० ग्राम गोमूत्र पिलाया जाये तो प्रसव आसानी से हो जाता है .
  • विवाहित महिला को अपने परिवार की सलामती के लिए ही माँ दुर्गा चालीसा के साथ माँ के १०८ नाम अथवा ३२ नाम की माला का जाप करना चाहिए .
  • कभी किसी महिला को दान करने की इच्छा हो तो दान सामग्री में लाल सिन्दूर के साथ इतर की शीशी ,चने की दाल तथा केसर अवश्य रखें .इस से सुहाग की आयु में वृद्धि होती है.

सोमवार, 23 जुलाई 2012

ऋण-परिहारक प्रदोष-व्रत

‘प्रदोष व्रत’ के दिन अर्थात् कृष्ण-पक्ष एवं शुक्ल-पक्ष की त्रयोदशी (तेरस) तिथि को प्रातःकाल स्नानादि कर भगवान् शंकर का यथा-शक्ति पञ्चोपचार या षोडशोपचार से पूजन करें। फिर निम्नलिखित ‘विनियोग’ आदि कर निर्दिष्ट मन्त्र का यथाशक्ति २१, ११, १ माला या केवल ११ बार जप करे।
विनियोगः- ॐ अस्य अनृणा-मन्त्रस्य श्रीऋण-मुक्तेश्वरः ऋषिः। त्रिष्टुप् छन्दः। रुद्रो देवता। मम ऋण-परिहारार्थे जपे विनियोगः।
ऋष्यादि-न्यासः- श्रीऋण-मुक्तेश्वरः ऋषये नमः शिरसि। त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे। रुद्र-देवतायै नमः हृदि। मम ऋण-परिहारार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
कर-न्यासः- ॐ अनृणा अस्मिन् अंगुष्ठाभ्यां नमः। अनृणाः परस्मिन् तर्जनीभ्यां नमः। तृतीये लोके अनृणा स्याम मध्यमाभ्यां नमः। ये देव-याना अनामिकाभ्यां नमः। उत पितृ-याणा कनिष्ठिकाभ्यां नमः। सर्वाण्यथो अनृणाऽऽक्षीयेम करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः।
अङग-न्यासः- ॐ अनृणा अस्मिन् हृदयाय नमः। अनृणाः परस्मिन् शिरसे स्वाहा। तृतीये लोके अनृणा स्याम शिखायै वषट्। ये देव-याना कवचाय हुम्। उत पितृ-याणा नेत्र-त्रयाय वौषट्। सर्वाण्यथो अनृणाऽऽक्षीयेम अस्त्राय फट्।
ध्यानः-
ध्याये नित्यं महेशं रजत-गिरि-निभं चारु-चन्द्रावतंसम्,
रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशु-मृग-वराभीति-हस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममर-गणैर्व्याघ्र-कृत्तिं वसानम्,
विश्वाद्यं विश्व-बीजं निखिल-भय-हरं पञ्च-वक्त्रं त्रिनेत्रम्।।
अर्थात् भगवान् रुद्र पञ्च-मुख और त्रिनेत्र हैं। चाँदी के पर्वत के समान उनकी उज्ज्वल कान्ति है। सुन्दर चन्द्रमा उनके मस्तक पर शोभायमान है। रत्न-जटित आभूषणों से उनका शरीर प्रकाशमान है। अपने चार हाथओं में परशु, मृग, वर और अभय मुद्राएँ धारण किए हैं। मुख पर प्रसन्नता है। पद्मासन पर विराजमान हैं। चारों ओर से देव-गण उनकी वन्दना कर रहे हैं। बाघ की खाल वे पहने हैं। विश्व के आदि, जगत् के मूल-स्वरुप और समस्त प्रकार के भय-नाशक-ऐसे महेश्वर का मैं नित्य ध्यान करता हूँ।
उक्त प्रकार ध्यान कर भगवान् रुद्र का पुनः पञ्चोपचारों से या मानस उपचारों से पूजन कर हाथ जोड़कर निम्न प्रार्थना करे-
अनन्त-लक्ष्मीर्मम सन्निधौ सदा स्थिरा भवत्वित्यसि-
वर्धनेन नानाऽऽदृतः शत्रु-निवारकोऽहं भवामि शम्भौ !
अर्थात् हे शम्भो ! कभी समाप्त न होनेवाली लक्ष्मी मेरे पास सदा-स्थिर होकर रहे और मैं काम-क्रोधादि सब प्रकार के शत्रुओं को दूर करने में समर्थ बनूँ।
मन्त्र-जाप- “ॐ अनृणा अस्मिन्, अनृणाः परस्मिन्, तृतीये लोके अनृणा स्याम। ये देव-याना उत पितृ-याणा, सर्वाण्यथो अनृणाऽऽक्षीयेम।”
रुद्राक्ष या रक्त-चन्दन की माला से प्रातःकाल यथा शक्ति पूर्व निर्देशानुसार जप करें। यदि समर्थ हो, तो किन्हीं वेदपाठी ब्राह्मण द्वारा ‘षडंग-शत-रुद्रीय’ में उक्त मन्त्र का ‘सम्पुट’ लगाकर भगवान शंकर का अभिषेक करे और सम्पुटित ११ पाठ कराए। आवश्यकतानुसार ‘शिव-महिम्न-स्तोत्र’ में भी उक्त मन्त्र का ‘सम्पुट’ लग सकता है। अभिषेक के बाद पुनः पूजन एवं मन्त्र-जप कर, निम्न स्तोत्र का पाठ करे-
जय देव जगन्नाथ, जय शंकर शाश्वत। जय सर्व-सुराध्यक्ष, जय सुरार्चित ! ।।
जय सर्व-गुणानन्त, जय सर्व-वर-प्रद ! जय सर्व-निराधार, जय विश्वम्भराव्यय ! ।।
जय विश्वैक-विद्येश, जय नागेन्द्र-भूषण ! जय गौरी-पते शम्भो, जय चन्द्रार्ध-शेखर ! ।।
जय कोट्यर्क-संकाश, जयानन्त-गुणाकर ! जय रुद्र-विरुपाक्ष, जय नित्य-निरञ्जन ! ।।
जय नाथ कृपा-सिन्धो, जय भक्तार्त्ति-भञ्जन ! जय दुस्तर-संसार-सागरोत्तारण-प्रभो ! ।।
प्रसीद मे महा-भाग, संसारार्त्तस्य खिद्यतः। सर्व-पाप-क्षयं कृत्वा, रक्ष मां परमेश्वर ! ।।
मम दारिद्रय-मग्नस्य, महा-पाप-हतीजसः। महा-शोक-विनष्टस्य, महा-रोगातुरस्य च।।
महा-ऋण-परीत्तस्य, दध्यमानस्य कर्मभिः। गदैः प्रपीड्यमानस्य, प्रसीद मम शंकर ! ।।

