tag:blogger.com,1999:blog-7437270724608786082024-02-20T04:09:34.106-08:00RAINBOW JYOTISHAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.comBlogger27125tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-25154667052537438802018-08-29T05:18:00.000-07:002018-08-29T05:18:02.192-07:00पौराणिक कथा : जब सत्यभामा को हुआ रूप का घमंड<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="slid_con rel" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 18px;">
<amp-img class="i-amphtml-layout-responsive i-amphtml-layout-size-defined i-amphtml-element i-amphtml-layout" height="440" i-amphtml-layout="responsive" layout="responsive" src="https://media-webdunia-com.cdn.ampproject.org/i/media.webdunia.com/_media/hi/img/article/2017-08/10/full/1502360182-5841.jpg" srcset="https://media-webdunia-com.cdn.ampproject.org/ii/w680/media.webdunia.com/_media/hi/img/article/2017-08/10/full/1502360182-5841.jpg 680w, https://media-webdunia-com.cdn.ampproject.org/ii/w1200/media.webdunia.com/_media/hi/img/article/2017-08/10/full/1502360182-5841.jpg 1200w" style="display: block; overflow: hidden !important; position: relative;" width="630"><img class="i-amphtml-fill-content i-amphtml-replaced-content" decoding="async" src="https://media-webdunia-com.cdn.ampproject.org/i/media.webdunia.com/_media/hi/img/article/2017-08/10/full/1502360182-5841.jpg" srcset="https://media-webdunia-com.cdn.ampproject.org/ii/w680/media.webdunia.com/_media/hi/img/article/2017-08/10/full/1502360182-5841.jpg 680w, https://media-webdunia-com.cdn.ampproject.org/ii/w1200/media.webdunia.com/_media/hi/img/article/2017-08/10/full/1502360182-5841.jpg 1200w" style="border: none !important; bottom: 0px; display: block; height: 0px; left: 0px; margin: auto; max-height: 100%; max-width: 100%; min-height: 100%; min-width: 100%; padding: 0px !important; position: absolute; right: 0px; top: 0px; width: 0px;" /></amp-img></div>
<div class="author_div_sect" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 18px; padding: 12px 15px 5px; position: relative;">
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<div class="author_div_sect" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 18px; padding: 12px 15px 5px; position: relative;">
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<div class="w_cont_text_a" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 1.125em; padding: 0px 15px;">
श्रीकृष्ण भगवान द्वारका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे। निकट ही गरूड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे। तीनों के चेहरे पर दिव्य तेज झलक रहा था। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे प्रभु! आपने त्रेतायुग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थीं। क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थीं?</div>
<div class="w_cont_text_a" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 1.125em; padding: 0px 15px;">
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<div class="w_cont_text_a" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 1.125em; padding: 0px 15px;">
द्वारकाधीश समझ गए कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान हो गया है। तभी गरूड़ ने कहा कि भगवान क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है? इधर सुदर्शन चक्र से भी रहा नहीं गया और वे भी कह उठे कि भगवान! मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है, क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है?</div>
<div class="w_cont_text_a" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 1.125em; padding: 0px 15px;">
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भगवान मन ही मन मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और इनका अहंकार नष्ट करने का समय आ गया है। ऐसा सोचकर उन्होंने गरूड़ से कहा कि हे गरूड़! तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। गरूड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए</div>
</div>
<div class="w_cont_text_a" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 1.125em; padding: 0px 15px;">
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<div class="w_cont_text_a" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 1.125em; padding: 0px 15px;">
इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी! आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया। मधुसूदन ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई प्रवेश न करे। </div>
<div class="w_cont_text_a" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 1.125em; padding: 0px 15px;">
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भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गए। गरूड़ ने हनुमान के पास पहुंचकर कहा कि हे वानरश्रेष्ठ! भगवान राम, माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। आप मेरे साथ चलें। मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा। </div>
</div>
<div class="w_cont_text_a" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 1.125em; padding: 0px 15px;">
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हनुमान ने विनयपूर्वक गरूड़ से कहा, आप चलिए, मैं आता हूं। गरूड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा? खैर मैं भगवान के पास चलता हूं। यह सोचकर गरूड़ शीघ्रता से द्वारका की ओर उड़े। पर यह क्या? महल में पहुंचकर गरूड़ देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे हैं। गरूड़ का सिर लज्जा से झुक गया। </div>
</div>
<div class="w_cont_text_a" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 1.125em; padding: 0px 15px;">
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तभी श्रीराम ने हनुमान से कहा कि पवनपुत्र! तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए? क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं? </div>
</div>
<div class="w_cont_text_a" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 1.125em; padding: 0px 15px;">
</div>
<div class="w_cont_text_a" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 1.125em; padding: 0px 15px;">
हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुकाकर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकालकर प्रभु के सामने रख दिया।</div>
<div class="w_cont_text_a" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 1.125em; padding: 0px 15px;">
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हनुमान ने कहा कि प्रभु! आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने रोका था इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें। </div>
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<div class="w_cont_text_a" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 1.125em; padding: 0px 15px;">
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भगवान मन ही मन मुस्कुराने लगे। </div>
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हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया- हे प्रभु! आज आपने माता सीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है? </div>
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<div class="w_cont_text_a" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 1.125em; padding: 0px 15px;">
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अब रानी सत्यभामा का अहंकार भंग होने की बारी थी। उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था। रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र व गरूड़जी तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था। वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों की आंखों से आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए। </div>
</div>
<div class="w_cont_text_a" style="background-color: #f6f6f6; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 1.125em; padding: 0px 15px;">
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अद्भुत लीला है प्रभु की! अपने भक्तों के अंहकार को अपने भक्त द्वारा ही दूर किया उन्होंने</div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-74839587150573510862016-09-27T07:21:00.002-07:002016-09-27T07:21:20.927-07:00माँ दुर्गा के लोक कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">१॰ बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये</span><br />“सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।<br />मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥” (अ॰१२,श्लो॰१३)</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा- इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">२॰ बन्दी को जेल से छुड़ाने हेतु</span><br />“राज्ञा क्रुद्धेन चाज्ञप्तो वध्यो बन्धगतोऽपि वा।<br />आघूर्णितो वा वातेन स्थितः पोते महार्णवे।।” (अ॰१२, श्लो॰२७)</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">३॰ सब प्रकार के कल्याण के लिये</span><br />“सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।<br />शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१०)</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- नारायणी! तुम सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">४॰ दारिद्र्य-दु:खादिनाश के लिये</span><br />“दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:<br />स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।<br />दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या<br />सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता॥” (अ॰४,श्लो॰१७)</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दु:ख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दयार्द्र रहता हो।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">४॰ वित्त, समृद्धि, वैभव एवं दर्शन हेतु</span><br />“यदि चापि वरो देयस्त्वयास्माकं महेश्वरि।।<br />संस्मृता संस्मृता त्वं नो हिंसेथाः परमापदः।<br />यश्च मर्त्यः स्तवैरेभिस्त्वां स्तोष्यत्यमलानने।।<br />तस्य वित्तर्द्धिविभवैर्धनदारादिसम्पदाम्।<br />वृद्धयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथाः सर्वदाम्बिके।। (अ॰४, श्लो॰३५,३६,३७)</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">५॰ समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये</span><br />“विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।<br />त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति :॥” (अ॰११, श्लो॰६)</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- देवि! सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे एवं परा वाणी हो।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">६॰ शास्त्रार्थ विजय हेतु</span><br />“विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपेष्वाद्येषु च का त्वदन्या।<br />ममत्वगर्तेऽति महान्धकारे, विभ्रामयत्येतदतीव विश्वम्।।” (अ॰११, श्लो॰ ३१)</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">७॰ संतान प्राप्ति हेतु</span><br />“नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भ सम्भवा।<br />ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी” (अ॰११, श्लो॰४२)</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">८॰ अचानक आये हुए संकट को दूर करने हेतु</span><br />“ॐ इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति।<br />तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्ॐ।।” (अ॰११, श्लो॰५५)</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">९॰ रक्षा पाने के लिये</span><br />शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।<br />घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- देवि! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">१०॰ शक्ति प्राप्ति के लिये</span><br />सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।<br />गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">११॰ प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये</span><br />प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।<br />त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ। त्रिलोकनिवासियों की पूजनीया परमेश्वरि! सब लोगों को वरदान दो।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">१२॰ विविध उपद्रवों से बचने के लिये</span><br />रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।<br />दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- जहाँ राक्षस, जहाँ भयंकर विषवाले सर्प, जहाँ शत्रु, जहाँ लुटेरों की सेना और जहाँ दावानल हो, वहाँ तथा समुद्र के बीच में भी साथ रहकर तुम विश्व की रक्षा करती हो।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">१३॰ बाधा शान्ति के लिये</span><br />“सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।<br />एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥” (अ॰११, श्लो॰३८)</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">१४॰ सर्वविध अभ्युदय के लिये</span><br />ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्ग:।<br />धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- सदा अभ्युदय प्रदान करनेवाली आप जिन पर प्रसन्न रहती हैं, वे ही देश में सम्मानित हैं, उन्हीं को धन और यश की प्राप्ति होती है, उन्हीं का धर्म कभी शिथिल नहीं होता तथा वे ही अपने हृष्ट-पुष्ट स्त्री, पुत्र और भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">१५॰ सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिये</span><br />पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।<br />तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- मन की इच्छा के अनुसार चलनेवाली मनोहर पत्नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारनेवाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">१६॰ आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये</span><br />देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।<br />रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">१७॰ महामारी नाश के लिये</span><br />जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।<br />दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">१८॰ रोग नाश के लिये</span><br />“रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।<br />त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥” (अ॰११, श्लो॰ २९)</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाञ्छित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">१९॰ विपत्ति नाश के लिये</span><br />“शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।<br />सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१२)</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- शरण में आये हुए दीनों एवं पीडितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">२०॰ पाप नाश के लिये</span><br />हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।<br />सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- देवि! जो अपनी ध्वनि से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके दैत्यों के तेज नष्ट किये देता है, वह तुम्हारा घण्टा हमलोगों की पापों से उसी प्रकार रक्षा करे, जैसे माता अपने पुत्रों की बुरे कर्मो से रक्षा करती है।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">१७॰ भय नाश के लिये</span><br />“सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।<br />भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥<br />एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।<br />पातु न: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥<br />ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।<br />त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥ ” (अ॰११, श्लो॰ २४,२५,२६)</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्ति यों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है। कात्यायनी! यह तीन लोचनों से विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है। भद्रकाली! ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमें बचाये। तुम्हें नमस्कार है।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">२१॰ विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये</span><br />करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी<br />शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मङ्गल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डाले।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">२२॰ विश्व की रक्षा के लिये</span><br />या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:<br />पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।<br />श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा<br />तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रतारूप से, शुद्ध अन्त:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जारूप से निवास करती हैं, उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं। देवि! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">२३॰ विश्व के अभ्युदय के लिये</span><br />विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं<br />विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।<br />विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति<br />विश्वाश्रया ये त्वयि भक्ति नम्रा:॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- विश्वेश्वरि! तुम विश्व का पालन करती हो। विश्वरूपा हो, इसलिये सम्पूर्ण विश्व को धारण करती हो। तुम भगवान् विश्वनाथ की भी वन्दनीया हो। जो लोग भक्तिपूर्वक तुम्हारे सामने मस्तक झुकाते हैं, वे सम्पूर्ण विश्व को आश्रय देनेवाले होते हैं।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">२४॰ विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये</span><br />देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद<br />प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।<br />प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं<br />त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- शरणागत की पीडा दूर करनेवाली देवि! हमपर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचर जगत् की अधीश्वरी हो।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">२५॰ विश्व के पाप-ताप निवारण के लिये</span><br />देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य:।<br />पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- देवि! प्रसन्न होओ। जैसे इस समय असुरों का वध करके तुमने शीघ्र ही हमारी रक्षा की है, उसी प्रकार सदा हमें शत्रुओं के भय से बचाओ। सम्पूर्ण जगत् का पाप नष्ट कर दो और उत्पात एवं पापों के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाले महामारी आदि बडे-बडे उपद्रवों को शीघ्र दूर करो।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">२६॰ विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिये</span><br />यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो<br />ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तु मलं बलं च।<br />सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय<br />नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- जिनके अनुपम प्रभाव और बल का वर्णन करने में भगवान् शेषनाग, ब्रह्माजी तथा महादेवजी भी समर्थ नहीं हैं, वे भगवती चण्डिका सम्पूर्ण जगत् का पालन एवं अशुभ भय का नाश करने का विचार करें।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">२७॰ सामूहिक कल्याण के लिये</span><br />देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या<br />निश्शेषदेवगणशक्ति समूहमूत्र्या।<br />तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां<br />भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
अर्थ :- सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरूप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है, समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीया उन जगदम्बा को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं। वे हमलोगों का कल्याण करें। </div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">२८॰ भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिये</span><br />विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।<br />रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">२९॰ पापनाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिये</span><br />नतेभ्यः सर्वदा भक्तया चण्डिके दुरितापहे।<br />रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">३०॰ स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिये</span><br />सर्वभूता यदा देवि स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।<br />त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">३१॰ स्वर्ग और मुक्ति के लिये</span><br />“सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनस्य ह्रदि संस्थिते।<br />स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोस्तुऽते॥” (अ॰११, श्लो८)</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">३२॰ मोक्ष की प्राप्ति के लिये</span><br />त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या<br />विश्वस्य बीजं परमासि माया।<br />सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्<br />त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">३३॰ स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने के लिये</span><br />दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।<br />मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय॥</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
<span style="color: blue;">३४॰ प्रबल आकर्षण हेतु</span><br />“ॐ महामायां हरेश्चैषा तया संमोह्यते जगत्,<br />ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा।<br />बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।” (अ॰१, श्लो॰५५)</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Lucida Grande", "Lucida Sans Unicode", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 12.48px; line-height: 1.5em; margin-bottom: 1.2em; margin-top: 1.2em;">
उपरोक्त मंत्रों को संपुट मंत्रों के उपयोग में लिया जा सकता है अथवा कार्य सिद्धि के लिये स्वतंत्र रुप से भी इनका पुरश्चरण किया जा सकता है। कुछ अन्य मंत्रों की चर्चा व उपरोक्त मंत्रों के विधान भी अगली पोस्टों में देने की कोशिश करुंगी।</div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-64870585504660837012013-05-07T23:31:00.002-07:002013-05-07T23:31:09.900-07:00लाल किताब के अनुसार जिस घर में कोई ग्रह न हो तथा जिस घर पर किसी ग्रह की नज़र नहीं पड़ती हो उसे सोया हुआ घर माना जाता है. <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: red;"><b>जिन लोगों की कुण्डली में प्रथम भाव सोया हुआ हो उन्हें इस घर को जगाने के
लिए मंगल का उपाय करना चाहिए. मंगल का उपाय करने के लिए मंगलवार का व्रत
करना चाहिए. मंगलवार के दिन हनुमान जी को लडुडुओं का प्रसाद चढ़ाकर बांटना
चाहिए. मूंगा धारण करने से भी प्रथम भाव जागता है. <br /><br />अगर दूसरा घर
सोया हुआ हो तो चन्द्रमा का उपाय शुभ फल प्रदान करता है. चन्द्र के उपाय के
लिए चांदी धारण करना चाहिए. माता की सेवा करनी चाहिए एवं उनसे आशीर्वाद
प्राप्त करना चाहिए. मोती धारण करने से भी लाभ मिलता है. <br /><br />तीसरे घर
को जगाने के लिए बुध का उपाय करना लाभ देता है. बुध के उपाय हेतु दुर्गा
सप्तशती का पाठ करना चाहिए. बुधवार के दिन गाय को चारा देना चाहिए.<br /><br />लाल किताब के अनुसार किसी व्यक्ति की कुण्डली में अगर चौथा घर सोया हुआ है तो चन्द्र का उपाय करना लाभदायी होता है. <br /><br />पांचवें
घर को जागृत करने के लिए सूर्य का उपाय करना फायदेमंद होता है. नियमित
आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ एवं रविवार के दिन लाल भूरी चीटियों को आटा,
गुड़ देने से सूर्य की कृपा प्राप्त होती है. <br /><br />छठे घर को जगाने के
लिए राहु का उपाय करना चाहिए. जन्मदिन से आठवां महीना शुरू होने पर पांच
महीनों तक बादाम मन्दिर में चढ़ाना चाहिए, जितना बादाम मन्दिर में चढाएं
उतना वापस घर में लाकर सुरक्षित रख दें. घर के दरवाजा दक्षिण में नहीं रखना
चाहिए. इन उपायों से छठा घर जागता है क्योंकि यह राहु का उपाय है.<br /><br />सोये हुए सातवें घर के लिए शुक्र को जगाना होता है. शुक्र को जगाने के लिए आचरण की शुद्धि सबसे आवश्यक है. <br /><br />सोये हुए आठवें घर के लिए चन्द्रमा का उपाय शुभ फलदायी होता है. <br /><br />जिनकी
कुण्डली में नवम भाव सोया हो उनहें गुरूवार के दिन पीलावस्त्र धारण करना
चाहिए. सोना धारण करना चाहिए व माथे पर हल्दी अथवा केशर का तिलक करना
चाहिए. इन उपाय से गुरू प्रबल होता है और नवम भाव जागता है. <br /><br />दशम भाव को जागृत करने हेतु शनिदेव का उपाय करना चाहिए. <br /><br />एकादश भाव के लिए भी गुरू का उपाय लाभकारी होता है. <br /><br />अगर
बारहवां घ्रर सोया हुआ हो तो घर मे कुत्ता पालना चाहिए. पत्नी के भाई की
सहायता करनी चाहिए. मूली रात को सिरहाने रखकर सोना चाहिए और सुबह मंदिर मे
दान करना चाहिए..