शनिवार, 21 जुलाई 2012

कुंडली में विवाह संबंधी जानकारी के लिए द्वितीय, पंचम, सप्तम एवं द्वादश भावों का विश्लेषण करने का विधान है। द्वितीय भाव परिवार का है। पति-पत्नी परिवार की मूल इकाई हैं। सातवां भाव विवाह का होता है। प्राय: पापाक्रांत द्वितीय भाव विवाह से वंचित रखता है। संतान सुख वैवाहिक जीवन का प्रबल पक्ष है।

विवाह में बाधक ग्रह 
अधिकांश माता-पिता की यह इच्छा होती है कि उनके वयस्क बेटी या बेटे की शादी समय से हो जाए। लेकिन लाख प्रयास करने के बाद भी कभी-कभार बेटी या बेटे का रिश्ता तय नहीं हो पाता। होता भी है, तो बहुत परेशानी आती है। ऎसा कुछेक लोगों के साथ इसलिए होता है कि उनकी कुंडली में विवाह बाधक ग्रह योग होते हैं। आइए इस मुद्दे पर विचार करें कि शादी-ब्याह में कौन से ग्रह बाधक होते हैं।

कुंडली में विवाह संबंधी जानकारी के लिए द्वितीय, पंचम, सप्तम एवं द्वादश भावों का विश्लेषण करने का विधान है। द्वितीय भाव परिवार का है। पति-पत्नी परिवार की मूल इकाई हैं। सातवां भाव विवाह का होता है। प्राय: पापाक्रांत द्वितीय भाव विवाह से वंचित रखता है। संतान सुख वैवाहिक जीवन का प्रबल पक्ष है। इसके लिए पंचम भाव का विश्लेषण आवश्यक है। सप्तम भाव तो मुख्यत: विवाह से संबंधित भाव है और द्वितीय भाव शय्या सुख के लिए विचारणीय है। इन भावों में किन ग्रहों से विवाह बाधा उत्पन्न होती है, देखें-
 
शनि से: शनि-सूर्य संयुक्त रू प से लग्न में हो, तब विवाह में बाधा आएगी। शनि लग्न में और चंद्रमा सप्तमस्थ हो, तो शादी देरी से होगी। शनि और चंद्रमा संयुक्त रू प से सप्तमस्थ हो अथवा नवांश लग्न से सप्तमस्थ हो, तो विवाह में विलंब होता है।

शुक्र से: शुक्र और चंद्रमा की सप्तम भाव में स्थिति चिंतनीय है। यदि शनि व मंगल उनसे सप्तम हो, तो विवाह विलंब से होगा और यदि यह योग बृहस्पति से दृष्ट हो, तो भी विवाह में पर्याप्त विलंब होता है।
 

वक्री ग्रह: सप्तम भाव में यदि वक्री ग्रह स्थित हो। सप्तमेश वक्री हो अथवा वक्री ग्रह या ग्रहों की सप्तम भाव या सप्तमेश अथवा शुक्र पर दृष्टि हो या शुक्र स्वयं वक्री हो, तब शादी-ब्याह होने में परेशानी आती है। यदि द्वितीय भाव में कोई वक्री ग्रह स्थित हो या द्वितीयेश स्वयं वक्री हो अथवा कोई वक्री ग्रह द्वितीय भाव या द्वितीयेश को देखता हो, तो भी विवाह विलंब से होता है।
 

बृहस्पति और शनि: यदि सप्तमेश या शुक्र किसी कन्या की कुंडली में बृहस्पति या शनि से सप्तमस्थ हो अथवा युति हो, तो विवाह में विलंब होता है।
 
शनि और बृहस्पति दोनों ही मंद गति से भ्रमण करने वाले ग्रह हों। शनि से युति या सप्तमस्थ होने की स्थिति में विवाह विलंब से होता है।

मंगल और शनि: यदि मंगल और शनि, शुक्र और चंद्रमा से सप्तमस्थ हो, तब विवाह में विलंब होता है। शनि और मंगल तुला लग्न वालों के लिए क्रमश: द्वितीयस्थ व अष्टमस्थ हो, तो विवाह में बहुत विलंब होता है। विवाह का सुख नहीं मिलता।
 
ज्योतिष शास्त्र में बाधक ग्रह सम्बंधी उपचार करने से विवाह के योग शीघ्र बनना संभव है। उपचार सम्बंधी जानकारी किसी विशेषज्ञ से ले लें।

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

शनि का राशि परिवर्तन होते ही लोग भयभीत हो उठते हैं कि अब शनिदेव न जाने क्या गजब ढाएगे? जिन लोगों की कुण्डली नहीं बनी होती उनके लिए यह बड़ा प्रश्न होता है कि शनि बुरा है या अच्छा यह कैसे जाने... शनि की प्रतिकूल अवस्था हमारी निदचर्या को भी प्रभावित करती है, जिसे नोट करके जाना जा सकता है कि कही शनि प्रतिकूल तो नहीं।


(१) यदि शरीर में हमेशा थकान व आलस भरा लगने लगे।
(२) नहाने-धोने से अरूचि होने लगे या नहाने का वक्त ही न मिले।
(३) नए कपड़े खरीदने या पहनने का मौका न मिले।
(४) नए कपड़े व जूते जल्दी-जल्दी फटने लगे।
(५) घर में तेल, राई,   दाले फैलने लगे या नुकसान होने लगे।
(६) अलमारी हमेशा अव्यवस्थित होने लगे।
(७) भोजन से बिना कारण अरूचि होने लगें
(८) सिर व पिंडलियों में, कमर में दर्द बना रहे।
(९) परिवार में पिता से अनबन होने लगे।
(१०) पढ़ने-लिखने से, लोगों से मिलने से उकताहट होने लगे, चिड़चिड़ाहट होने लगे।

यदि ये लक्षण आप स्वयं में महसूस करें, तो शनि का उपाय करें-
तेल, राई, उड़द का दान करें। पीपल के पेड़ को सीचें, दीपक लगाएँ। हनुमान जी व सूर्य की आराधना करें, मांस-मदिरा का त्याग करें, गरीबों की मदद करें, काले रंग न पहनें, काली चीजें दान करें।
साढ़े साती का नाम ही हमारी नींद उड़ाने के लिए पर्याप्त होता है। शनि वैसे ही कठोर माना जाता है, उस पर साढ़े सात वर्ष उसका हमारी राशि से संबंध होना मुश्किल ही प्रतीत होता है।
वास्तव में साढ़े साती में आने वाले अशुभ फलों की जानकारी लेकर उनसे बचने हेतु अपने व्यवहार में आवश्यक परिवर्तन लाए जाएं तो साढ़ेसाती की तीव्रता कम की जा सकती है। साढ़ेसाती में मुख्यत: प्रतिकूल बातें क्या घटती हैं?
आइए देखें- पारिवारिक कलह, नौकरी में  परेशानी, कोर्ट कचहरी प्रकरण, रोग, आर्थिक परेशानी, काम न होना, धोखाधड़ी आदि साढ़ेसाती के मूल प्रभाव है। इनसे बचने के पूर्व उपाय करके, नए खरीदी-व्यवहार टालकर, शांति से काम करके इन परेशानियों को टाला या कम किया जा सकता है। वैसे भी साढ़ेसाती के सातों वर्ष खराब हो, ऐसा नहीं है। जब शनि मित्र राशि या स्व राशि में हो, गुरु अनुकूल हो तो अशुभ प्रभाव घटता है।
मूल कुंडली में शनि ३,६,११ भाव में हो, या मकर, कुंभ, वृषभ, तुला, मिथुन या कन्या में हो तो साढ़ेसाती फलदायक ही होती है। यही नहीं यदि शनि पर गुरु की शुभ दृष्टि हो तो भी साढ़ेसाती से परेशानी नहीं होती। कुंडली में बुध-शनि जैसी शुभ युति हो तो कुप्रभाव नहीं मिलते।

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

राशि बताएगी आपकी लव एंड सेक्‍स लाइफ ग्रह-नक्षत्रों का असर न केवल जीवन पर पड़ता है, बल्कि इंसान के प्रेम और सेक्‍स पर भी यह प्रभाव डालता है। लव व सेक्‍स लाइफ पर राशि के इस प्रभाव को आइए देखते हैं-


मेष राशि के लडकों का सेक्स के प्रति लगाव अधिक होता है, लेकिन लडकियों का बहुत कम। मेष राशि के लोग लाल रंग पर कुछ ज्‍यादा ही फिदा हो जाते हैं। इस राशि के लोगों को स्‍वास्‍थ्‍य जीवन के लिए साग-सब्जी, दूध व अंकुरित भोजन का सेवन अधिक करना चाहिए।

वृष राशि के लोग स्वभाव से बहुत ही रोमांटिक होते है। लडकियों को रोमांटिक संगीत सुनना और फिल्में देखना पसंद होता है जबकि लड़कों का सेंस ऑफ हयूमर गजब का होता है। इस राशि के लोगों को अच्‍छी सेहत के लिए बबूल व गोंद का हलवा तथा उडद की दाल का सेवन करना चाहिए।

मिथुन राशि का स्वामी बुध है। इस राशि के लड़के जल्‍दी ही आकर्षित हो जाते हैं जबकि इस राशि की लडकियां सरप्राइज पसंद होती हैं। इस राशि की लड़कियों को शादी की तस्‍वीर दिखाकर या रोमांटिक यादों से जुडी जगह पर ले जाकर अच्‍छा सरप्राइज दिया जा सकता है। इस राशि के लोगों को अपनी सेहत के लिए उडद की दाल से बनी चीजें तथा भोजन में गोंद का प्रयोग करना चाहिए।

कर्क राशि के लोग मनचले होते है। इस राशि के लोगों का मूड तुरंत रोमांटिक हो जाता है, खासकर एकांत स्‍थान पर। इस राशि के पुरुषों का अफेयर कई स्त्रियों से समय-समय पर या कई बार एक साथ ही चलता रहता है। इस राशि की लडकियों को कैंडल लाईट डिनर बहुत पसंद है। अच्‍छी सेहत के लिए इस राशि वाले लोग छुहारे व अक्ष्रवगंध का सेवन अवश्य करें।

सिंह राशि का स्वामी सूर्य है। इन लोगों को दिखावा बहुत भाता है। उचित माहौल में ही इनका मूड बनता है। लडकियों का मिजाज कुछ परिवर्तित होता है। बिस्‍तर पर भी इनका मूड माहौल को देखकर ही बनता है। रात में नहाना, परफ्यूम लगाना, पार्टनर की तारीफ करना, उनके अंगो से छेड़छाड़ करना जैसी बातें ऐसे लोगों के लिए सही माहौल तैयार करते हैं। भोजन में साठी के चावल, अंकुरित दाल का प्रयोग करें।

कन्या राशि के लोगों को हर तरह के सेक्स में आनंद आता हैं। इस राशि के लडके सेक्स के दौरान छेडखानी पसंद करते हैं। लडकियों का भी सेक्स की तरफ पूरा झुकाव होता है। इन्‍हें भोजन में गोंद, बादाम व छुहारे का सेवन नियमित करना चाहिए।