</b></span></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-59533991283226469182012-08-21T18:40:00.000-07:002012-08-21T18:40:21.132-07:00तंत्र से लक्ष्मी प्राप्ति के प्रयोग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">नागेश्वर तंत्रःनागेश्वर</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> को प्रचलित भाषा में ‘नागकेसर’ कहते हैं। काली मिर्च के समान गोल, गेरु के रंग का यह गोल फूल घुण्डीनुमा होता है। पंसारियों की दूकान से आसानी से प्राप्त हो जाने वाली नागकेसर शीतलचीनी (कबाबचीनी) के आकार से मिलता-जुलता फूल होता है। यही यहाँ पर प्रयोजनीय माना गया है।१॰ किसी भी पूर्णिमा के दिन बुध की होरा में गोरोचन तथा नागकेसर खरीद कर ले आइए। बुध की होरा काल में ही कहीं से अशोक के वृक्ष का एक अखण्डित पत्ता तोड़कर लाइए। गोरोचन तथा नागकेसर को दही में घोलकर पत्ते पर एक स्वस्तिक चिह्न बनाएँ। जैसी भी श्रद्धाभाव से पत्ते पर बने स्वस्तिक की पूजा हो सके, करें। एक माह तक देवी-देवताओं को धूपबत्ती दिखलाने के साथ-साथ यह पत्ते को भी दिखाएँ। आगामी पूर्णिमा को बुध की होरा में यह प्रयोग पुनः दोहराएँ। अपने प्रयोग के लिये प्रत्येक पुर्णिमा को एक नया पत्ता तोड़कर लाना आवश्यक है। गोरोचन तथा नागकेसर एक बार ही बाजार से लेकर रख सकते हैं। पुराने पत्ते को प्रयोग के बाद कहीं भी घर से बाहर पवित्र स्थान में छोड़ दें।</span><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">२॰ किसी शुभ-मुहूर्त्त में नागकेसर लाकर घर में पवित्र स्थान पर रखलें। सोमवार के दिन शिवजी की पूजा करें और प्रतिमा पर चन्दन-पुष्प के साथ नागकेसर भी अर्पित करें। पूजनोपरान्त किसी मिठाई का नैवेद्य शिवजी को अर्पण करने के बाद यथासम्भव मन्त्र का भी जाप करें ‘ॐ नमः शिवाय’। उपवास भी करें। इस प्रकार २१ सोमवारों तक नियमित साधना करें। वैसे नागकेसर तो शिव-प्रतिमा पर नित्य ही अर्पित करें, किन्तु सोमवार को उपवास रखते हुए विशेष रुप से साधना करें। अन्तिम अर्थात् २१वें सोमवार को पूजा के पश्चात् किसी सुहागिनी-सपुत्रा-ब्राह्मणी को निमन्त्रण देकर बुलाऐं और उसे भोजन, वस्त्र, दान-दक्षिणा देकर आदर-पूर्वक विदा करें।इक्कीस सोमवारों तक नागकेसर-तन्त्र द्वारा की गई यह शिवजी की पूजा साधक को दरिद्रता के पाश से मुक्त करके धन-सम्पन्न बना देती है।</span><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">३॰ पीत वस्त्र में नागकेसर, हल्दी, सुपारी, एक सिक्का, ताँबे का टुकड़ा, चावल पोटली बना लें। इस पोटली को शिवजी के सम्मुख रखकर, धूप-दीप से पूजन करके सिद्ध कर लें फिर आलमारी, तिजोरी, भण्डार में कहीं भी रख दें। यह धनदायक प्रयोग है। इसके अतिरिक्त “नागकेसर” को प्रत्येक प्रयोग में “ॐ नमः शिवाय” से अभिमन्त्रित करना चाहिए।</span><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">४॰ कभी-कभी उधार में बहुत-सा पैसा फंस जाता है। ऐसी स्थिति में यह प्रयोग करके देखें-किसी भी शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रुई धुनने वाले से थोड़ी साफ रुई खरीदकर ले आएँ। उसकी चार बत्तियाँ बना लें। बत्तियों को जावित्री, नागकेसर तथा काले तिल (तीनों अल्प मात्रा में) थोड़ा-सा गीला करके सान लें। यह चारों बत्तियाँ किसी चौमुखे दिए में रख लें। रात्रि को सुविधानुसार किसी भी समय दिए में तिल का तेल डालकर चौराहे पर चुपके से रखकर जला दें। अपनी मध्यमा अंगुली का साफ पिन से एक बूँद खून निकाल कर दिए पर टपका दें। मन में सम्बन्धित व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम, जिनसे कार्य है, तीन बार पुकारें। मन में विश्वास जमाएं कि परिश्रम से अर्जित आपकी धनराशि आपको अवश्य ही मिलेगी। इसके बाद बिना पीछे मुड़े चुपचाप घर लौट आएँ। अगले दिन सर्वप्रथम एक रोटी पर गुड़ रखकर गाय को खिला दें। यदि गाय न मिल सके तो उसके नाम से निकालकर घर की छत पर रख दें।</span><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">५॰ जिस किसी पूर्णिमा को सोमवार हो उस दिन यह प्रयोग करें। कहीं से नागकेसर के फूल प्राप्त कर, किसी भी मन्दिर में शिवलिंग पर पाँच बिल्वपत्रों के साथ यह फूल भी चढ़ा दीजिए। इससे पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, गंगाजल, शहद, दही से धोकर पवित्र कर सकते हो। तो यथाशक्ति करें। यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक निरन्तर करते रहें। इस पूजा में एक दिन का भी नागा नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर आपकी पूजा खण्डित हो जायेगी। आपको फिर किसी पूर्णिमा के दिन पड़नेवाले सोमवार को प्रारम्भ करने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। इस एक माह के लगभग जैसी भी श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना बन पड़े, करें। भगवान को चढ़ाए प्रसाद के ग्रहण करने के उपरान्त ही कुछ खाएँ। अन्तिम दिन चढ़ाए गये फूल तथा बिल्वपत्रों में से एक अपने साथ श्रद्धाभाव से घर ले आएँ। इन्हें घर, दुकान, फैक्ट्री कहीं भी पैसे रखने के स्थान में रख दें। धन-सम्पदा अर्जित कराने में नागकेसर के पुष्प चमत्कारी प्रभाव दिखलाते हैं।</span></b></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-37784564507758470402012-08-21T03:15:00.002-07:002012-08-21T03:15:37.262-07:00कुंडली मिलान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: red; font-size: large;"><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br class="Apple-interchange-newline" />भारतीय ज्योतिष में विवाह शादी के लिए कुंडली मिलान के लिए गुण मिलान की विधि आज भी सबसे अधिक प्रचलित है। इस विधि के अनुसार वर-वधू की जन्म कुंडलियों में चन्द्रमा की स्थिति के आधार पर निम्नलिखित अष्टकूटों का मिलान किया जाता है।<br />1) वर्ण<br />2) वश्य<br />3) तारा<br />4) योनि<br />5) ग्रह-मैत्री<br />6) गण<br />7) भकूट<br />8) नाड़ी<br /><br />उपरोक्त अष्टकूटों को क्रमश: एक से आठ तक गुण प्रदान किये जाते हैं, जैसे कि वर्ण को एक, नाड़ी को आठ तथा बाकी सबको इनके बीच में दो से सात गुण प्रदान किये जाते हैं। इन गुणों का कुल जोड़ 36 बनता है तथा इन्हीं 36 गुणों के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित किया जाता है। 36 में से जितने अधिक गुण मिलें, उतना ही अच्छा कुंडलियों का मिलान माना जाता है। 36 गुण मिलने पर उत्तम, 36 से 30 तक बहुत बढ़िया, 30 से 25 तक बढ़िया तथा 25 से 20 तक सामान्य मिलान माना जाता है। 20 से कम गुण मिलने पर कुंडलियों का मिलान शुभ नहीं माना जाता है। </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />किन्तु व्यवहारिक रूप में गुण मिलान की यह विधि अपने आप में पूर्ण नहीं है तथा सिर्फ इसी विधि के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित कर देना उचित नहीं है। इस विधि के अनुसार वर-वधू की कुंडलियों में नवग्रहों में से सिर्फ चन्द्रमा की स्थिति ही देखी जाती है तथा बाकी के आठ ग्रहों के बारे में बिल्कुल भी विचार नहीं किया जाता जो किसी भी पक्ष से व्यवहारिक नहीं है क्योंकि नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह का अपना महत्त्व है तथा किसी भी एक ग्रह के आधार पर इतना महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया जा सकता। इस लिए गुण मिलान की यह विधि कुंडलियों के मिलान की विधि का एक हिस्सा तो हो सकती है लेकिन पूर्ण विधि नहीं। आइए अब विचार करें कि एक अच्छे ज्योतिषि को कुंडलियों के मिलान के समय किन पक्षों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।</span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />सबसे पहले एक अच्छे ज्योतिषि को यह देखना चाहिए कि क्या वर-वधू दोनों की कुंडलियों में सुखमय वैवाहिक जीवन के लक्ष्ण विद्यमान हैं या नहीं। उदाहरण के लिए अगर दोनों में से किसी एक कुंडली मे तलाक या वैध्वय का दोष विद्यमान है जो कि मांगलिक दोष, पित्र दोष या काल सर्प दोष जैसे किसी दोष की उपस्थिति के कारण बनता हो, तो बहुत अधिक संख्या में गुण मिलने के बावज़ूद भी कुंडलियों का मिलान पूरी तरह से अनुचित हो सकता है। इसके पश्चात वर तथा वधू दोनों की कुंडलियों में आयु की स्थिति, कमाने वाले पक्ष की भविष्य में आर्थिक सुदृढ़ता, दोनों कुंडलियों में संतान उत्पत्ति के योग, दोनों पक्षों के अच्छे स्वास्थय के योग तथा दोनों पक्षों का परस्पर शारीरिक तथा मानसिक सामंजस्य देखना चाहिए। उपरोक्त्त विष्यों पर विस्तृत विचार किए बिना कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित करना मेरे विचार से सर्वथा अनुचित है। इस लिए कुंडलियों के मिलान में दोनों कुंडलियों का सम्पूर्ण निरीक्षण करना अति अनिवार्य है तथा सिर्फ गुण मिलान के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित करने के परिणाम दुष्कर हो सकते हैं। </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> सिर्फ गुण मिलान की विधि से ही 25 से अधिक गुण मिलने के कारण वर-वधू की शादी करवा दी गई तथा कुंडली मिलान के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया गया जिसके परिणाम स्वरुप इनमें से बहुत से केसों में शादी के बाद पति पत्नि में बहुत तनाव रहा तथा कुछ केसों में तो तलाक और मुकद्दमें भी देखने को मिले। अगर 28-30 गुण मिलने के बाद भी तलाक, मुकद्दमें तथा वैधव्य जैसी परिस्थितियां देखने को मिलती हैं तो इसका सीधा सा मतलब निकलता है कि गुण मिलान की प्रचलित विधि सुखी वैवाहिक जीवन बताने के लिए अपने आप में न तो पूर्ण है तथा न ही सक्षम। इसलिए इस विधि को कुंडली मिलान की विधि का एक हिस्सा मानना चाहिए न कि अपने आप में एक सम्पूर्ण विधि।<br /><br /><br />भारतीय ज्योतिष में कुंडली मिलान के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की विधि में मिलाए जाने वाले अष्टकूटों में नाड़ी और भकूट को सबसे अधिक गुण प्रदान किए जाते हैं। नाड़ी को 8 तथा भकूट को 7 गुण प्रदान किए जाते हैं। इस तरह अष्टकूटों के इस मिलान में प्रदान किए जाने वाले 36 गुणों में से 15 गुण केवल इन दो कूटों अर्थात नाड़ी और भकूट के हिस्से में ही आ जाते हैं। इसी से गुण मिलान की विधि में इन दोनों के महत्व का पता चल जाता है। नाड़ी और भकूट दोनों को ही या तो सारे के सारे या फिर शून्य गुण प्रदान किए जाते हैं, अर्थात नाड़ी को 8 या 0 तथा भकूट को 7 या 0 अंक प्रदान किए जाते हैं। नाड़ी को 0 अंक मिलने की स्थिति में वर-वधू की कुंडलियों में नाड़ी दोष तथा भकूट को 0 अंक मिलने की स्थिति में वर-वधू की कुंडलियों में भकूट दोष बन जाता है। भारतीय ज्योतिष में प्रचलित धारणा के अनुसार इन दोनों दोषों को अत्यंत हानिकारक माना जाता है तथा ये दोनों दोष वर-वधू के वैवाहिक जीवन में अनेक तरह के कष्टों का कारण बन सकते हैं और वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु का कारण तक बन सकते हैं। तो आइए आज भारतीय ज्योतिष की एक प्रबल धारणा के अनुसार अति महत्वपूरण माने जाने वाले इन दोनों दोषों के बारे में चर्चा करते हैं। </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />आइए सबसे पहले यह जान लें कि नाड़ी और भकूट दोष वास्तव में होते क्या हैं तथा ये दोनों दोष बनते कैसे हैं। नाड़ी दोष से शुरू करते हुए आइए सबसे पहले देखें कि नाड़ी नाम का यह कूट वास्तव में होता क्या है। नाड़ी तीन प्रकार की होती है, आदि नाड़ी, मध्या नाड़ी तथा अंत नाड़ी। प्रत्येक व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा की किसी नक्षत्र विशेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है। नक्षत्र संख्या में कुल 27 होते हैं तथा इनमें से किन्हीं 9 विशेष नक्षत्रों में चन्द्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है। उदाहरण के लिए :</span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की आदि नाड़ी होती है :</span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तर फाल्गुणी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा तथा पूर्व भाद्रपद। </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की मध्य नाड़ी होती है :</span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्व फाल्गुणी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा तथा उत्तर भाद्रपद।</span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की अंत नाड़ी होती है :</span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />कृत्तिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाती, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती। </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> गुण मिलान करते समय यदि वर और वधू की नाड़ी अलग-अलग हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 8 अंक प्राप्त होते हैं, जैसे कि वर की आदि नाड़ी तथा वधू की नाड़ी मध्या अथवा अंत। किन्तु यदि वर और वधू की नाड़ी एक ही हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 0 अंक प्राप्त होते हैं तथा इसे नाड़ी दोष का नाम दिया जाता है। नाड़ी दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार वर-वधू दोनों की नाड़ी आदि होने की स्थिति में तलाक या अलगाव की प्रबल संभावना बनती है तथा वर-वधू दोनों की नाड़ी मध्य या अंत होने से वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु की प्रबल संभावना बनती है। नाड़ी दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है :<br /><br />यदि वर-वधू दोनों का जन्म एक ही नक्षत्र के अलग-अलग चरणों में हुआ हो तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता।</span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />यदि वर-वधू दोनों की जन्म राशि एक ही हो किन्तु नक्षत्र अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता।</span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />यदि वर-वधू दोनों का जन्म नक्षत्र एक ही हो किन्तु जन्म राशियां अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता।</span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />नाड़ी दोष के बारे में विस्तारपूर्वक जानने के बाद आइए अब देखें कि भकूट दोष क्या होता है। यदि वर-वधू की कुंडलियों में चन्द्रमा परस्पर 6-8, 9-5 या 12-2 राशियों में स्थित हों तो भकूट मिलान के 0 अंक माने जाते हैं तथा इसे भकूट दोष माना जाता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि वर की जन्म कुंडली में चन्द्रमा मेष राशि में स्थित हैं, अब :<br /><br />यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा कन्या राशि में स्थित हैं तो इसे षड़-अष्टक भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर कन्या राशि छठे तथा कन्या राशि से गिनती करने पर मेष राशि आठवें स्थान पर आती है। </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा धनु राशि में स्थित हैं तो इसे नवम-पंचम भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर धनु राशि नवम तथा धनु राशि से गिनती करने पर मेष राशि पांचवे स्थान पर आती है। </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा मीन राशि में स्थित हैं तो इसे द्वादश-दो भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर मीन राशि बारहवें तथा मीन राशि से गिनती करने पर मेष राशि दूसरे स्थान पर आती है। </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />भकूट दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार षड़-अष्टक भकूट दोष होने से वर-वधू में से एक की मृत्यु हो जाती है, नवम-पंचम भकूट दोष होने से दोनों को संतान पैदा करने में मुश्किल होती है या फिर सतान होती ही नहीं तथा द्वादश-दो भकूट दोष होने से वर-वधू को दरिद्रता का सामना करना पड़ता है। भकूट दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है :</span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो तो भकूट दोष खत्म हो जाता है। जैसे कि मेष-वृश्चिक तथा वृष-तुला राशियों के एक दूसरे से छठे-आठवें स्थान पर होने के बावजूद भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि मेष-वृश्चिक दोनों राशियों के स्वामी मंगल हैं तथा वृष-तुला दोनों राशियों के स्वामी शुक्र हैं। इसी प्रकार मकर-कुंभ राशियों के एक दूसरे से 12-2 स्थानों पर होने के बावजूद भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि इन दोनों राशियों के स्वामी शनि हैं।</span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों के स्वामी आपस में मित्र हैं तो भी भकूट दोष खत्म हो जाता है जैसे कि मीन-मेष तथा मेष-धनु में भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि इन दोनों ही उदाहरणों में राशियों के स्वामी गुरू तथा मंगल हैं जो कि आपसे में मित्र माने जाते हैं।</span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /><br />इसके अतिरिक्त अगर दोनो कुंडलियों में नाड़ी दोष न बनता हो, तो भकूट दोष के बनने के बावजूद भी इसका असर कम माना जाता है। </span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> किन्तु इन दोषों के द्वारा बतायी गईं हानियां व्यवहारिक रूप से इतने बड़े पैमाने पर देखने में नहीं आतीं और न ही यह धारणाएं तर्कसंगत प्रतीत होती हैं। उदाहरण के लिए नाड़ी दोष लगभग 33 प्रतिशत कुंडलियों के मिलान में देखने में आता है कयोंकि कुल तीन नाड़ियों में से वर और वधू की नाड़ी एक होने की सभावना लगभग 33 प्रतिशत बनती है। इसी प्रकार की गणना भकूट दोष के विषय में भी करके यह तथ्य सामने आता है कि कुंडली मिलान की लगभग 50 से 60 प्रतिशत उदाहरणों में नाड़ी या भकूट दोष दोनों में से कोई एक अथवा दोनों ही उपस्थित होते हैं। और क्योंकि बिना कुंडली मिलाए विवाह करने वाले लोगों में से 50-60 प्रतिशत लोग ईन दोनों दोषों के कारण होने वाले भारी नुकसान नहीं उठा रहे इसलिए इन दोनों दोषों से होने वाली हानियों तथा इन दोनों दोषों की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। <br /><br />मेरे अपने अनुभव के अनुसार नाड़ी दोष तथा भकूट दोष अपने आप में दो लोगों के वैवाहिक जीवन में उपर बताई गईं विपत्तियां लाने में सक्षम नहीं हैं तथा इन दोषों और इनके परिणामों को कुंडली मिलान के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं के साथ ही जोड़ कर देखना चाहिए। नाड़ी दोष तथा भकूट दोष से होने वाले बुरे प्रभावों को ज्योतिष के विशेष उपायों से काफी हद तक कम किया जा सकता है।</span></span>
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भारतीय कैलेण्डर चान्द्र मास पर आधारित होता है. जिस चान्द्र मास में सूर्य संक्रान्ति नहीं होती वह माह “अधिक मास” कहलाता है और जिस चान्द्र मास में दो संक्रान्तियों का संक्रमण हो रहा हो अर्थात एक ही चान्द्र मास में दो संक्रान्ति आ रही हों वह “क्षयमास” कहलाता है. इस लेख में हम भाद्रपद अधिक मास की चर्चा करेगें. आम भाषा में अधिक मास को अधिमास, मलमास, पुरुषोत्तम मास आदि के नामों से जाना जाता है.<br />
<b>वर्ष 2012 में भाद्रपद माह में अधिकमास पड़ रहा है. इस वर्ष भाद्रपद अधिक मास की अवधि 18 अगस्त से 16 सितम्बर 2012 तक रहेगी.</b><br />
एक सौर वर्ष में 365 दिन तथा 6 घंटे होते हैं और एक चान्द्र मास में 354 दिन तथा 9 घंटे होते हैं. हो सकता है कि सौर मास तथा चान्द्र मास में समीकरण स्थापित करने के लिए ही अधिकमास की रचना की गई हो. विद्वानों के अनुसार एक मल मास से दूसरे मल मास तक की अवधि 28 माह से लेकर 36 माह तक की हो सकती है. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हर तीसरे वर्ष में एक अधिकमास आता ही है. यदि इस अधिकमास की परिकल्पना नहीं की गई तो चांद्र मास का सारा सिस्टम ही बिगड़ जाएगा.<br />
संवत 2069 अर्थात वर्ष 2012 में 18 अगस्त दिन शनिवार से 16 सितम्बर दिन रविवार की मध्य रात्रि तक अधिकमास का प्रभाव बना रहेगा.<br />
माह के जिस दिन मलमास का आरंभ हो रहा हो उस दिन प्रात: स्नानादि कर्म से निवृत होकर भगवान सूर्य नारायण का पुष्प, अक्षत तथा लाल चंदन से पूजन करें. फिर शुद्ध घी, गेहूँ और गुड. के मिश्रण से 33 पूएँ बनाएँ. इन पूओं को कांसे के बर्तन में रखकर प्रतिदिन फल, वस्त्र, मिष्ठान और दक्षिणा समेत दान करें. आप यह दान अपनी सामर्थ्यानुसार ही करें. दान करते समय निम्न मंत्र का जाप करें :-<br />
<b><span style="color: red;">ऊँ विष्णु रूप: सहस्त्रांशु सर्वपाप प्रणाशन: । अपूपान्न प्रदानेन मम पापं व्यपोहतु ।</span></b><br />
<b><span style="color: red;">इस मंत्र के बाद भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हुए निम्न मंत्र बोलें :-</span></b><br />
<b><span style="color: red;">यस्य हस्ते गदाचक्रे गरुड़ोयस्य वाहनम । शंख करतले यस्य स मे विष्णु: प्रसीदतु ।</span></b><br />
मलमास में कुछ नित्य कर्म, कुछ नैमित्तिक कर्म और कुछ काम्य कर्मों को निषिद्ध माना गया है. जैसे विवाह संस्कार, मुंडन संस्कार, नववधु का गृह प्रवेश, नव यज्ञोपवीत कर्म करना, नए वस्त्रों को धारण करना आदि कार्य इस मास में नहीं करने चाहिए. इसके अतिरिक्त नई गाड़ी खरीदना, बच्चे का नामकरण संस्कार करना, देव प्रतिष्ठा करना अर्थात मूर्ति स्थापना करना, कूआं, तालाब या बावड़ी आदि बनवाना, बाग अथवा बगीचे आदि भी इस मास में नहीं बनाए जाते.<br />
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काम्य व्रतों का आरंभ भी इस मास में नहीं किया जाता है. भूमि क्रय करना, सोना खरीदना, तुला या गाय आदि का दान करना भी वर्जित माना गया है. अष्टका श्राद्ध का संपादन भी निषेध माना गया है. <br />
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जो काम काम्य कर्म अधिकमास से पहले ही आरंभ किए जा चुके हैं उन्हें इस माह में किया जा सकता हे. शुद्धमास में मृत व्यक्ति का प्रथम वार्षिक श्राद्ध किया जा सकता है. यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक बीमार है और रोग की निवृति के लिए रुद्र जपादि अनुष्ठान किया जा सकता है.<br />
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कपिल षष्ठी जैसे दुर्लभ योगों का प्रयोग, संतान जन्म के कृत्य, पितृ श्राद्ध, गर्भाधान, पुंसवन संस्कार तथा सीमांत संस्कार आदि किए जा सकते हैं. ऎसे संस्कार भी किए जा सकते हैं जो एक नियत अवधि में समाप्त हो रहे हों. इस मास में पराया अन्न और तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिए<br />
जो व्यक्ति मलमास में पूरे माह व्रत का पालन करते हैं उन्हें पूरे माह भूमि पर ही सोना चाहिए. एक समय केवल सादा तथा सात्विक भोजन करना चाहिए. इस मास में व्रत रखते हुए भगवान पुरुषोत्तम अर्थात विष्णु जी का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए तथा मंत्र जाप करना चाहिए. श्रीपुरुषोत्तम माहात्म्य की कथा का पठन अथवा श्रवण करना चाहिए. श्री रामायण का पाठ या रुद्राभिषेक का पाठ करना चाहिए. साथ ही श्रीविष्णु स्तोत्र का पाठ करना शुभ होता है. <br />
मलमास के आरम्भ के दिन श्रद्धा भक्ति से व्रत तथा उपवास रखना चाहिए. इस दिन पूजा - पाठ का अत्यधिक माहात्म्य माना गया है. मलमास मे प्रारंभ के दिन दानादि शुभ कर्म करने का फल अत्यधिक मिलता है. जो व्यक्ति इस दिन व्रत तथा पूजा आदि कर्म करता है वह सीधा गोलोक में पहुंचता है और भगवान कृष्ण के चरणों में स्थान पाता है. <br />
<b><span style="color: red;">अधिकमास की समाप्ति पर स्नान, दान तथा जप आदि का अत्यधिक महत्व होता है. इस मास की समाप्ति पर व्रत का उद्यापन करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी श्रद्धानुसार दानादि करना चाहिए. इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह है कि मलमास माहात्म्य की कथा का पाठ श्रद्धापूर्वक प्रात: एक सुनिश्चित समय पर करना चाहिए.</span></b><br />
<b><span style="color: red;"><br /></span></b>
<b><span style="color: red;">इस मास में रामायण, गीता तथा अन्य धार्मिक व पौराणिक ग्रंथों के दान आदि का भी महत्व माना गया है. वस्त्रदान, अन्नदान, गुड़ और घी से बनी वस्तुओं का दान करना अत्यधिक शुभ माना गया है.</span></b><br />
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-4808227064088741772012-08-15T22:48:00.003-07:002012-08-15T22:51:28.257-07:00जन्म समय क्या होता है व इस का निर्धारण कैसे करना चाहिए ? <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="color: blue;"><b>जैसा कि सभी जानते हैं कि हमारे भारतीय ज्योतिष शास्त्र में जन्म समय को बहुत ही महतवपूर्ण माना गया है | इसी जन्म समय को सही मान कर ही भारतीय ज्योतिष शास्त्र अनुसार जन्म कुंडली का निर्माण किया जाता है | जन्म की तिथि के साथ-साथ जन्म समय का भी सही वक्त ज्ञात होना भारतीय ज्योतिष शास्त्र अनुसार बहुत ही जरूरी है | जो लोग भारतीय ज्योतिष शास्त्र को मानते हैं उन्हें इस बात की और अपनी तवज्जो जरूर देनी चाहिए | यदि कोई व्यक्ति अपने जन्म समय का सही ज्ञान नहीं रखता तो उस उसे अपने जन्म समय का सही ज्ञान प्राप्त नही है तो उस व्यक्ति के जन्म कुंडली सही प्रकार से निर्मित नहीं की जा सकती | कुंडली के सही निर्माण (बनाने) के लिए सही समय का ज्ञान होना अति महत्पूर्ण है | इसलिए अकांक्ष, रेखांश, जन्म तारीख का सही निर्धारण करने के पश्चात जन्म समय का सही सही निर्धारण करना चाहिए |</b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b><br /></b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b>जैसे कि उपरोक्त पैराग्राफ में कहा गया है कि जन्म समय निर्धारित करना अति महत्वपूर्ण है, वैसे ही सबसे ज्यादा गलतियाँ जन्म समय को निर्धारिण करने में ही होती हैं | जन्म के समय को ठीक प्रकार से जानने के लिए हम प्राय: लेडी डाक्टर, दाई (मिडवाइफ), नर्स या बच्चे के जन्म के समय पर वहीँ पर उपस्थित महिला पर ही निर्भर होते हैं |</b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b>1 प्राय: गाँवों (ग्रामों) में बच्चे के जन्म समय (प्रसव के वक्त) दाई (मिडवाइफ) ही मौजूद होती है | ऐसी स्थिति में जन्म समय को जानना अत्यंत कठिन सा होता है | इन के पास प्राय: घडी नहीं होती | यदि हो तो ही वे समय की आवश्यकता को न समझते हुए इसे प्रमुखता नहीं देती | यदि समय नोट भी कर लिया जाए तो तो भी संशय बना रहता है कि जो समय नोट किया गया होगा वो सही समय होगा भी या नही क्यों कि ये जरूरी नहीं कि वो घडी सही समय दिखा रही हो |</b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b><br /></b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b>2. गावों के बात तो छोड़िये प्राय: हस्पतालों में भी यही हालत है | प्राय: नर्स जन्म समय कुछ बताती है व उस हस्पताल के रिकार्ड में कुछ और समय दर्ज कर दिया जाता है व इसके पीछे तर्क ये दिया जाता है कि हमे सबसे पहले जच्चा-बच्चा की देखभाल की और ध्यान देना होता है | इतना कहकर बात को खत्म कर दिया जाता है |</b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b><br /></b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b>इस तरह बच्चे के जन्म समय को अनुमानित समय के आधार पर ही बच्चे का जन्म समय लिख दिया जाता है | ऐसे जन्म समय पर जन्म कुंडली का निर्माण दुष्कर व भ्रम जैसा होता है व कुंडली निर्माण के कार्य को ग्रहों के चाल को निर्धारण की प्रक्रिया पर प्रमाणित करना कठिन हो जाता है |</b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b><br /></b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b>शिशु के जन्म समय के विषय में प्राय: विवाद उत्पन्न होता रहता है कि शिशु के कौन से समय को जन्म समय माने जाए | इस संबंध में भी कई मत हैं | जन्म समय का निर्धारण कैसे किये जाए, इनमें से कुछ मन निम्नलिखित हैं :-</b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b> 1. पहला मत : जब शिशु का कोई भी अंग बाहर दिखे तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |</b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b>2. दूसरा मत : जब शिशु पूर्ण रूप से बाहर आ जाए तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |</b></span></div>
<div>
<span style="color: blue;"><b>3. तीसरा मत : जब शिशु बाहर आ कर रोना आरम्भ आकर दे या किसी प्रकार की आवाज करे तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |</b></span></div>
<div>
<span style="color: blue;"><b>4. चौथा मत : जब शिशु की नाल काटकर शिशु को अपनी माँ से पूर्णतया अलग कर दिया जाता है तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |</b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b><br /></b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b>उपरोक्त चारों विकल्पों में से किसी भी के विकल्प को मान लेने से सही जन्म समय को जानने से भ्रम की स्थिति तो फिर भी बनी रहेगी | बहुत से विद्वान शिशु के रोने या आवाज किये जाने को शिशु का जन्म समय मानते हैं | यदि किसी कारणवश शिशु जन्म के उपरांत रोने की कोई आवाज उत्पन्न न करे तो नाल काटने के समय को जन्म समय मान लेना चाहिए | इसका मतलब तो ये हुआ कि शिशु के रोने की आवाज या शिशु के नाल काटने के समय में से जो भी पहले हो उस समय को जन्म समय मान लेना चाहिए | इस प्रकार इस मत को मान लेने से भी भ्रम की स्थिति पैदा होती है | क्योंकि समय तो एक ही होना चाहिए व वो समय सभी को मान्य होना चाहिए |</b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b><br /></b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b> उपरोक्त दोनों तथ्यों का मनन करने पर पता चलता है कि सबसे उपयुक्त व तर्कसंगत जन्म समय वो ही मानना चहिये जब शिशु को नाल से काट कर अलग किया जाता है | नाम से काटने के पश्चात् ही शिशु का स्वतंत्र अस्तित्व शुरू होता है | यही समय ही शिशु का जन्म समय हो सकता है | ज्यादातर विद्वान भी इसी मत पर सहमत हैं व इसी मत को मानते हैं व इस समय को जन्म समय मानते हुए कुंडली निर्मित करते हैं | इसी समय को ध्यानपूर्वक नोट करना चाहिए |</b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b><br /></b></span></div>