तुला राशि का स्वामी शुक्र है , जो काम शाक्ति का द्योतक है। इस राशि के लडको का स्वभाव बडा ही रोमांटिक होता है। इस राशि की लडकियों का सेक्स की तरफ रूझान कम होता है। ऐसे लोगों का मूड बनाने के लिए डिनर, चुटकले, चुंबन, एसएमएस आदि का उपयोग किया जा सकता है। इन्‍हें मेथी के लड्डू व बिनौले का सेवन करना चाहिए।

वृश्चिक राशि के लोग लव व सेक्‍स लाइफ को तरोताजा करने के लिए नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। अपने जीवनसाथी को आकर्षित करने के लिए नए-नए करतब करते हैं। इस राशि की लडकियों को भी रोमांस के मूड में लाने के लिए कुछ नए की जरूरत होती है। इस राशि के लोगों को अपने भोजन में खट्टा कम खाना चाहिए।

धनु राशि के लोग धार्मिक विचारों वाले होते हैं। इन लोगों को एकांत में रोमांस करना पसंद होता है। इन्‍हें रोमांस के लिए तैयार करने में पार्टनर को सेक्सी ड्रेस व अदाओं का सहारा लेना चाहिए। इन्‍हें अपने घर या शहर की जगह किसी हिल स्टेशन पर जाकर वादियों में रोमांस करना पसंद होता है। इस राशि की लडकियां रोमांटिक संगीत, फिल्‍म और बातों को पसंद करती हैं।

मकर राशि के लोगों को प्यार भरी बातों से अपनी ओर आकर्षित किया जा सकता है। इस राशि के लोग सेक्स करने के दौरान बात करना पसंद नहीं करते। इस राशि की लड़कियां रोमांटिक बातें करने और डेट पर जाने के बाद ही रोमांस के मूड में आती हैं। भोजन में इन्‍हें अधिक गर्म चीजें नहीं खानी चाहिए।

कुंभ राशि का स्वामी शनि है। इस राशि के लड़के सेक्‍स में अतिरिक्‍त की चाह रखते हैं। इस राशि की लड़कियां एकांत स्‍थान में अच्‍छे मूड में आती हैं। इस राशि के लोगों को गर्भ भोजन करना चाहिए।

मीन राशि के लडके शीघ्र आकर्षित होती हैं। लडकियों को आंखों में आंखें डालकर देखना व बातें करना अच्छा लगता है। लड़कियों को सरप्राइज गिफ्ट लेना पसंद होता हैं।

नाम, प्रकृति, और / लग्न लग्न के प्रभाव

मेष लग्न लग्न मेष
  मेष राशि के साथ लोगों की बढ़ती कदम पर हमेशा बेचैन है और लगातार कर रहे हैं. क्योंकि उनके सत्तारूढ़ ग्रह मंगल ग्रह है, वे जो उन्हें साहसी, स्वतंत्र, और अपने सबसे अच्छे रूप में प्रेरित करता है ऊर्जा और उत्साह का एक बड़ा सौदा है, लेकिन गुस्सा और उनके worst.They पर उग्र स्वभाव का एक तेज बुद्धि है, लेकिन करने के लिए तय हो जाते हैं अपने ज्ञान और समझ के पैटर्न में. इन लोगों को पहल करने से प्यार है और नेतृत्व से पालन करने के लिए पसंद करते हैं. वे महान नेता बन जाते हैं, अगर वे उनके अस्थिर tempers को नियंत्रित करने के लिए प्रबंधन कर सकते हैं. उनके विचारों और मूड बदलने के लिए, आसानी से कर सकते हैं और वे भी लंबे समय के लिए एक परियोजना के लिए छड़ी की संभावना नहीं है.
  वृषभ लग्न (वृषभ लग्न)
इन व्यक्तियों अक्सर बहुत भाग्यशाली है और उनके बुनियादी एक जगह में रहने की प्रवृत्ति की वजह से समृद्ध कर रहे हैं, अपने पर ध्यान केंद्रित रहने के लक्ष्यों, और संपत्ति जमा. वे व्यावहारिक, सर्वजनोपयोगी मामलों को अच्छी तरह से संबंधित है, और एक उत्कृष्ट बुद्धि और खुद को अभिव्यक्त करने की क्षमता है. वे एक प्रमुख प्रवृत्ति के कुछ रूढ़िवादी और जिद्दी क्या है, और परिवर्तन की किसी भी प्रकार स्वागत नहीं है. रोगी और कड़ी मेहनत, वे भविष्य के लिए त्याग करने को तैयार हैं. उनके काम के एक आदर्शवादी स्वाद के साथ कुछ दीर्घकालिक प्रक्रिया है, जहां एक विचार सफलता की कुंजी है को शामिल कर सकते हैं. वे पितृत्व के दायरे में बाधाओं का सामना कर सकते हैं. वे उन्हें उठाने चुनौतियों के साथ समस्याओं या बच्चों को प्राप्त करने में देरी, या सौदा का अनुभव हो सकता है. उनके सत्तारूढ़ ग्रह शुक्र के प्रभाव के तहत, वे सौंदर्य, सुख, और सद्भाव के बहुत शौकीन हो सकता है, के रूप में विपरीत लिंग के रूप में अच्छी तरह से हो सकता है. लेकिन उनकी शादी के साथी एक थोड़ा तेज और तीव्र होने की संभावना है. शायद साथी या साथी के साथ असहमति होने की एक प्रवृत्ति किसी भी तरह अपने जीवन में कुछ समस्याओं के कारण हो सकता है.
मिथुन लग्न / मिथुन लग्न
मिथुन व्यक्तियों को साहित्य, संगीत, नृत्य, या फिल्म के क्षेत्रों में उत्कृष्टता, और आम तौर पर हो सकता है बहुत निवर्तमान. उनकी हास्य की महान भावना उन्हें सामाजिक घटनाओं पर स्वागत उपस्थिति बनाता है. उनके भाषण काफी भावुक हो सकते हैं, और उनके अर्थपूर्ण सामना करने के लिए दूर दे कि वे कैसे उनके स्पष्ट नरम पक्ष के बावजूद feel.In जाता है, वे एक उल्लेखनीय साहस और उद्यमी भावना दिखा सकते हैं. उनके कैरियर के लिए शिक्षा या समग्र ज्ञान के कुछ शाखा के दायरे में होने की संभावना है. नई परियोजनाओं की शुरुआत मिथुन मूल निवासी के लिए आसान है, लेकिन अंत करने के लिए काम और समय सीमा बैठक difficult.They तेजी से ऊब मिलता है कि चुनौती या उनके उज्जवल बुद्धि मनोरंजन के असफल विषयों में अपनी रुचि खो सकता है हो सकता है.
Karka लग्न / लग्न कैंसर
इन मूल निवासी बहुत संवेदनशील और बुद्धिमान हैं, लेकिन वे कभी कभी नर्वस हैं या आसानी से बल दिया हो सकता है. अत्यधिक भावनात्मक और अक्सर मानसिक, वे खुशी से प्यार है और संपत्ति के अधिग्रहण की संभावना है. उनकी सबसे बुरा में, वे कुछ कंजूस हो सकता है, पर सबसे अच्छा, वे तरह, सहायक, और ईमानदार दोस्त हो सकता है. उनके कोमल और जोरदार प्रकृति के बावजूद, वे सोच और शक्ति के साथ अभिनय करने में सक्षम हैं. हालांकि कैंसर के मूल निवासी अक्सर शादी में अशुभ हैं, वे संलग्न हैं और अपने बच्चों और परिवार के लिए समर्पित है. वे आम तौर पर एक साथी है, जो उन्हें उम्र या समग्र परिपक्वता में बढ़कर है. शादी
सिंह लग्न / लियो लग्न
मेष प्रकार की तरह, लियो एक उग्र स्वभाव है जो साहस और उद्देश्य के एक मजबूत भावना पैदा करता है, लेकिन जो भी क्रोध बढ़ जाती है और गर्म करने के लिए जन्म देता है गुस्सा.लियो बढ़ती लोग अक्सर महत्वाकांक्षी के रूप में अच्छी तरह से, लेकिन अपने उद्देश्यों को साकार करने के लिए संघर्ष हो सकता है. वे आम तौर पर हंसमुख, गर्म दिल, ईमानदार, और कुछ रूढ़िवादी रहे हैं. वे अक्सर ज्ञान के अधिग्रहण के लिए एक जुनून है. सुखी विवाहित जीवन आमतौर पर देरी हो रही है या साथी कुछ दूर है. उम्र, संस्कृति, या शारीरिक रूप में
कन्या लग्न / कन्या लग्न
कन्या मूल निवासी अत्यधिक कुशल और बहुत चालाक हैं, वे आत्मविश्वास की कमी हो सकती है. उनकी स्पष्ट भेदभाव के बावजूद, वे कभी कभी अपने emotions.Mercury के प्रभाव से दूर हो सकता है किया जाना है उन्हें सरल, राजनयिक, और चतुर बना सकते हैं, और उन्हें जीवन में उच्च वृद्धि करने के लिए सक्षम है. हालांकि, वे बेहद संवेदनशील होते हैं और बहुत ज्यादा परेशान तनाव से पीड़ित हो सकता है. कई बार वे विवरण पर चिंता के साथ अभिभूत हो और एक मामले की बड़ी तस्वीर देखने के लिए असफल.
तुला लग्न / लग्न तुला
  तुला के मूल निवासी बढ़ती भी वासना में डूबे हुए किया जा रहा है की एक प्रतिष्ठा है, लेकिन वे भी हैं तर्कशील, सशक्त, और clarity.They साथ मानव स्वभाव देख कुशल आदर्शवादी बजाय व्यावहारिक हैं, और उनके आदर्शों की शक्ति दूसरों पर एक महान है, शायद यह भी कृत्रिम निद्रावस्था का प्रभाव फिराना कर सकते हैं. ऐसे मामलों में, यह मुश्किल है उन लोगों के साथ कारण है. शुक्र के प्रभाव के कारण, वे सुंदरता और प्यार संगीत और कला की सराहना करते हैं.
Vrischika लग्न / लग्न वृश्चिक
  इन लोगों को कुछ व्यंग्यात्मक और हठीला हो सकता है, हालांकि वे भी आध्यात्मिक या मनोगत कला, के रूप में अच्छी तरह से अधिक वैज्ञानिक चिंताओं में कुशल हो सकता है सकते हैं हालांकि प्रकृति द्वारा sensualists के, वे भी उनकी प्रवृत्ति को नियंत्रित करने और खुद को अनुशासित करने में अच्छा कर रहे हैं. वे उत्साह और एक चुनौती से प्यार है, वे अपने स्वयं के वकील रखने के लिए और दूसरों के द्वारा आसानी से प्रभावित नहीं कर रहे हैं.
धनु लग्न (धनु लग्न)
  ठेठ धनु बढ़ती व्यक्तित्व धर्म और दर्शन को प्यार करता है, लेकिन इन मामलों में पीढ़ी रूढ़िवादी हो सकता है. सक्रिय, उत्साही, और उद्यमी, इन व्यक्तियों को भी कुछ हद तक परेशान हो सकता है. वे बेहद ईमानदार और स्वभाव से भी विनम्र हैं, पाखंड और छिछलापन despising. वे अक्सर अपनी भावनाओं और कामुक इच्छाओं पर अच्छा नियंत्रण है.