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<span style="color: blue;"><b> कुंडली निर्माण के लिए इस प्रकार के शुद्ध जन्म समय की जरूरत होती है| जहाँ सही समय का ज्ञान होने से कुंडली निर्माण लाभकारी सिद्ध होया सकता है वहीं सही समय ज्ञात न होने से किसी भी कुंडली कर निर्माण परेशानी व मानसिक तनाव का कारण बन सकता है |</b></span></div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-38406676938709015892012-08-11T23:42:00.004-07:002012-08-11T23:42:52.018-07:00लाल किताब के अनुसार जिस घर में कोई ग्रह न हो तथा जिस घर पर किसी ग्रह की नज़र नहीं पड़ती हो उसे सोया हुआ घर माना जाता है.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: blue;"><b><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;">लाल किताब का मानना है जो घर सोया (</span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;"><a href="http://hindijyotish.com/index.php?news=30" style="text-decoration: none;">Lal Kitab Sleepy Planets</a></span><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;">) होता है उस घ्रर से सम्बन्धित फल तब तक प्राप्त नहीं होता है जबतक कि वह घर जागता नहीं है. लाल किताब में सोये हुए घरों को जगाने के लिए कई उपाय (Lal Kitab Remedies) बताए गये हैं.</span><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;">जिन लोगों की कुण्डली में प्रथम भाव सोया हुआ हो उन्हें इस घर को जगाने के लिए मंगल का उपाय करना चाहिए. मंगल का उपाय करने के लिए मंगलवार का व्रत करना चाहिए. मंगलवार के दिन हनुमान जी को लडुडुओं का प्रसाद चढ़ाकर बांटना चाहिए. मूंगा धारण करने से भी प्रथम भाव जागता है. </span><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;">अगर दूसरा घर सोया हुआ हो तो चन्द्रमा का उपाय शुभ फल प्रदान करता है. चन्द्र के उपाय के लिए चांदी धारण करना चाहिए. माता की सेवा करनी चाहिए एवं उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए. मोती धारण करने से भी लाभ मिलता है. </span><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;">तीसरे घर को जगाने के लिए बुध का उपाय करना लाभ देता है. बुध के उपाय हेतु दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए. बुधवार के दिन गाय को चारा देना चाहिए.</span><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;">लाल किताब के अनुसार किसी व्यक्ति की कुण्डली में अगर चौथा घर सोया हुआ है तो चन्द्र का उपाय करना लाभदायी होता है.</span><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;">पांचवें घर को जागृत करने के लिए सूर्य का उपाय करना फायदेमंद होता है. नियमित आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ एवं रविवार के दिन लाल भूरी चीटियों को आटा, गुड़ देने से सूर्य की कृपा प्राप्त होती है. </span><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;">छठे घर को जगाने के लिए राहु का उपाय करना चाहिए. जन्मदिन से आठवां महीना शुरू होने पर पांच महीनों तक बादाम मन्दिर में चढ़ाना चाहिए, जितना बादाम मन्दिर में चढाएं उतना वापस घर में लाकर सुरक्षित रख दें. घर के दरवाजा दक्षिण में नहीं रखना चाहिए. इन उपायों से छठा घर जागता है क्योंकि यह राहु का उपाय है.</span><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;">सोये हुए सातवें घर के लिए शुक्र को जगाना होता है. शुक्र को जगाने के लिए आचरण की शुद्धि सबसे आवश्यक है. </span><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;">सोये हुए आठवें घर के लिए चन्द्रमा का उपाय शुभ फलदायी होता है. </span><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;">जिनकी कुण्डली में नवम भाव सोया हो उनहें गुरूवार के दिन पीलावस्त्र धारण करना चाहिए. सोना धारण करना चाहिए व माथे पर हल्दी अथवा केशर का तिलक करना चाहिए. इन उपाय से गुरू प्रबल होता है और नवम भाव जागता है. </span><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;">दशम भाव को जागृत करने हेतु शनिदेव का उपाय करना चाहिए. </span><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;">एकादश भाव के लिए भी गुरू का उपाय लाभकारी होता है. </span><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><br style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;" /><span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px;">अगर बारहवां घ्रर सोया हुआ हो तो घर मे कुत्ता पालना चाहिए. पत्नी के भाई की सहायता करनी चाहिए. मूली रात को सिरहाने रखकर सोना चाहिए और सुबह मंदिर मे दान करना चाहिए..</span></b></span>
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-77372780513561137072012-08-01T21:30:00.001-07:002012-08-01T21:30:16.689-07:00रक्षाबन्धन का पर्व<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div style="background-color: white; font-family: 'Lohit Devanagari', Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
<b><span style="font-size: large;">इस दिन बहनें अपने भाई के दायें हाथ पर राखी बाँधकर उसके माथे पर तिलक करती हैं और उसकी दीर्घ आयु की कामना करती हैं। बदले में भाई उनकी रक्षा का वचन देता है। ऐसा माना जाता है कि राखी के रंगबिरंगे धागे भाई-बहन के प्यार के बन्धन को मज़बूत करते है। भाई बहन एक दूसरे को मिठाई खिलाते है। और सुख दुख में साथ रहने का विश्वास दिलाते हैं। यह एक ऐसा पावन पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और सम्मान देता है।</span></b></div>
<div style="background-color: white; font-family: 'Lohit Devanagari', Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
<b><span style="font-size: large;">सगे भाई बहन के अतिरिक्त अनेक भावनात्मक रिश्ते भी इस पर्व से बँधे होते हैं जो धर्म, जाति और देश की सीमाओं से परे हैं। रक्षाबन्धन का पर्वभारत के राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री के निवास पर भी मनाया जाता है। जहाँ छोटे छोटे बच्चे जाकर उन्हें राखी बाँधते हैं। रक्षाबन्धन आत्मीयता और स्नेह के बन्धन से रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर न केवल बहन भाई को ही अपितु अन्य सम्बन्धों में भी रक्षा (या राखी) बाँधने का प्रचलन है। गुरु शिष्य को रक्षासूत्र बाँधता है तो शिष्य गुरु को। भारत में प्राचीन काल में जब <a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%95" style="background-image: none; color: #0b0080; text-decoration: none;" title="स्नातक">स्नातक</a> अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात<a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B2" style="background-image: none; color: #0b0080; text-decoration: none;" title="गुरुकुल">गुरुकुल</a> से विदा लेता था तो वह आचार्य का <a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6" style="background-image: none; color: #0b0080; text-decoration: none;" title="आशीर्वाद">आशीर्वाद</a> प्राप्त करने के लिए उसे रक्षासूत्र बाँधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो। इसी परम्परा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षासूत्र बाँधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिये परस्पर एक दूसरे को अपने बन्धन में बाँधते हैं।</span></b></div>
<div style="background-color: white; font-family: 'Lohit Devanagari', Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
<b><span style="font-size: large;">रक्षाबन्धन पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता या एकसूत्रता का सांस्कृतिक उपाय रहा है। विवाह के बाद बहन पराये घर में चली जाती है। इस बहाने प्रतिवर्ष अपने सगे ही नहीं अपितु दूरदराज के रिश्तों के भाइयों तक को उनके घर जाकर राखी बाँधती है और इस प्रकार अपने रिश्तों का नवीनीकरण करती रहती है। दो परिवारों का और कुलों का पारस्परिक योग (मिलन) होता है। समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भी एकसूत्रता के रूप में इस पर्व का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार जो कड़ी टूट गयी है उसे फिर से जागृत किया जा सकता है।</span></b></div>
<div style="background-color: white; font-family: 'Lohit Devanagari', Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 19.200000762939453px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
<b><span style="font-size: large;">रक्षाबन्धन के अवसर पर कुछ विशेष पकवान भी बनाये जाते हैं जैसे <a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%B0" style="background-image: none; color: #0b0080; text-decoration: none;" title="घेवर">घेवर</a>, शकरपारे, नमकपारे और घुघनी। घेवर सावन का विशेष मिष्ठान्न है यह केवल हलवाई ही बनाते हैं जबकि शकरपारे और नमकपारे आमतौर पर घर में ही बनाये जाते हैं। घुघनी बनाने के लिये काले चने को उबालकर चटपटा छौंका जाता है। इसको पूरी और दही के साथ खाते हैं। हलवा और खीर भी इस पर्व के लोकप्रिय पकवान हैं।</span></b></div>
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-8998664959188371192012-08-01T21:24:00.002-07:002012-08-01T21:24:58.481-07:00वरमाला<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: medium; text-align: justify;">विवाह तब तक पूरा नहीं माना जाता जब तक वर-वधू एक दूसरे को वरमाला ना पहना दे। वरमाला प्रतीक है दो आत्माओं के मिलन का। जब श्रीराम ने सीता स्वयंवर में धनुष तोड़ा, तब सीता ने उन्हें वरमाला पहना कर पति रूप में स्वीकार किया। इसी तरह वरमाल के संबंध में कई प्रसंग हमारे धर्म ग्रंथों में भी दिए गए हैं। वरमाला फूलों और धागे से बनती है। फूल प्रतिक हैं खुशी, उत्साह, उमंग और सौंदर्य का, वहीं धागा इन सभी भावनाओं को सहेज कर रखने वाला माध्यम है। जिस तरह फूलों के मुरझाने पर भी धागा उन फूलों का साथ नहीं छोड़ता उसी तरह वरमाला नव दंपत्ति को भी यही संदेश देते हैं कि जैसे अच्छे समय में हम साथ-साथ रहे वैसे ही बुरे समय में भी एक-दूसरे के साथ कदम से कदम मिलाकर चले, किसी एक को अकेला ना छोड़े।</span>
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-87566449818029726272012-07-27T19:40:00.001-07:002012-07-27T19:40:31.795-07:00नवरात्र में देवी माँ के व्रत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="style6" style="font-family: Calibri; line-height: 22px; text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">नवरात्र में देवी माँ के व्रत रखे जाते हैं । स्थान–स्थान पर देवी माँ की मूर्तियाँ बनाकर उनकी विशेष पूजा की जाती हैं । घरों में भी अनेक स्थानों पर कलश स्थापना कर दुर्गा सप्तशती पाठ आदि होते हैं भगवती के नौ प्रमुख रूप (अवतार) हैं तथा प्रत्येक बार 9-9 दिन ही ये विशिष्ट पूजाएं की जाती हैं। इस काल को नवरात्र कहा जाता है। वर्ष में दो बार भगवती भवानी की विशेष पूजा की जाती है। इनमें एक नवरात्र तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक होते हैं और दूसरे श्राद्धपक्ष के दूसरे दिन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आश्विन शुक्ल नवमी तक।</span></div>
<div class="style6" style="font-family: Calibri; line-height: 22px; text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">इस व्रत में नौ दिन तक भगवती दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ तथा एक समय भोजन का व्रत धारण किया जाता है। प्रतिपदा के दिन प्रात: स्नानादि करके संकल्प करें तथा स्वयं या पण्डित के द्वारा मिट्टी की वेदी बनाकर जौ बोने चाहिए। उसी पर घट स्थापना करें। फिर घट के ऊपर कुलदेवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन करें तथा 'दुर्गा सप्तशती' का पाठ कराएं। पाठ-पूजन के समय अखण्ड दीप जलता रहना चाहिए। वैष्णव लोग राम की मूर्ति स्थापित कर रामायण का पाठ करते हैं। दुर्गा अष्टमी तथा नवमी को भगवती दुर्गा देवी की पूर्ण आहुति दी जाती है। नैवेद्य, चना, हलवा, खीर आदि से भोग लगाकर कन्या तथा छोटे बच्चों को भोजन कराना चाहिए। नवरात्र ही शक्ति पूजा का समय है, इसलिए नवरात्र में इन शक्तियों की पूजा करनी चाहिए।</span></div>
<div class="style7" style="color: #e60000; font-family: Calibri; line-height: 22px; text-align: justify;">
<strong><span style="font-size: large;">नवरात्र क्या है</span></strong></div>
<div class="style6" style="font-family: Calibri; line-height: 22px; text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं। उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र'</span></div>
<div class="style7" style="color: #e60000; font-family: Calibri; line-height: 22px; text-align: justify;">
<strong><span style="font-size: large;">नौ दिन या रात</span></strong></div>
<div class="style6" style="font-family: Calibri; line-height: 22px; text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है। यहाँ रात गिनते हैं, इसलिए नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है।रूपक के द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है। इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है। इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्त्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।</span></div>
<div class="style6" style="font-family: Calibri; line-height: 22px; text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुध्दि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है। सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, साफ सुथरे शरीर में शुध्द बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द होता है। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है।</span></div>
<div class="style6" style="font-family: Calibri; line-height: 22px; text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">इनका नौ जड़ी बूटी या ख़ास व्रत की चीज़ों से भी सम्बंध है, जिन्हें नवरात्र के व्रत में प्रयोग किया जाता है-</span></div>