   
मकर / लग्न मकर लग्न
शनि के इन मूल निवासी दृढ़ता, प्रयोजन के एक मजबूत भावना है, और उदासीन शांति के साथ जीवन की कठिनाइयों को सहन करने की क्षमता दे सकता है. मकर राशि मूल निवासी हैं, व्यावहारिक, महत्वाकांक्षी और responsible.They परिवर्तन का डर नहीं है और देखने के अपने अंक में लचीला कर रहे हैं. वे वित्त से निपटने में अच्छा कर रहे हैं, और संरक्षण हो जाते हैं. वे उनके उनके लिए कड़ी मेहनत और लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रहना करने की क्षमता के कारण उपक्रमों में कुशल और अक्सर सफल रहे हैं. उनके व्यावहारिक आकांक्षाओं है कि उन्हें महान हाइट्स करने के लिए नेतृत्व कर सकते हैं, हालांकि वे उनकी उपलब्धियों में थोड़ा खुशी मिल सकता है. उनके पूर्णतावाद शादी में कठिनाइयों का कारण हो सकता है. अपने सबसे अच्छे रूप में, वे दार्शनिक और उदार हैं.
कुंभ लग्न / कुंभ लग्न
दार्शनिकों और प्रकृति द्वारा आदर्शवादी, महान साहित्यिक या मिलनसार कौशल के साथ इष्ट, राशि अक्सर उनके विचारों के मामले में दुनिया पर अपनी छाप बना. व्यक्तित्व के रूप में वे डरपोक, झगड़ालू, और लंबे समय से उनके जीवन पर शनि जोरदार प्रभाव के कारण दुखी हो सकता है. उनके स्वास्थ्य नाजुक हो सकता है. अपने सबसे अच्छे रूप में, वे महान मानवीय प्रवृत्ति के पास है.
मीणा लग्न / लग्न मीन
इन मूल निवासी गहरा आध्यात्मिक है, हालांकि उनके आध्यात्मिकता आमतौर पर बहुत ही रूढ़िवादी है और वे मुख्यधारा के असुविधाजनक कदम बाहर महसूस कर सकते हैं. दूसरों के लिए और अक्सर विश्वास में कमी पर निर्भर है, वे अक्सर रहस्यमय और प्रकृति द्वारा मानसिक हैं. आमतौर पर ईमानदार और निष्पक्ष दिमाग, वे नम्रता और दयालुता में वे क्या सशक्तता या व्यक्तिगत शक्ति में कमी. यह महत्वपूर्ण है हमेशा एक व्यक्ति कुंडली में सवाल में घर की अद्वितीय स्थिति पर विचार लग्न (Lagna) के आधार पर किसी भी निष्कर्ष करने के लिए कूद से पहले. प्रत्येक व्यक्ति के वाक्य और बयान को आसानी से एक विशेष चार्ट में कुछ अन्य कारक द्वारा counteracted के किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, हम वृषभ जन्म के मामले में कहा कि व्यक्ति तथ्य बुध द्वितीय हाउस नियमों पर आधारित बातूनी हो जाएगा. इस बयान, निरस्त किया जाएगा अगर पारा बारहवीं हाउस नुकसान के घर में रखा गया है

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

कारोबारी सफलता


कारोबारी सफलता के लिए प्रत्येक अमावस्या के दिन अपने पूरे घर की सुंदर सफाई करें। तत्पश्चात परिवार के सभी सदस्य नहा धोकर शुद्ध वस्त्र धारण करके एक जगह एकत्रित होकर अपने बीच में चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछा दें। वस्त्र के ऊपर 11 मुट्ठी मसूर की दाने रखकर उसके ऊपर एक चौमुखा दीपक प्रज्ज्वलित कर रख दें। तत्पश्चात घर के सभी सदस्य सुंदर काण्ड का पाठ करें। संपूर्ण कष्टों से छुटकारा मिलेगा।
* नया कारोबार, नई दुकान या कोई भी नया कार्य करने से पूर्व मिट्टी के पांच पात्र लें जिसमें सवाकिलो सामान आ जाएं। प्रत्येक पात्र में सवा किलो सफेद तिल, सवा किलो पीली सरसों, सवा किलो उड़द, सवा किलो जौ, सवा किलो साबुत मूंग भर दें। मिट्टी के ढक्कन से ढंक कर सभी पात्र को लाल कपड़े से मुंह बांध दें और अपने व्यवसायकि स्थल पर इन पांचों कलश को रख दें। वर्ष भर यह कलश अपनी दुकान में रखें ग्राहकों का आगमन बड़ी सरलता से बढ़ेगा और कारोबारी समस्या का निवारण भी होगा। एक वर्ष के बाद इन संपूर्ण पात्रों को अपने ऊपर से 11 बार उसार कर बहते पानी में प्रवाह कर दें। और नये पात्र भरकर रख दें।
* यदि आपको अपने कार्य में अनावश्यक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। बार-बार कार्य में रूकावट आ रही हो तो आप अपने घर में शनिवार के दिन तुलसी का पौधा लगाएं और हर रोज सुबह-शाम घी का दीपक जलाने से कार्य में बार-बार आने वाली समस्या का निवारण बड़ी सरलता से हो जाएगा।
* अगर कारोबार में अनावश्यक परेशानी आ रही हो, लाभ मार्ग अवरोध हो रहा हो तो हर रोज शाम को गोधूलि वेला में यानि साढ़े पांच से छ: बजे के बीच में अपने पूजा स्थान में श्री महालक्ष्मी की तस्वीर स्थापित करके या तुलसी के पौधे के सामने में गो घृत का दीपक जलाएं। दीपक प्रज्ज्वलित करने के बाद उसक अंदर अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए एक इलायची डाल दें। ऐसा नियमित 186 दिन करने से व्यापार में लाभ होगा। दीपक और इलायची हमेशा नया प्रयोग में लाएं।
* कारोबार में समस्या आ रही हो, व्यवसाय चल नहीं रहा हो और कर्ज से परेशान हो रहे हो तो इस प्रयोग को करके देखें। यह प्रयोग किसी भी महीने शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार के दिन शुरू करें और नियमित 186 दिन करें। हर रोज स्नानोपरांत पीपल, बरगद या तुलसी के पेड़ के नीचे चौमुखा देसी घी का दीपक जलाएं। और शुद्ध कंबल का आसन बिछाकर एक पाठ विष्णु सहस्रनाम का करें तथा 11 माला ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र की जाप करें। मां लक्ष्मी की कृपा होगी और कारोबारी समस्या का निवारण हो जाएगा।
* यदि आपके व्यवसाय में बाधाएं चल रही हों तो आपको अपने कार्यस्थल पर पीले रंग की वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए तथा पूजाघर में हल्दी की माला लटकानी चाहिए। भगवान लक्ष्मी-नारायण के मंदिर में लड्डू का भोग लगाना चाहिए।
* व्यवसाय में मनोनुकूल लाभ की प्राप्ति नहीं हो रही हो तो किसी भी शनिवार के दिन नीले कपड़े 21 दानें रक्त गुंजा के बांधकर तिजोरी में रख दें। हर रोज धूप, दीप अवश्य दिखाएं। अपने इष्टदेव का ध्यान करें। ऐसा नियमित करने से व्यापार में लाभ मिलेगा और सफलता भी प्राप्त होगी।
* कारोबारी, पारिवारिक, कानूनी परेशानियों से छुटकारा दिलाने वाला अमोध प्रयोग
आप अपना काम कर रहे हो कठिन परिश्रम के बावजूद भी लोग आपका हक मार देते हैं। अनावश्यक कार्य अवरोध उत्पन्न करते हों। आपकी गलती न होने के बावजूद भी आपको हानि पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा हो तो यह प्रयोग आपके लिए बहुत ही लाभदायक सिध्द होगा। रात्रि में 10 बजे से 12 बजे के बीज में यह उपाय करना बहुत ही शुभ रहेगा। एक चौकी के ऊपर लाल कपड़ा बिछा कर उसके ऊपर 11 जटा वाले नारियल। प्रत्येक नारियल के ऊपर लाल कपड़ा लपेट कर कलावा बांध दें। इन सभी नारियल को चौकी के ऊपर रख दें। घी का दीपक जला करके धूप-दीप नेवैद्य पुष्प और अक्षत अर्पित कर। नारियल के ऊपर कुमकुम से स्वस्तिक बनाए और उन प्रत्येक स्वस्तिक के ऊपर पांच-पांच लौंग रखें और एक सुपारी रखें। माँ भगवती का ध्यान करें। माँ को प्रार्थना करें कष्टों की मुक्ति के लिए। कम्बल का आसन बिछा कर ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:11 माला करें, तत्पश्चात नारियल सहित समस्त सामग्री को सफेद कपड़े में बांध कर अपने ऊपर से 11 बार वार कर सोने वाले पलंग के नीचे रख दें। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में बिना किसी से बात किए यह सामग्री कुएं, तालाब या किसी बहते हुए पानी में प्रवाह कर दें। कानूनी कैसी भी समस्या होगी उससे छुटकारा मिल जाएगा।
* ऋण मुक्ति और धन वापसी के लिये किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के मंगलवार के दिन प्रदोष काल में यह पूजा प्रारंभ करें। किसी भी प्राण प्रतिष्ठित शिव मंदिर में जाकर श्रद्धापूर्वक शिव की उपासना करें। शिव पूजन के उपरांत अपने सामने दो दोने रख दें। एक दोने में यानी बायें हाथ वाले दोनें में 108 बिल्वपत्र पीले चंदन से प्रत्येक बिल्व पत्र में ॐ नम:शिवाय लिखकर रख दें। तत्पश्चात शुद्ध आसन बिछाकर एक बिल्वपत्र अपने दाहिनी हाथ में लें और इस ॐ ऋणमुक्तेश्वर महादेवाय नम:। मंत्र का जाप करें। और दाहिने हाथ वाले दोने में बिल्व पत्र को रख दें। ऐसा 108 बार करें। जाप पूरा होने के उपरांत एक पाठ ऋणमोचन मंगल स्तोत्र का करें। साथ ही सर्वारिष्ट शान्त्यर्थ शनि स्तोत्र का पांच पाठ भी करें। ऐसा नियमित 40 दिन तक पूजा करने से ऋण से छुटकारा मिल जाएगा।


* आप अपने कारोबार में कर्जे से डूबे जा रहे है रात-दिन मेहनत करने के उपरांत भी कर्जा उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है तो यह प्रयोग आपके लिये बहुत ही अनुकूल व फायदेमंद रहेगा। किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथमा के दिन नित्यक्रम से निवृत्त होकर स्नानोपंरात स्वच्छ वस्त्र धारण करें और अपने पूजा स्थान में यह पूजा प्रारंभ करें। 6 इंच लम्बी गूलर की पेड़ की जड़ ले उसके ऊपर 108 बार काले रंग का धागा ॐ गं गणपतये नम:मंत्र का जाप करते हुये लपेटे। भगवान गणेश जी से ऋण मुक्ति की प्रार्थना करें। 108 चक्र होने के बाद इस लकड़ी को स्वच्छ थाली में पीला वस्त्र बिछाकर रख दें। तत्पश्चात श्रद्धानुसार धूप,दीप, नैवद्य, पुष्प अर्पित करें। घी का दीपक प्रज्जवलित कर उसमें एक इलायची डाल दें। शुद्ध आसन बिछाकर अपने सामने हल्दी से रंगे हुये अक्षत रख लें। अपने हाथ में थोड़े से अक्षत लें ॐ गं गणपतये ऋण हरताये नम:मंत्र का जाप करके अक्षत गूलर की लकड़ी के ऊपर छोड़ दे। ऐसा 108 बार करें। अगले दिन यह प्रक्रिया पुन:दोहरायें। ऐसा नवमी तक पूजन करें। नवमी के दिन रात में सवा ग्यारह बजे पुन:एक बार पूजन करें। ऋण हरता गणपति की 11 माला जाप करें। तत्पश्चात इस लकड़ी को अपने ऊपर से 11 बार उसार कर के अपने घर के किसी कोने में गड्डा खेंद कर दबा दे। उसके ऊपर कोई भारी वस्तु रख दें। ऐसा करने से कर्ज से छुटकारा मिल जायेगा।


* किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार के दिन गेहूं के सवा किलो आटा में सवा किलो गुड़ मिलाकर उसके गुलगुले या पूएं बनाएं। शाम के समय हनुमान जी को चमेली के तेल में सिंदूर घोलकर अभिषेक करने के उपरांत घी का दीपक जलाएं और वहीं बैठकर हनुमान चालीसा के 7 पाठ करें। तत्पश्चात हनुमान जी को इन गुलगुले और पूएं का भोग लगाएं और गरीब व जरूरतमंद व्यक्तियों को बांट दें। ऐसा 11 मंगलवार करें, ऋण से छुटकारा मिलेगा।