<div class="style6" style="font-family: Calibri; line-height: 22px; text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">कुट्टू (शैलान्न)<br />दूध-दही<br />चौलाई (चंद्रघंटा)<br />पेठा (कूष्माण्डा)<br />श्यामक चावल (स्कन्दमाता)<br />हरी तरकारी (कात्यायनी)<br />काली मिर्च व तुलसी (कालरात्रि)<br />साबूदाना (महागौरी)<br />आंवला(सिद्धीदात्री)<br />क्रमश: ये नौ प्राकृतिक व्रत खाद्य पदार्थ हैं।</span></div>
<div class="style7" style="color: #e60000; font-family: Calibri; line-height: 22px; text-align: justify;">
<strong><span style="font-size: large;">अष्टमी या नवमी</span></strong></div>
<div class="style6" style="font-family: Calibri; line-height: 22px; text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">यह कुल परम्परा के अनुसार तय किया जाता है। भविष्योत्तर पुराण में और देवी भावगत के अनुसार, बेटों वाले परिवार में या पुत्र की चाहना वाले परिवार वालों को नवमी में व्रत खोलना चाहिए। वैसे अष्टमी, नवमी और दशहरे के चार दिन बाद की चौदस, इन तीनों की महत्ता "दुर्गासप्तशती" में कही गई है।</span></div>
<div class="style7" style="color: #e60000; font-family: Calibri; line-height: 22px; text-align: justify;">
<strong><span style="font-size: large;">कन्या पूजन</span></strong></div>
<div class="style6" style="font-family: Calibri; line-height: 22px; text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">अष्टमी और नवमी दोनों ही दिन कन्या पूजन और लोंगड़ा पूजन किया जा सकता है। अतः श्रद्धापूर्वक कन्या पूजन करना चाहिये।</span></div>
<div class="style6" style="font-family: Calibri; line-height: 22px; text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">सर्वप्रथम माँ जगदम्बा के सभी नौ स्वरूपों का स्मरण करते हुए घर में प्रवेश करते ही कन्याओं के पाँव धोएं।<br />इसके बाद उन्हें उचित आसन पर बैठाकर उनके हाथ में मौली बांधे और माथे पर बिंदी लगाएं।<br />उनकी थाली में हलवा-पूरी और चने परोसे।<br />अब अपनी पूजा की थाली जिसमें दो पूरी और हलवा-चने रखे हुए हैं, के चारों ओर हलवा और चना भी रखें। बीच में आटे से बने एक दीपक को शुद्ध घी से जलाएं।<br />कन्या पूजन के बाद सभी कन्याओं को अपनी थाली में से यही प्रसाद खाने को दें।<br />अब कन्याओं को उचित उपहार तथा कुछ राशि भी भेंट में दें।<br />जय माता दी कहकर उनके चरण छुएं और उनके प्रस्थान के बाद स्वयं प्रसाद खाने से पहले पूरे घर में खेत्री के पास रखे कुंभ का जल सारे घर में बरसाएँ।</span></div>
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-36198193831272035922012-07-26T05:43:00.003-07:002012-07-26T05:43:52.889-07:00झूलेलाल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="font-family: 'Lohit Devanagari', Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 19px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em; text-align: -webkit-auto;">
<span style="color: red; font-size: large;"><b>झूलेलाल</b> को <a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6" style="background-image: none; text-decoration: none;" title="वेद">वेदों</a> में वर्णित जल-देवता, <a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A3" style="background-image: none; text-decoration: none;" title="वरुण">वरुण</a> देव का अवतार माना जाता है। वरुण देव को सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि वाले देवता के रूप में सिंधी समाज भी पूजता है। उनका विश्वास है कि जल से सभी सुखों की प्राप्ति होती है और जल ही जीवन है। जल-ज्योति, वरुणावतार, झूलेलाल सिंधियों के ईष्ट देव हैं जिनके बागे दामन फैलाकर सिंधी यही मंगल कामना करते हैं कि सारे विश्व में सुख-शांति, अमन-चैन, कायम रहे और चारों दिशाओं में हरियाली और खुशहाली बने रहे।</span></div>
<div style="font-family: 'Lohit Devanagari', Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 19px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em; text-align: -webkit-auto;">
<span style="color: red; font-size: large;">भगवान झूलेलाल के अवतरण दिवस को सिंधी समाज <a class="new" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%9A%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A1&action=edit&redlink=1" style="background-image: none; text-decoration: none;" title="चेटीचंड (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">चेटीचंड</a> के रूप में मनाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार सिंध का शासक मिरखशाह अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगा था जिसके कारण सिंधी समाज ने 40 दिनों तक कठिन जप, तप और साधना की। तब सिंधु नदी में से एक बहुत बड़े नर मत्स्य पर बैठे हुए भगवान झूलेलाल प्रकट हुए और कहा मैं 40 दिन बाद जन्म लेकर मिरखशाह के अत्याचारों से प्रजा को मुक्ति दिलाउंगा। चैत्र माह की द्वितीया को एक बालक ने जन्म लिया जिसका नाम उडेरोलाल रखा गया। अपने चमत्कारों के कारण बाद में उन्हें झूलेलाल, लालसांई, के नाम से सिंधी समाज और ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर के नाम से मुसलमान भी पूजने लगे। चेटीचंड के दिन श्रद्धालु बहिराणा साहिब बनाते हैं। शोभा यात्रा में ‘छेज’ (जो कि गुजरात के डांडिया की तरह लोकनृत्य होता है) के साथ झूलेलाल की महिमा के गीत गाते हैं। ताहिरी (मीठे चावल), छोले (उबले नमकीन चने) और शरबत का प्रसाद बांटा जाता है। शाम को बहिराणा साहिब का विसर्जन कर दिया जाता है। </span></div>
<div style="font-family: 'Lohit Devanagari', Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 19px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em; text-align: -webkit-auto;">
</div>
<h2 style="background-image: none; border-bottom-color: rgb(170, 170, 170); border-bottom-style: solid; border-bottom-width: 1px; font-weight: normal; line-height: 1.2em; margin: 0px 0px 0.6em; overflow: hidden; padding-bottom: 0.17em; padding-top: 0.5em;">
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.AD.E0.A4.97.E0.A4.B5.E0.A4.BE.E0.A4.A8_.E0.A4.9D.E0.A5.82.E0.A4.B2.E0.A5.87.E0.A4.B2.E0.A4.BE.E0.A4.B2_.E0.A4.95.E0.A5.87_.E0.A4.AA.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.AE.E0.A5.81.E0.A4.96_.E0.A4.B8.E0.A4.82.E0.A4.A6.E0.A5.87.E0.A4.B6"><span style="color: red; font-size: large;">भगवान झूलेलाल के प्रमुख संदेश</span></span></h2>
<ul style="list-style-image: url(data:image/png; list-style-type: square; margin: 0.3em 0px 0px 1.6em; padding: 0px;">
<li style="margin-bottom: 0.1em;"><span style="color: red; font-size: large;">ईश्वर अल्लाह हिक आहे।</span>
<dl style="margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.2em;"><dd style="line-height: 1.5em; margin-bottom: 0.1em; margin-left: 1.6em; margin-right: 0px;"><span style="color: red; font-size: large;">ईश्वर अल्लाह एक हैं।</span></dd></dl>
</li>
</ul>
<ul style="list-style-image: url(data:image/png; list-style-type: square; margin: 0.3em 0px 0px 1.6em; padding: 0px;">
<li style="margin-bottom: 0.1em;"><span style="color: red; font-size: large;">कट्टरता छदे, नफरत, ऊंच-नीच एं छुआछूत जी दीवार तोड़े करे पहिंजे हिरदे में मेल-मिलाप, एकता, सहनशीलता एं भाईचारे जी जोत जगायो।</span>
<dl style="margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.2em;"><dd style="line-height: 1.5em; margin-bottom: 0.1em; margin-left: 1.6em; margin-right: 0px;"><span style="color: red; font-size: large;">विकृत धर्माधता, घृणा, ऊंच-नीच और छुआछूत की दीवारे तोड़ो और अपने हृदय में मेल-मिलाप, एकता, सहिष्णुता, भाईचारा और धर्म निरपेक्षता के दीप जलाओ।</span></dd></dl>
</li>
</ul>
<ul style="list-style-image: url(data:image/png; list-style-type: square; margin: 0.3em 0px 0px 1.6em; padding: 0px;">
<li style="margin-bottom: 0.1em;"><span style="color: red; font-size: large;">सभनि हद खुशहाली हुजे।</span>
<dl style="margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.2em;"><dd style="line-height: 1.5em; margin-bottom: 0.1em; margin-left: 1.6em; margin-right: 0px;"><span style="color: red; font-size: large;">सब जगह खुशहाली हो।</span></dd></dl>
</li>
</ul>
<ul style="list-style-image: url(data:image/png; list-style-type: square; margin: 0.3em 0px 0px 1.6em; padding: 0px;">
<li style="margin-bottom: 0.1em;"><span style="color: red; font-size: large;">सजी सृष्टि हिक आहे एं असां सभ हिक परिवार आहियू।</span>
<dl style="margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.2em;"><dd style="line-height: 1.5em; margin-bottom: 0.1em; margin-left: 1.6em; margin-right: 0px;"><span style="color: red; font-size: large;">सारी सृष्टि एक है, हम सब एक परिवार हैं।</span></dd></dl>
</li>
</ul>
<br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-42200522230368442932012-07-25T19:17:00.002-07:002012-07-25T19:17:54.863-07:00राशि बताएगी आपकी लव एंड सेक्स लाइफ ग्रह-नक्षत्रों का असर न केवल जीवन पर पड़ता है, बल्कि इंसान के प्रेम और सेक्स पर भी यह प्रभाव डालता है। लव व सेक्स लाइफ पर राशि के इस प्रभाव को आइए देखते हैं-<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">मेष राशि </span>के लडकों का सेक्स के प्रति लगाव अधिक होता है, लेकिन लडकियों का बहुत कम। मेष राशि के लोग लाल रंग पर कुछ ज्यादा ही फिदा हो जाते हैं। इस राशि के लोगों को स्वास्थ्य जीवन के लिए साग-सब्जी, दूध व अंकुरित भोजन का सेवन अधिक करना चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">वृष राशि</span> के लोग स्वभाव से बहुत ही रोमांटिक होते है। लडकियों को रोमांटिक संगीत सुनना और फिल्में देखना पसंद होता है जबकि लड़कों का सेंस ऑफ हयूमर गजब का होता है। इस राशि के लोगों को अच्छी सेहत के लिए बबूल व गोंद का हलवा तथा उडद की दाल का सेवन करना चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">मिथुन राशि</span> का स्वामी बुध है। इस राशि के लड़के जल्दी ही आकर्षित हो जाते हैं जबकि इस राशि की लडकियां सरप्राइज पसंद होती हैं। इस राशि की लड़कियों को शादी की तस्वीर दिखाकर या रोमांटिक यादों से जुडी जगह पर ले जाकर अच्छा सरप्राइज दिया जा सकता है। इस राशि के लोगों को अपनी सेहत के लिए उडद की दाल से बनी चीजें तथा भोजन में गोंद का प्रयोग करना चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">कर्क राशि</span> के लोग मनचले होते है। इस राशि के लोगों का मूड तुरंत रोमांटिक हो जाता है, खासकर एकांत स्थान पर। इस राशि के पुरुषों का अफेयर कई स्त्रियों से समय-समय पर या कई बार एक साथ ही चलता रहता है। इस राशि की लडकियों को कैंडल लाईट डिनर बहुत पसंद है। अच्छी सेहत के लिए इस राशि वाले लोग छुहारे व अक्ष्रवगंध का सेवन अवश्य करें।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">सिंह राशि</span> का स्वामी सूर्य है। इन लोगों को दिखावा बहुत भाता है। उचित माहौल में ही इनका मूड बनता है। लडकियों का मिजाज कुछ परिवर्तित होता है। बिस्तर पर भी इनका मूड माहौल को देखकर ही बनता है। रात में नहाना, परफ्यूम लगाना, पार्टनर की तारीफ करना, उनके अंगो से छेड़छाड़ करना जैसी बातें ऐसे लोगों के लिए सही माहौल तैयार करते हैं। भोजन में साठी के चावल, अंकुरित दाल का प्रयोग करें।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">कन्या राशि</span> के लोगों को हर तरह के सेक्स में आनंद आता हैं। इस राशि के लडके सेक्स के दौरान छेडखानी पसंद करते हैं। लडकियों का भी सेक्स की तरफ पूरा झुकाव होता है। इन्हें भोजन में गोंद, बादाम व छुहारे का सेवन नियमित करना चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">तुला राशि</span> का स्वामी शुक्र है , जो काम शाक्ति का द्योतक है। इस राशि के लडको का स्वभाव बडा ही रोमांटिक होता है। इस राशि की लडकियों का सेक्स की तरफ रूझान कम होता है। ऐसे लोगों का मूड बनाने के लिए डिनर, चुटकले, चुंबन, एसएमएस आदि का उपयोग किया जा सकता है। इन्हें मेथी के लड्डू व बिनौले का सेवन करना चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">वृश्चिक राशि </span>के लोग लव व सेक्स लाइफ को तरोताजा करने के लिए नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। अपने जीवनसाथी को आकर्षित करने के लिए नए-नए करतब करते हैं। इस राशि की लडकियों को भी रोमांस के मूड में लाने के लिए कुछ नए की जरूरत होती है। इस राशि के लोगों को अपने भोजन में खट्टा कम खाना चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">धनु राशि </span>के लोग धार्मिक विचारों वाले होते हैं। इन लोगों को एकांत में रोमांस करना पसंद होता है। इन्हें रोमांस के लिए तैयार करने में पार्टनर को सेक्सी ड्रेस व अदाओं का सहारा लेना चाहिए। इन्हें अपने घर या शहर की जगह किसी हिल स्टेशन पर जाकर वादियों में रोमांस करना पसंद होता है। इस राशि की लडकियां रोमांटिक संगीत, फिल्म और बातों को पसंद करती हैं।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">मकर राशि </span>के लोगों को प्यार भरी बातों से अपनी ओर आकर्षित किया जा सकता है। इस राशि के लोग सेक्स करने के दौरान बात करना पसंद नहीं करते। इस राशि की लड़कियां रोमांटिक बातें करने और डेट पर जाने के बाद ही रोमांस के मूड में आती हैं। भोजन में इन्हें अधिक गर्म चीजें नहीं खानी चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">कुंभ राशि </span>का स्वामी शनि है। इस राशि के लड़के सेक्स में अतिरिक्त की चाह रखते हैं। इस राशि की लड़कियां एकांत स्थान में अच्छे मूड में आती हैं। इस राशि के लोगों को गर्भ भोजन करना चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">मीन राशि </span>के लडके शीघ्र आकर्षित होती हैं। लडकियों को आंखों में आंखें डालकर देखना व बातें करना अच्छा लगता है। लड़कियों को सरप्राइज गिफ्ट लेना पसंद होता हैं।</b></span></div>
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-57052927073036952302012-07-25T02:33:00.001-07:002012-07-25T02:33:18.522-07:00यहाँ कुछ ऐसे सरल टोटके बताये जा रहे हैं जिन्हें अपना कर अपने दांपत्य जीवन को सुखी बनाया जा सकता है|<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<ul style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; text-align: justify;">