* ऋण मुक्ति के लिए उपाय सर्वप्रथम पांच गुलाब के फूल लाएं। ध्यान रहे कि उनकी पंखुड़ी टूटी हुई न हो। तत्पश्चात सवा मीटर सफेद कपड़ा, सामने रचो कर बिछाएं और गुलाब के वार फूलों को चारों कोनों पर बांध दें। फिर पांचवा गुलाब मध्य में डालकर गांठ लगा दें। इसे गंगा, यमुन और सरस्वती नदियों में प्रभावित करें। प्रभुकृपा से ऋण मुक्ति और घर में सुख समृध्दि की प्राप्ति होती है।
* व्यवसायिक परेशानी हल के लिये दीवाली के दिन नित्यकर्म से निवृत होकर स्नानोपरांत अपने पूजा स्थान में लक्ष्मी बीसा यंत्र एवं कुबेर यंत्र की श्रद्धापर्वूक स्थापना करने के उपरांत धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प और अक्षत से पंचोपचार पूजन करें। तत्पश्चात शुद्ध आसन बिछाकर स्फटिक की माला पर 11 माला इस ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्यादि पताये धन धान्य समृद्धि में देही दापय दापय स्वाहा मंत्र की जाप करें। संपूर्ण व्यावसायिक परेशानियों का निवारण होगा। हर रोज इस मंत्र की सुबह-शाम एक माला जाप करने से अवश्य धन में वृद्धि होगी।


* व्यापार में घाटा हो रहा हो या काम नहीं चल पा रहा हो, तो आप एक चुटकी आटा लेकर रविवार के दिन व्यापार स्थल या अपनी दुकान के मुख्य द्वार के दोनों ओर थोड़ा-थोड़ा छिड़क दें, साथ में कहें- जिसकी नजर लगी है उसको लग जाये। बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला। यह क्रिया शुक्ल पक्ष में ही करें। संभव हो तो प्रयत्न करें कि इस क्रिया को करते हुए आपको कोई न देखे। गुप्त रूप से यह क्रिया करने पर व्यापार का घाटा दूर होने लगता है। इसके अलावा व्यापार स्थल में मकडिय़ों के जाले व्यापार की वृद्घि को रोकते हैं। अत: व्यापार में बरकत के लिए प्रत्येक शनिवार को दुकान की सफाई आदि करते समय मकड़ी के जालों को अवश्य हटा देना चाहिए।


* जिन उद्योगपतियों या व्यापारियों को काफी प्रयास और अथक परिश्रम करने के बावजूद बिक्री में वृध्दि नहीं हो पा रहा हो तो यह उपाय शुक्ल पक्ष में गुरुवार से प्रारम्भ करें और प्रत्येक गुरुवार को इस क्रिया को दोहराते रहें। घर के मुख्य द्वार के एक कोने को गंगाजल से शुध्द कर लें या धो लें। शुध्द किए गए स्थान पर स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और उस पर थोड़ा दाल और गुड़ रख दें। साथ ही एक घी का दीपक जला दें। ध्यान रहे कि स्वस्तिक का चिह्न हल्दी से ही बनाएं। स्वास्तिक बनाने के बाद उसको बार-बार नहीं देखना चाहिए। यह उपाय बहुत ही सरल है और इसका प्रभाव शीघ्र ही परिलक्षित होने लगता है।


* कारोबार में वृद्धि हेतु ही हर रोज प्रात:काल नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नानोपरांत तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें थोड़ी सी रोली डालकर ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:॥ मंत्र का जाप करते हुए तुलसी के पौधे में जल चढ़ाएं। शाम को गाय के शुद्ध देसी घी का दीपक जलांए और इसी मंत्र की पांच माला जाप करें।


* कठिन परिश्रम व मेहनत करने के उपरांत लाभ की प्राप्ति नहीं हो रही हो तो प्रत्येक गुरुवार के दिन शुभ घड़ी में पीले कपड़े में 9 जोड़े चने की दाल, 9 पीले गोपी चंदन की डलियां, 9 गोमती चक्र इन सबको पोटली बनाकर किसी भी मंदिर में केले के पेड़ के ऊपर शाम के समय टांग दें। साथ ही एक घी का दीपक भी प्रज्ज्वलित कर लें। ऐसा 11 गुरुवार करने से धन की प्राप्ति होगी और व्यवसायिक समस्याओं का निवारण भी होगा।


* धन न रूक रहा हो तो किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार के दिन 1 तांबे का सिक्का, 6 लाल गुंजा लाल कपड़े में बांधकर प्रात: 11 बजे से लेकर 1 बजे के बीच में किसी सुनसान जगह में अपने ऊपर से 11 बार उसार कर 11 इंच गहरा गङ्ढा खोदकर उसमें दबा दें। ऐसा 11 बुधवार करें। दबाने वाली जगह हमेशा नई होनी चाहिए। इस प्रयोग से कारोबार में बरकत होगी, घर में धन रूकेगा।


* धन वृद्धि हेतु किसी भी गुरु पुष्य नक्षत्र के दिन प्रात:काल नित्यकर्म से निवृत होकर स्नानोपरांत शंख पुष्पी की जड़ अपने घर में लेकर आएं इस जड़ को गंगाजल से पवित्र कर दें। पवित्र करने के उपरांत चांदी की डिब्बी में पीले चावल भरकर उसके ऊपर रख दें। श्रद्धानुसार धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प, अक्षत अर्पित कर पंचोपचार पूजन करें। उसके बाद इस डिब्बी को अपनी तिजोरी में रख दें। धन में वृद्धि और कारोबारमें लाभ होगा। हर गुरु पुष्य के दिन शंख पुष्पी की जड़ व चांदी की डिब्बी बदल दें। पहले वाली बहते पानी में प्रवाह कर दें।