<li><span style="color: red; font-size: large;">जिन महिलायों के पति अधिक शराब का सेवन करते हैं तथा अपनी आय का अधिक हिस्सा शराब पर लुटातें हैं,उनके लिए यह सब से सरल उपाय है|जिस दिन आपके पति शराब पीकर घर आयें और अपने जूते और उनका जूता अपने आप ही उल्टा हो जाये तो आप उस जूते के वजन के बराबर आटा लेकर उसकी बिना तवे तथा चकले की मदद से रोटी बनाकर कुत्ते को खिला दें|कुछ ही समय में वह शराब से घृणा करने लगेंगे|यदि ऐसा संजोग लगातार कम से कम तीन दिन हो जाये तो वह तुरंत ही शराब छोड़ देंगे|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">शराब छुड़ाने का एक उपाए यह भी है की आप किसी भी रविवार को एक शराब की उस ब्रांड की बोतल लायें जो ब्रांड आपके पति सेवन करते हैं|रविवार को उस बोतल को किसी भी भैरव मंदिर पर अर्पित करें तथा पुन: कुछ रूपए देकर मंदिर के पुजारी से वह बोतल वापिस घर ले आयें|जब आपके पति सो रहें हो अथवा शराब के नशे में चूर होकर मदहोश हों तो आप उस पूरी बोतल को अपने पति के ऊपर से उसारते हुए २१ बार "ॐ नमः भैरवाय"का जाप करें|उसारे के बाद उस बोतल को शाम को किसी भी पीपल के वृक्ष के नीचे छोड़ आयें|कुछ ही दिनों में आप चमत्कार देखेंगी|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">कुत्ते का नाख़ून अथवा बिच्छु का डंक आप किसी भी बी हने से ताबीज में पति को धारण करवा दें|इसके प्रभाव से वो अन्य महिला का साथ छोड़ देंगे|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">शराब छुडवाने का एक यह भी उपाय है की आप एक शराब की बोतल किसी शनिवार को पति के सो जाने के बाद उन पर से २१ बार वार लें|उस बोतल के साथ किसी अन्य बोतल में आठ सो ग्राम सरसों का तेल लेकर आपस में मिला लें और किसी बहते हुए पानी के किनारे में उल्टा गाढ़ दें जिससे बोतलों के ऊपर से जल बहता रहे|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">आपको यदि शक हो की आपके पति के किसी अन्य महिला से सम्बन्ध हैं तो आप इसके लिए रात में थोडा कपूर अवश्य जलाया करें इससे यदि सम्बन्ध होंगे तो छूट जायेंगे|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">रविवार की रात में सोते समय कुछ सिन्दूर बिस्तर पर पति के सोने वाले हिस्से की और बिखरा दें तथा प्रात: नहा कर माँ पार्वती का नाम लेकर उससे अपनी मांग भर लें|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">जिस महिला से आपके पति का संपर्क है उसके नाम के अक्षर के बराबर मखाने लेकर प्रत्येक मखाने पर उसके नाम का अक्षर लिख दें|उस औरत से पति का छुटकारा पाने की ईशवर से प्रार्थना करते हुए उन सारे मखानो को जला दें तथा किसी भी प्रकार से उसकी काली भभूत को पति के पैर के नीचे आने की व्यवस्था करें|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">किसी के पति यदि अधिक क्लेश करते हैं तो वह स्त्री सोमवार से यह उपाय आरम्भ करे |प्रथम सोमवार को अशोक वृक्ष के पास जाकर धुप-दीप से अर्चना कर अपनी समस्या का निवेदन कर जल अर्पित करें|सात पत्ते तोड़कर अपने घर के पूजास्थल में रख कर उनकी पूजा करें|अगले सोमवार को पुन:यह क्रिया दोहराएँ तथा सूखे पत्तों को मंदिर तथा बहते जल में प्रवाहित कर दें|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">यदि पति पत्नी का आपस में बिना बात के झगड़ा होता है और झगडे का कोई कारण भी नही होता तो अपने शयनकक्ष में पति अपने तकिये के नीचे लाल सिन्दूर रखे व पत्नी अपने तकिये के नीचे कपूर रखे|प्रात: पति आधा सिन्दूर घर में ही कहीं गिरा दें और आधे से पत्नी की मांग भर दें तथा पत्नी कपूर जला दे|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">पति-पत्नी के क्लेश के लिए पत्नी बुधवार को तीन घंटे का मोंन रखें|शुक्रवार को अपने हाथ से साबूदाने की खीर में मिश्री दाल कर खिलाएं तथा इतर दान करें व अपने कक्ष में भी रखें|इस प्रयोग से प्रेम में वृद्धि होती है|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">कनेर के पुष्प को पानी मैं घिसकर अथवा तथा पीसकर उस से पति के माथे पर तिलक करें .यह भी अन्य महिला से सम्बन्ध समाप्त करने का अच्छा उपाय है .</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">जब आपको लगे की आपके पति किसी महिला के पास से आरहें हैं तो आप किसी भी बहाने से अपने पति का आंतरिक वस्त्र लेकर उसमे आग लगा दें और राख को किसी चौराहे पर फैंक कर पैरों से रगड़ कर वापिस आजाएं.</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">होली जलते समय तीन अभिमंत्रित गोमती चक्र लेकर उस महिला का नाम लेकर थोडा सिन्दूर लगाकर होली की अग्नि में फैंक दें|पति का उस महिला से पीछा छूट जायेगा|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">किसी अन्य महिला के पीछे आपके पति यदि आपका अपमान करते हैं तो किसी भी गुरूवार को तीन सो ग्राम बेसन के लड्डू ,आटेके दो पेड़े,तीन केले व इतनी ही चने की गीली दाल लेकर किसी गाय को खिलाये जो अपने बछड़े को दूध पिला रही हो|उसे खिला कर यह निवेदन करें की हे माँ,मैंने आपके बच्चे को फल दिया आप मेरे बच्चे को फल देना|कुछ ही दिन में आपके पति रस्ते में आ जायेंगे|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">गुरूवार को केले पर हल्दी लगाकर गुरु के १०८ नामों के उच्चारण से भी पति की मनोवृति बदलती है|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">केले के वृक्ष के साथ यदि पीपल के वृक्ष की भी सेवा कर सकें तो फल और भी जल्दी प्राप्त होता है|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">गृह क्लेश दूर करने के लिए तथा आर्थिक लाभ के लिए गेँहू शनिवार को पिसवाना चाहिए|उसमे प्रति दस किलो गेँहू पर सो ग्राम काले चने डालने चाहिए|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">यदि किसी महिला अथवा किसी अन्य कारण से आपको लग रहा है की आपका परिवार टूट रहा है अथवा तलाक तक की हालत पैदा हो गयी हैं तो ऐसे परिस्थिति से बचाव के लिए किसी शिव मंदिर में श्रावण मास में आप किसी विद्वान ब्राह्मण से ग्यारह दिन तक लगातार 'रुद्राष्टध्यायी' जिसे म्हारुदरी यग भी कहते हैं ,से अभिषेक करवाएं|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">यदि स्त्री को श्वेत प्रदर ,मासिक धर्म में अनियमितता अथवा इसके होने पर कमर दर्द हो तो वह पीपल की जटाको गुरूवार की दोपहर में काट कर छाया में सुखा लें|जब जटा अच्छी तरह से सुख जाये तो उसे पीस कर २०० ग्राम दही में १० ग्राम जटा का चूर्ण का नियमित सात दिन तक सेवन करे तथा रात में सोते समय त्रिफला चूर्ण भी सादा जल से ले|सात दिन में इस समस्या से मुक्ति मिल जाएगी |</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">यदि किसी स्त्री का समय से पहले अर्थात ४२ वर्षायु से पहले ही मासिक रुक जाये तो उस स्त्री को पुन:मासिक धर्म आरम्भ करने के लिए इन्द्रायन की जड़ का योनी पर धुआं देने से लाभ प्राप्त होता है|</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">यदि किसी स्त्री अथवा कन्या को मासिक से पहले पेट में बहुत दर्द होता है,तो उसे रात में सोते समय मूंज की रस्सी से पेट बाँध लें,प्रात: उस रस्सी को किसी चौराहे पर फैंक देने से लाभ होता है.</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">यदि किसी स्त्री को मासिक धर्म के समय कमर में दर्द हो तो वह मासिक आरम्भ होने से तीन दिन पहले पीपल की जड़ वह पीपल की सुखी शाखा को काले कपडे में लपेट कर अपने तकिये के नीच रख लें.</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">यदि किसी महिला को पेट मैं किसी कारण से अधिक दर्द रहता है तो वह मंगलवार से अपने सिरहाने किसी ताम्बे के लोटे में जल रखे और प्रति उठाने खाली पेट उस जल का सेवन करें .इस प्रकार से हर प्रकार के पेट दर्द का निवारण हो जायेगा .</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">प्रसूता के पेट पर यदि केसर का लेप किया जाये तो भी प्रसव आसानी से हो जाता है .</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">प्रसव काल से कुछ ही समय पहले यदि प्रसूता को १०० ग्राम गोमूत्र पिलाया जाये तो प्रसव आसानी से हो जाता है .</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">विवाहित महिला को अपने परिवार की सलामती के लिए ही माँ दुर्गा चालीसा के साथ माँ के १०८ नाम अथवा ३२ नाम की माला का जाप करना चाहिए .</span></li>
<li><span style="color: red; font-size: large;">कभी किसी महिला को दान करने की इच्छा हो तो दान सामग्री में लाल सिन्दूर के साथ इतर की शीशी ,चने की दाल तथा केसर अवश्य रखें .इस से सुहाग की आयु में वृद्धि होती है.</span></li>
</ul>
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-48700738316276446162012-07-23T09:48:00.001-07:002012-07-23T09:48:16.117-07:00ऋण-परिहारक प्रदोष-व्रत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;"><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">‘प्रदोष व्रत’ के दिन अर्थात् कृष्ण-पक्ष एवं शुक्ल-पक्ष की त्रयोदशी (तेरस) तिथि को प्रातःकाल स्नानादि कर भगवान् शंकर का यथा-शक्ति पञ्चोपचार या षोडशोपचार से पूजन करें। फिर निम्नलिखित ‘विनियोग’ आदि कर निर्दिष्ट मन्त्र का यथाशक्ति २१, ११, १ माला या केवल ११ बार जप करे।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">विनियोगः- ॐ अस्य अनृणा-मन्त्रस्य श्रीऋण-मुक्तेश्वरः ऋषिः। त्रिष्टुप् छन्दः। रुद्रो देवता। मम ऋण-परिहारार्थे जपे विनियोगः।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">ऋष्यादि-न्यासः- श्रीऋण-मुक्तेश्वरः ऋषये नमः शिरसि। त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे। रुद्र-देवतायै नमः हृदि। मम ऋण-परिहारार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">कर-न्यासः- ॐ अनृणा अस्मिन् अंगुष्ठाभ्यां नमः। अनृणाः परस्मिन् तर्जनीभ्यां नमः। तृतीये लोके अनृणा स्याम मध्यमाभ्यां नमः। ये देव-याना अनामिकाभ्यां नमः। उत पितृ-याणा कनिष्ठिकाभ्यां नमः। सर्वाण्यथो अनृणाऽऽक्षीयेम करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">अङग-न्यासः- ॐ अनृणा अस्मिन् हृदयाय नमः। अनृणाः परस्मिन् शिरसे स्वाहा। तृतीये लोके अनृणा स्याम शिखायै वषट्। ये देव-याना कवचाय हुम्। उत पितृ-याणा नेत्र-त्रयाय वौषट्। सर्वाण्यथो अनृणाऽऽक्षीयेम अस्त्राय फट्।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">ध्यानः-</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">ध्याये नित्यं महेशं रजत-गिरि-निभं चारु-चन्द्रावतंसम्,</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशु-मृग-वराभीति-हस्तं प्रसन्नम्।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममर-गणैर्व्याघ्र-कृत्तिं वसानम्,</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">विश्वाद्यं विश्व-बीजं निखिल-भय-हरं पञ्च-वक्त्रं त्रिनेत्रम्।।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">अर्थात् भगवान् रुद्र पञ्च-मुख और त्रिनेत्र हैं। चाँदी के पर्वत के समान उनकी उज्ज्वल कान्ति है। सुन्दर चन्द्रमा उनके मस्तक पर शोभायमान है। रत्न-जटित आभूषणों से उनका शरीर प्रकाशमान है। अपने चार हाथओं में परशु, मृग, वर और अभय मुद्राएँ धारण किए हैं। मुख पर प्रसन्नता है। पद्मासन पर विराजमान हैं। चारों ओर से देव-गण उनकी वन्दना कर रहे हैं। बाघ की खाल वे पहने हैं। विश्व के आदि, जगत् के मूल-स्वरुप और समस्त प्रकार के भय-नाशक-ऐसे महेश्वर का मैं नित्य ध्यान करता हूँ।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">उक्त प्रकार ध्यान कर भगवान् रुद्र का पुनः पञ्चोपचारों से या मानस उपचारों से पूजन कर हाथ जोड़कर निम्न प्रार्थना करे-</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">अनन्त-लक्ष्मीर्मम सन्निधौ सदा स्थिरा भवत्वित्यसि-</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">वर्धनेन नानाऽऽदृतः शत्रु-निवारकोऽहं भवामि शम्भौ !</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">अर्थात् हे शम्भो ! कभी समाप्त न होनेवाली लक्ष्मी मेरे पास सदा-स्थिर होकर रहे और मैं काम-क्रोधादि सब प्रकार के शत्रुओं को दूर करने में समर्थ बनूँ।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">मन्त्र-जाप- “ॐ अनृणा अस्मिन्, अनृणाः परस्मिन्, तृतीये लोके अनृणा स्याम। ये देव-याना उत पितृ-याणा, सर्वाण्यथो अनृणाऽऽक्षीयेम।”</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">रुद्राक्ष या रक्त-चन्दन की माला से प्रातःकाल यथा शक्ति पूर्व निर्देशानुसार जप करें। यदि समर्थ हो, तो किन्हीं वेदपाठी ब्राह्मण द्वारा ‘षडंग-शत-रुद्रीय’ में उक्त मन्त्र का ‘सम्पुट’ लगाकर भगवान शंकर का अभिषेक करे और सम्पुटित ११ पाठ कराए। आवश्यकतानुसार ‘शिव-महिम्न-स्तोत्र’ में भी उक्त मन्त्र का ‘सम्पुट’ लग सकता है। अभिषेक के बाद पुनः पूजन एवं मन्त्र-जप कर, निम्न स्तोत्र का पाठ करे-</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">जय देव जगन्नाथ, जय शंकर शाश्वत। जय सर्व-सुराध्यक्ष, जय सुरार्चित ! ।।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">जय सर्व-गुणानन्त, जय सर्व-वर-प्रद ! जय सर्व-निराधार, जय विश्वम्भराव्यय ! ।।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">जय विश्वैक-विद्येश, जय नागेन्द्र-भूषण ! जय गौरी-पते शम्भो, जय चन्द्रार्ध-शेखर ! ।।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">जय कोट्यर्क-संकाश, जयानन्त-गुणाकर ! जय रुद्र-विरुपाक्ष, जय नित्य-निरञ्जन ! ।।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">जय नाथ कृपा-सिन्धो, जय भक्तार्त्ति-भञ्जन ! जय दुस्तर-संसार-सागरोत्तारण-प्रभो ! ।।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">प्रसीद मे महा-भाग, संसारार्त्तस्य खिद्यतः। सर्व-पाप-क्षयं कृत्वा, रक्ष मां परमेश्वर ! ।।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">मम दारिद्रय-मग्नस्य, महा-पाप-हतीजसः। महा-शोक-विनष्टस्य, महा-रोगातुरस्य च।।</span><br style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;" /><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">महा-ऋण-परीत्तस्य, दध्यमानस्य कर्मभिः। गदैः प्रपीड्यमानस्य, प्रसीद मम शंकर ! ।।</span></span>
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-53225937755116732812012-07-21T20:00:00.004-07:002012-07-21T20:00:48.617-07:00कुंडली में विवाह संबंधी जानकारी के लिए द्वितीय, पंचम, सप्तम एवं द्वादश भावों का विश्लेषण करने का विधान है। द्वितीय भाव परिवार का है। पति-पत्नी परिवार की मूल इकाई हैं। सातवां भाव विवाह का होता है। प्राय: पापाक्रांत द्वितीय भाव विवाह से वंचित रखता है। संतान सुख वैवाहिक जीवन का प्रबल पक्ष है।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="color: blue;"><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: medium;">विवाह में बाधक ग्रह</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: medium;"><br />अधिकांश माता-पिता की यह इच्छा होती है कि उनके वयस्क बेटी या बेटे की शादी समय से हो जाए। लेकिन लाख प्रयास करने के बाद भी कभी-कभार बेटी या बेटे का रिश्ता तय नहीं हो पाता। होता भी है, तो बहुत परेशानी आती है। ऎसा कुछेक लोगों के साथ इसलिए होता है कि उनकी कुंडली में विवाह बाधक ग्रह योग होते हैं। आइए इस मुद्दे पर विचार करें कि शादी-ब्याह में कौन से ग्रह बाधक होते हैं।<br /><br />कुंडली में विवाह संबंधी जानकारी के लिए द्वितीय, पंचम, सप्तम एवं द्वादश भावों का विश्लेषण करने का विधान है। द्वितीय भाव परिवार का है। पति-पत्नी परिवार की मूल इकाई हैं। सातवां भाव विवाह का होता है। प्राय: पापाक्रांत द्वितीय भाव विवाह से वंचित रखता है। संतान सुख वैवाहिक जीवन का प्रबल पक्ष है। इसके लिए पंचम भाव का विश्लेषण आवश्यक है। सप्तम भाव तो मुख्यत: विवाह से संबंधित भाव है और द्वितीय भाव शय्या सुख के लिए विचारणीय है। इन भावों में किन ग्रहों से विवाह बाधा उत्पन्न होती है, देखें-</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: medium;"><br />शनि से: शनि-सूर्य संयुक्त रू प से लग्न में हो, तब विवाह में बाधा आएगी। शनि लग्न में और चंद्रमा सप्तमस्थ हो, तो शादी देरी से होगी। शनि और चंद्रमा संयुक्त रू प से सप्तमस्थ हो अथवा नवांश लग्न से सप्तमस्थ हो, तो विवाह में विलंब होता है।<br /><br />शुक्र से: शुक्र और चंद्रमा की सप्तम भाव में स्थिति चिंतनीय है। यदि शनि व मंगल उनसे सप्तम हो, तो विवाह विलंब से होगा और यदि यह योग बृहस्पति से दृष्ट हो, तो भी विवाह में पर्याप्त विलंब होता है।</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: medium;"><br /><br />वक्री ग्रह: सप्तम भाव में यदि वक्री ग्रह स्थित हो। सप्तमेश वक्री हो अथवा वक्री ग्रह या ग्रहों की सप्तम भाव या सप्तमेश अथवा शुक्र पर दृष्टि हो या शुक्र स्वयं वक्री हो, तब शादी-ब्याह होने में परेशानी आती है। यदि द्वितीय भाव में कोई वक्री ग्रह स्थित हो या द्वितीयेश स्वयं वक्री हो अथवा कोई वक्री ग्रह द्वितीय भाव या द्वितीयेश को देखता हो, तो भी विवाह विलंब से होता है।</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: medium;"><br /><br />बृहस्पति और शनि: यदि सप्तमेश या शुक्र किसी कन्या की कुंडली में बृहस्पति या शनि से सप्तमस्थ हो अथवा युति हो, तो विवाह में विलंब होता है।</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: medium;"><br />शनि और बृहस्पति दोनों ही मंद गति से भ्रमण करने वाले ग्रह हों। शनि से युति या सप्तमस्थ होने की स्थिति में विवाह विलंब से होता है।<br /><br />मंगल और शनि: यदि मंगल और शनि, शुक्र और चंद्रमा से सप्तमस्थ हो, तब विवाह में विलंब होता है। शनि और मंगल तुला लग्न वालों के लिए क्रमश: द्वितीयस्थ व अष्टमस्थ हो, तो विवाह में बहुत विलंब होता है। विवाह का सुख नहीं मिलता।</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: medium;"><br />ज्योतिष शास्त्र में बाधक ग्रह सम्बंधी उपचार करने से विवाह के योग शीघ्र बनना संभव है। उपचार सम्बंधी जानकारी किसी विशेषज्ञ से ले लें।</span></span></b>
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-17707370447883818772012-07-20T20:09:00.004-07:002018-03-14T06:39:42.052-07:00शनि का राशि परिवर्तन होते ही लोग भयभीत हो उठते हैं कि अब शनिदेव न जाने क्या गजब ढाएगे? जिन लोगों की कुण्डली नहीं बनी होती उनके लिए यह बड़ा प्रश्न होता है कि शनि बुरा है या अच्छा यह कैसे जाने... शनि की प्रतिकूल अवस्था हमारी निदचर्या को भी प्रभावित करती है, जिसे नोट करके जाना जा सकता है कि कही शनि प्रतिकूल तो नहीं।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><span style="font-size: x-large;">(१) यदि शरीर में हमेशा थकान व आलस भरा लगने लगे।</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><span style="font-size: x-large;">(२) नहाने-धोने से अरूचि होने लगे या नहाने का वक्त ही न मिले।</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><span style="font-size: x-large;">(३) नए कपड़े खरीदने या पहनने का मौका न मिले।</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><span style="font-size: x-large;">(४) नए कपड़े व जूते जल्दी-जल्दी फटने लगे।</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><span style="font-size: x-large;">(५) घर में तेल, राई, दाले फैलने लगे या नुकसान होने लगे।</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><span style="font-size: x-large;">(६) अलमारी हमेशा अव्यवस्थित होने लगे।</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><span style="font-size: x-large;">(७) भोजन से बिना कारण अरूचि होने लगें</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><span style="font-size: x-large;">(८) सिर व पिंडलियों में, कमर में दर्द बना रहे।</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><span style="font-size: x-large;">(९) परिवार में पिता से अनबन होने लगे।</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><span style="font-size: x-large;">(१०) पढ़ने-लिखने से, लोगों से मिलने से उकताहट होने लगे, चिड़चिड़ाहट होने लगे।</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><span style="font-size: x-large;"><br /></span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<strong><span style="font-size: x-large;">यदि ये लक्षण आप स्वयं में महसूस करें, तो शनि का उपाय करें-</span></strong></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><span style="font-size: x-large;">तेल, राई, उड़द का दान करें। पीपल के पेड़ को सीचें, दीपक लगाएँ। हनुमान जी व सूर्य की आराधना करें, मांस-मदिरा का त्याग करें, गरीबों की मदद करें, काले रंग न पहनें, काली चीजें दान करें।</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><span style="font-size: x-large;">साढ़े साती का नाम ही हमारी नींद उड़ाने के लिए पर्याप्त होता है। शनि वैसे ही कठोर माना जाता है, उस पर साढ़े सात वर्ष उसका हमारी राशि से संबंध होना मुश्किल ही प्रतीत होता है।</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><span style="font-size: x-large;">वास्तव में साढ़े साती में आने वाले अशुभ फलों की जानकारी लेकर उनसे बचने हेतु अपने व्यवहार में आवश्यक परिवर्तन लाए जाएं तो साढ़ेसाती की तीव्रता कम की जा सकती है। साढ़ेसाती में मुख्यत: प्रतिकूल बातें क्या घटती हैं?</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><span style="font-size: x-large;">आइए देखें- पारिवारिक कलह, नौकरी में परेशानी, कोर्ट कचहरी प्रकरण, रोग, आर्थिक परेशानी, काम न होना, धोखाधड़ी आदि साढ़ेसाती के मूल प्रभाव है। इनसे बचने के पूर्व उपाय करके, नए खरीदी-व्यवहार टालकर, शांति से काम करके इन परेशानियों को टाला या कम किया जा सकता है। वैसे भी साढ़ेसाती के सातों वर्ष खराब हो, ऐसा नहीं है। जब शनि मित्र राशि या स्व राशि में हो, गुरु अनुकूल हो तो अशुभ प्रभाव घटता है।</span></b></div>
<span style="color: #222222; font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><b><span style="font-size: x-large;">मूल कुंडली में शनि ३,६,११ भाव में हो, या मकर, कुंभ, वृषभ, तुला, मिथुन या कन्या में हो तो साढ़ेसाती फलदायक ही होती है। यही नहीं यदि शनि पर गुरु की शुभ दृष्टि हो तो भी साढ़ेसाती से परेशानी नहीं होती। कुंडली में बुध-शनि जैसी शुभ युति हो तो कुप्रभाव नहीं मिलते।</span></b></span><br />
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-29678016201772001842012-07-19T20:17:00.002-07:002012-07-19T20:17:18.544-07:00राशि बताएगी आपकी लव एंड सेक्स लाइफ ग्रह-नक्षत्रों का असर न केवल जीवन पर पड़ता है, बल्कि इंसान के प्रेम और सेक्स पर भी यह प्रभाव डालता है। लव व सेक्स लाइफ पर राशि के इस प्रभाव को आइए देखते हैं-<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">मेष राशि </span>के लडकों का सेक्स के प्रति लगाव अधिक होता है, लेकिन लडकियों का बहुत कम। मेष राशि के लोग लाल रंग पर कुछ ज्यादा ही फिदा हो जाते हैं। इस राशि के लोगों को स्वास्थ्य जीवन के लिए साग-सब्जी, दूध व अंकुरित भोजन का सेवन अधिक करना चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">वृष राशि</span> के लोग स्वभाव से बहुत ही रोमांटिक होते है। लडकियों को रोमांटिक संगीत सुनना और फिल्में देखना पसंद होता है जबकि लड़कों का सेंस ऑफ हयूमर गजब का होता है। इस राशि के लोगों को अच्छी सेहत के लिए बबूल व गोंद का हलवा तथा उडद की दाल का सेवन करना चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">मिथुन राशि</span> का स्वामी बुध है। इस राशि के लड़के जल्दी ही आकर्षित हो जाते हैं जबकि इस राशि की लडकियां सरप्राइज पसंद होती हैं। इस राशि की लड़कियों को शादी की तस्वीर दिखाकर या रोमांटिक यादों से जुडी जगह पर ले जाकर अच्छा सरप्राइज दिया जा सकता है। इस राशि के लोगों को अपनी सेहत के लिए उडद की दाल से बनी चीजें तथा भोजन में गोंद का प्रयोग करना चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">कर्क राशि</span> के लोग मनचले होते है। इस राशि के लोगों का मूड तुरंत रोमांटिक हो जाता है, खासकर एकांत स्थान पर। इस राशि के पुरुषों का अफेयर कई स्त्रियों से समय-समय पर या कई बार एक साथ ही चलता रहता है। इस राशि की लडकियों को कैंडल लाईट डिनर बहुत पसंद है। अच्छी सेहत के लिए इस राशि वाले लोग छुहारे व अक्ष्रवगंध का सेवन अवश्य करें।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">सिंह राशि</span> का स्वामी सूर्य है। इन लोगों को दिखावा बहुत भाता है। उचित माहौल में ही इनका मूड बनता है। लडकियों का मिजाज कुछ परिवर्तित होता है। बिस्तर पर भी इनका मूड माहौल को देखकर ही बनता है। रात में नहाना, परफ्यूम लगाना, पार्टनर की तारीफ करना, उनके अंगो से छेड़छाड़ करना जैसी बातें ऐसे लोगों के लिए सही माहौल तैयार करते हैं। भोजन में साठी के चावल, अंकुरित दाल का प्रयोग करें।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">कन्या राशि</span> के लोगों को हर तरह के सेक्स में आनंद आता हैं। इस राशि के लडके सेक्स के दौरान छेडखानी पसंद करते हैं। लडकियों का भी सेक्स की तरफ पूरा झुकाव होता है। इन्हें भोजन में गोंद, बादाम व छुहारे का सेवन नियमित करना चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">तुला राशि</span> का स्वामी शुक्र है , जो काम शाक्ति का द्योतक है। इस राशि के लडको का स्वभाव बडा ही रोमांटिक होता है। इस राशि की लडकियों का सेक्स की तरफ रूझान कम होता है। ऐसे लोगों का मूड बनाने के लिए डिनर, चुटकले, चुंबन, एसएमएस आदि का उपयोग किया जा सकता है। इन्हें मेथी के लड्डू व बिनौले का सेवन करना चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">वृश्चिक राशि </span>के लोग लव व सेक्स लाइफ को तरोताजा करने के लिए नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। अपने जीवनसाथी को आकर्षित करने के लिए नए-नए करतब करते हैं। इस राशि की लडकियों को भी रोमांस के मूड में लाने के लिए कुछ नए की जरूरत होती है। इस राशि के लोगों को अपने भोजन में खट्टा कम खाना चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">धनु राशि </span>के लोग धार्मिक विचारों वाले होते हैं। इन लोगों को एकांत में रोमांस करना पसंद होता है। इन्हें रोमांस के लिए तैयार करने में पार्टनर को सेक्सी ड्रेस व अदाओं का सहारा लेना चाहिए। इन्हें अपने घर या शहर की जगह किसी हिल स्टेशन पर जाकर वादियों में रोमांस करना पसंद होता है। इस राशि की लडकियां रोमांटिक संगीत, फिल्म और बातों को पसंद करती हैं।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">मकर राशि </span>के लोगों को प्यार भरी बातों से अपनी ओर आकर्षित किया जा सकता है। इस राशि के लोग सेक्स करने के दौरान बात करना पसंद नहीं करते। इस राशि की लड़कियां रोमांटिक बातें करने और डेट पर जाने के बाद ही रोमांस के मूड में आती हैं। भोजन में इन्हें अधिक गर्म चीजें नहीं खानी चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">कुंभ राशि </span>का स्वामी शनि है। इस राशि के लड़के सेक्स में अतिरिक्त की चाह रखते हैं। इस राशि की लड़कियां एकांत स्थान में अच्छे मूड में आती हैं। इस राशि के लोगों को गर्भ भोजन करना चाहिए।</b></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b><span style="color: red;">मीन राशि </span>के लडके शीघ्र आकर्षित होती हैं। लडकियों को आंखों में आंखें डालकर देखना व बातें करना अच्छा लगता है। लड़कियों को सरप्राइज गिफ्ट लेना पसंद होता हैं।</b></span></div>
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-75786800309499019622012-07-19T08:37:00.002-07:002012-07-19T08:37:56.273-07:00नाम, प्रकृति, और / लग्न लग्न के प्रभाव<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="color: #388e8e; font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;">मेष लग्न लग्न मेष</span><span style="font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;"><br /> मेष राशि के साथ लोगों की बढ़ती कदम पर हमेशा बेचैन है और लगातार कर रहे हैं. क्योंकि उनके सत्तारूढ़ ग्रह मंगल ग्रह है, वे जो उन्हें साहसी, स्वतंत्र, और अपने सबसे अच्छे रूप में प्रेरित करता है ऊर्जा और उत्साह का एक बड़ा सौदा है, लेकिन गुस्सा और उनके worst.They पर उग्र स्वभाव का एक तेज बुद्धि है, लेकिन करने के लिए तय हो जाते हैं अपने ज्ञान और समझ के पैटर्न में. इन लोगों को पहल करने से प्यार है और नेतृत्व से पालन करने के लिए पसंद करते हैं. <span class="">वे महान नेता बन जाते हैं, अगर वे उनके अस्थिर tempers को नियंत्रित करने के लिए प्रबंधन कर सकते हैं. </span>उनके विचारों और मूड बदलने के लिए, आसानी से कर सकते हैं और वे भी लंबे समय के लिए एक परियोजना के लिए छड़ी की संभावना नहीं है.<br /></span><span style="color: #388e8e; font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;"> वृषभ लग्न (वृषभ लग्न)</span><span style="font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;"><br />इन व्यक्तियों अक्सर बहुत भाग्यशाली है और उनके बुनियादी एक जगह में रहने की प्रवृत्ति की वजह से समृद्ध कर रहे हैं, अपने पर ध्यान केंद्रित रहने के लक्ष्यों, और संपत्ति जमा. वे व्यावहारिक, सर्वजनोपयोगी मामलों को अच्छी तरह से संबंधित है, और एक उत्कृष्ट बुद्धि और खुद को अभिव्यक्त करने की क्षमता है. वे एक प्रमुख प्रवृत्ति के कुछ रूढ़िवादी और जिद्दी क्या है, और परिवर्तन की किसी भी प्रकार स्वागत नहीं है. रोगी और कड़ी मेहनत, वे भविष्य के लिए त्याग करने को तैयार हैं. उनके काम के एक आदर्शवादी स्वाद के साथ कुछ दीर्घकालिक प्रक्रिया है, जहां एक विचार सफलता की कुंजी है को शामिल कर सकते हैं. वे पितृत्व के दायरे में बाधाओं का सामना कर सकते हैं. वे उन्हें उठाने चुनौतियों के साथ समस्याओं या बच्चों को प्राप्त करने में देरी, या सौदा का अनुभव हो सकता है. उनके सत्तारूढ़ ग्रह शुक्र के प्रभाव के तहत, वे सौंदर्य, सुख, और सद्भाव के बहुत शौकीन हो सकता है, के रूप में विपरीत लिंग के रूप में अच्छी तरह से हो सकता है. लेकिन उनकी शादी के साथी एक थोड़ा तेज और तीव्र होने की संभावना है. शायद साथी या साथी के साथ असहमति होने की एक प्रवृत्ति किसी भी तरह अपने जीवन में कुछ समस्याओं के कारण हो सकता है.<br /></span><span style="color: #388e8e; font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;">मिथुन लग्न / मिथुन लग्न</span><span style="font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;"><br />मिथुन व्यक्तियों को साहित्य, संगीत, नृत्य, या फिल्म के क्षेत्रों में उत्कृष्टता, और आम तौर पर हो सकता है बहुत निवर्तमान. उनकी हास्य की महान भावना उन्हें सामाजिक घटनाओं पर स्वागत उपस्थिति बनाता है. उनके भाषण काफी भावुक हो सकते हैं, और उनके अर्थपूर्ण सामना करने के लिए दूर दे कि वे कैसे उनके स्पष्ट नरम पक्ष के बावजूद feel.In जाता है, वे एक उल्लेखनीय साहस और उद्यमी भावना दिखा सकते हैं. उनके कैरियर के लिए शिक्षा या समग्र ज्ञान के कुछ शाखा के दायरे में होने की संभावना है. नई परियोजनाओं की शुरुआत मिथुन मूल निवासी के लिए आसान है, लेकिन अंत करने के लिए काम और समय सीमा बैठक difficult.They तेजी से ऊब मिलता है कि चुनौती या उनके उज्जवल बुद्धि मनोरंजन के असफल विषयों में अपनी रुचि खो सकता है हो सकता है.<br /></span><span style="color: #388e8e; font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;">Karka लग्न / लग्न कैंसर</span><span style="font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;"><br />इन मूल निवासी बहुत संवेदनशील और बुद्धिमान हैं, लेकिन वे कभी कभी नर्वस हैं या आसानी से बल दिया हो सकता है. अत्यधिक भावनात्मक और अक्सर मानसिक, वे खुशी से प्यार है और संपत्ति के अधिग्रहण की संभावना है. उनकी सबसे बुरा में, वे कुछ कंजूस हो सकता है, पर सबसे अच्छा, वे तरह, सहायक, और ईमानदार दोस्त हो सकता है. उनके कोमल और जोरदार प्रकृति के बावजूद, वे सोच और शक्ति के साथ अभिनय करने में सक्षम हैं. हालांकि कैंसर के मूल निवासी अक्सर शादी में अशुभ हैं, वे संलग्न हैं और अपने बच्चों और परिवार के लिए समर्पित है. वे आम तौर पर एक साथी है, जो उन्हें उम्र या समग्र परिपक्वता में बढ़कर है. शादी<br /></span><span style="color: #388e8e; font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;">सिंह लग्न / लियो लग्न</span><span style="font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;"><br />मेष प्रकार की तरह, लियो एक उग्र स्वभाव है जो साहस और उद्देश्य के एक मजबूत भावना पैदा करता है, लेकिन जो भी क्रोध बढ़ जाती है और गर्म करने के लिए जन्म देता है गुस्सा.लियो बढ़ती लोग अक्सर महत्वाकांक्षी के रूप में अच्छी तरह से, लेकिन अपने उद्देश्यों को साकार करने के लिए संघर्ष हो सकता है. वे आम तौर पर हंसमुख, गर्म दिल, ईमानदार, और कुछ रूढ़िवादी रहे हैं. वे अक्सर ज्ञान के अधिग्रहण के लिए एक जुनून है. सुखी विवाहित जीवन आमतौर पर देरी हो रही है या साथी कुछ दूर है. उम्र, संस्कृति, या शारीरिक रूप में<br /></span><span style="color: #388e8e; font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;">कन्या लग्न / कन्या लग्न</span><span style="font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;"><br />कन्या मूल निवासी अत्यधिक कुशल और बहुत चालाक हैं, वे आत्मविश्वास की कमी हो सकती है. उनकी स्पष्ट भेदभाव के बावजूद, वे कभी कभी अपने emotions.Mercury के प्रभाव से दूर हो सकता है किया जाना है उन्हें सरल, राजनयिक, और चतुर बना सकते हैं, और उन्हें जीवन में उच्च वृद्धि करने के लिए सक्षम है. हालांकि, वे बेहद संवेदनशील होते हैं और बहुत ज्यादा परेशान तनाव से पीड़ित हो सकता है. कई बार वे विवरण पर चिंता के साथ अभिभूत हो और एक मामले की बड़ी तस्वीर देखने के लिए असफल.<br /></span><span style="color: #388e8e; font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;">तुला लग्न / लग्न तुला</span><span style="font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;"><br /> तुला के मूल निवासी बढ़ती भी वासना में डूबे हुए किया जा रहा है की एक प्रतिष्ठा है, लेकिन वे भी हैं तर्कशील, सशक्त, और clarity.They साथ मानव स्वभाव देख कुशल आदर्शवादी बजाय व्यावहारिक हैं, और उनके आदर्शों की शक्ति दूसरों पर एक महान है, शायद यह भी कृत्रिम निद्रावस्था का प्रभाव फिराना कर सकते हैं. ऐसे मामलों में, यह मुश्किल है उन लोगों के साथ कारण है. शुक्र के प्रभाव के कारण, वे सुंदरता और प्यार संगीत और कला की सराहना करते हैं.<br /></span><span style="color: #388e8e; font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;">Vrischika लग्न / लग्न वृश्चिक</span><span style="font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;"><br /> इन लोगों को कुछ व्यंग्यात्मक और हठीला हो सकता है, हालांकि वे भी आध्यात्मिक या मनोगत कला, के रूप में अच्छी तरह से अधिक वैज्ञानिक चिंताओं में कुशल हो सकता है सकते हैं हालांकि प्रकृति द्वारा sensualists के, वे भी उनकी प्रवृत्ति को नियंत्रित करने और खुद को अनुशासित करने में अच्छा कर रहे हैं. वे उत्साह और एक चुनौती से प्यार है, वे अपने स्वयं के वकील रखने के लिए और दूसरों के द्वारा आसानी से प्रभावित नहीं कर रहे हैं.<br /></span><span style="color: #388e8e; font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;">धनु लग्न (धनु लग्न)</span><span style="font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;"><br /> ठेठ धनु बढ़ती व्यक्तित्व धर्म और दर्शन को प्यार करता है, लेकिन इन मामलों में पीढ़ी रूढ़िवादी हो सकता है. सक्रिय, उत्साही, और उद्यमी, इन व्यक्तियों को भी कुछ हद तक परेशान हो सकता है. वे बेहद ईमानदार और स्वभाव से भी विनम्र हैं, पाखंड और छिछलापन despising. वे अक्सर अपनी भावनाओं और कामुक इच्छाओं पर अच्छा नियंत्रण है.<br /><br /> </span><span style="color: #388e8e; font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;">मकर / लग्न मकर लग्न</span><span style="font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;"><br />शनि के इन मूल निवासी दृढ़ता, प्रयोजन के एक मजबूत भावना है, और उदासीन शांति के साथ जीवन की कठिनाइयों को सहन करने की क्षमता दे सकता है. मकर राशि मूल निवासी हैं, व्यावहारिक, महत्वाकांक्षी और responsible.They परिवर्तन का डर नहीं है और देखने के अपने अंक में लचीला कर रहे हैं. वे वित्त से निपटने में अच्छा कर रहे हैं, और संरक्षण हो जाते हैं. वे उनके उनके लिए कड़ी मेहनत और लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रहना करने की क्षमता के कारण उपक्रमों में कुशल और अक्सर सफल रहे हैं. उनके व्यावहारिक आकांक्षाओं है कि उन्हें महान हाइट्स करने के लिए नेतृत्व कर सकते हैं, हालांकि वे उनकी उपलब्धियों में थोड़ा खुशी मिल सकता है. उनके पूर्णतावाद शादी में कठिनाइयों का कारण हो सकता है. अपने सबसे अच्छे रूप में, वे दार्शनिक और उदार हैं.<br /></span><span style="color: #388e8e; font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;">कुंभ लग्न / कुंभ लग्न</span><span style="font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;"><br />दार्शनिकों और प्रकृति द्वारा आदर्शवादी, महान साहित्यिक या मिलनसार कौशल के साथ इष्ट, राशि अक्सर उनके विचारों के मामले में दुनिया पर अपनी छाप बना. व्यक्तित्व के रूप में वे डरपोक, झगड़ालू, और लंबे समय से उनके जीवन पर शनि जोरदार प्रभाव के कारण दुखी हो सकता है. उनके स्वास्थ्य नाजुक हो सकता है. अपने सबसे अच्छे रूप में, वे महान मानवीय प्रवृत्ति के पास है.<br /></span><span style="color: #388e8e; font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;">मीणा लग्न / लग्न मीन</span><span style="font-size: 16px; text-align: -webkit-auto;"><br />इन मूल निवासी गहरा आध्यात्मिक है, हालांकि उनके आध्यात्मिकता आमतौर पर बहुत ही रूढ़िवादी है और वे मुख्यधारा के असुविधाजनक कदम बाहर महसूस कर सकते हैं. दूसरों के लिए और अक्सर विश्वास में कमी पर निर्भर है, वे अक्सर रहस्यमय और प्रकृति द्वारा मानसिक हैं. आमतौर पर ईमानदार और निष्पक्ष दिमाग, वे नम्रता और दयालुता में वे क्या सशक्तता या व्यक्तिगत शक्ति में कमी. यह महत्वपूर्ण है हमेशा एक व्यक्ति कुंडली में सवाल में घर की अद्वितीय स्थिति पर विचार लग्न (Lagna) के आधार पर किसी भी निष्कर्ष करने के लिए कूद से पहले. प्रत्येक व्यक्ति के वाक्य और बयान को आसानी से एक विशेष चार्ट में कुछ अन्य कारक द्वारा counteracted के किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, हम वृषभ जन्म के मामले में कहा कि व्यक्ति तथ्य बुध द्वितीय हाउस नियमों पर आधारित बातूनी हो जाएगा. <span class="">इस बयान, निरस्त किया जाएगा अगर पारा बारहवीं हाउस नुकसान के घर में रखा गया है</span></span></b>
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-16119711344286663052012-07-17T21:06:00.003-07:002012-07-17T21:06:27.999-07:00कारोबारी सफलता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<b>कारोबारी सफलता के लिए प्रत्येक अमावस्या के दिन अपने पूरे घर की सुंदर सफाई करें। तत्पश्चात परिवार के सभी सदस्य नहा धोकर शुद्ध वस्त्र धारण करके एक जगह एकत्रित होकर अपने बीच में चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछा दें। वस्त्र के ऊपर 11 मुट्ठी मसूर की दाने रखकर उसके ऊपर एक चौमुखा दीपक प्रज्ज्वलित कर रख दें। तत्पश्चात घर के सभी सदस्य सुंदर काण्ड का पाठ करें। संपूर्ण कष्टों से छुटकारा मिलेगा।</b><br />
<b>* नया कारोबार, नई दुकान या कोई भी नया कार्य करने से पूर्व मिट्टी के पांच पात्र लें जिसमें सवाकिलो सामान आ जाएं। प्रत्येक पात्र में सवा किलो सफेद तिल, सवा किलो पीली सरसों, सवा किलो उड़द, सवा किलो जौ, सवा किलो साबुत मूंग भर दें। मिट्टी के ढक्कन से ढंक कर सभी पात्र को लाल कपड़े से मुंह बांध दें और अपने व्यवसायकि स्थल पर इन पांचों कलश को रख दें। वर्ष भर यह कलश अपनी दुकान में रखें ग्राहकों का आगमन बड़ी सरलता से बढ़ेगा और कारोबारी समस्या का निवारण भी होगा। एक वर्ष के बाद इन संपूर्ण पात्रों को अपने ऊपर से 11 बार उसार कर बहते पानी में प्रवाह कर दें। और नये पात्र भरकर रख दें।</b><br />
<b>* यदि आपको अपने कार्य में अनावश्यक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। बार-बार कार्य में रूकावट आ रही हो तो आप अपने घर में शनिवार के दिन तुलसी का पौधा लगाएं और हर रोज सुबह-शाम घी का दीपक जलाने से कार्य में बार-बार आने वाली समस्या का निवारण बड़ी सरलता से हो जाएगा।</b><br />
<b>* अगर कारोबार में अनावश्यक परेशानी आ रही हो, लाभ मार्ग अवरोध हो रहा हो तो हर रोज शाम को गोधूलि वेला में यानि साढ़े पांच से छ: बजे के बीच में अपने पूजा स्थान में श्री महालक्ष्मी की तस्वीर स्थापित करके या तुलसी के पौधे के सामने में गो घृत का दीपक जलाएं। दीपक प्रज्ज्वलित करने के बाद उसक अंदर अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए एक इलायची डाल दें। ऐसा नियमित 186 दिन करने से व्यापार में लाभ होगा। दीपक और इलायची हमेशा नया प्रयोग में लाएं।</b><br />
<b>* कारोबार में समस्या आ रही हो, व्यवसाय चल नहीं रहा हो और कर्ज से परेशान हो रहे हो तो इस प्रयोग को करके देखें। यह प्रयोग किसी भी महीने शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार के दिन शुरू करें और नियमित 186 दिन करें। हर रोज स्नानोपरांत पीपल, बरगद या तुलसी के पेड़ के नीचे चौमुखा देसी घी का दीपक जलाएं। और शुद्ध कंबल का आसन बिछाकर एक पाठ विष्णु सहस्रनाम का करें तथा 11 माला ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र की जाप करें। मां लक्ष्मी की कृपा होगी और कारोबारी समस्या का निवारण हो जाएगा।</b><br />
<b>* यदि आपके व्यवसाय में बाधाएं चल रही हों तो आपको अपने कार्यस्थल पर पीले रंग की वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए तथा पूजाघर में हल्दी की माला लटकानी चाहिए। भगवान लक्ष्मी-नारायण के मंदिर में लड्डू का भोग लगाना चाहिए।</b><br />
<b>* व्यवसाय में मनोनुकूल लाभ की प्राप्ति नहीं हो रही हो तो किसी भी शनिवार के दिन नीले कपड़े 21 दानें रक्त गुंजा के बांधकर तिजोरी में रख दें। हर रोज धूप, दीप अवश्य दिखाएं। अपने इष्टदेव का ध्यान करें। ऐसा नियमित करने से व्यापार में लाभ मिलेगा और सफलता भी प्राप्त होगी।</b><br />
<b>* कारोबारी, पारिवारिक, कानूनी परेशानियों से छुटकारा दिलाने वाला अमोध प्रयोग</b><br />
<b>आप अपना काम कर रहे हो कठिन परिश्रम के बावजूद भी लोग आपका हक मार देते हैं। अनावश्यक कार्य अवरोध उत्पन्न करते हों। आपकी गलती न होने के बावजूद भी आपको हानि पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा हो तो यह प्रयोग आपके लिए बहुत ही लाभदायक सिध्द होगा। रात्रि में 10 बजे से 12 बजे के बीज में यह उपाय करना बहुत ही शुभ रहेगा। एक चौकी के ऊपर लाल कपड़ा बिछा कर उसके ऊपर 11 जटा वाले नारियल। प्रत्येक नारियल के ऊपर लाल कपड़ा लपेट कर कलावा बांध दें। इन सभी नारियल को चौकी के ऊपर रख दें। घी का दीपक जला करके धूप-दीप नेवैद्य पुष्प और अक्षत अर्पित कर। नारियल के ऊपर कुमकुम से स्वस्तिक बनाए और उन प्रत्येक स्वस्तिक के ऊपर पांच-पांच लौंग रखें और एक सुपारी रखें। माँ भगवती का ध्यान करें। माँ को प्रार्थना करें कष्टों की मुक्ति के लिए। कम्बल का आसन बिछा कर ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:11 माला करें, तत्पश्चात नारियल सहित समस्त सामग्री को सफेद कपड़े में बांध कर अपने ऊपर से 11 बार वार कर सोने वाले पलंग के नीचे रख दें। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में बिना किसी से बात किए यह सामग्री कुएं, तालाब या किसी बहते हुए पानी में प्रवाह कर दें। कानूनी कैसी भी समस्या होगी उससे छुटकारा मिल जाएगा।</b><br />
<b>* ऋण मुक्ति और धन वापसी के लिये किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के मंगलवार के दिन प्रदोष काल में यह पूजा प्रारंभ करें। किसी भी प्राण प्रतिष्ठित शिव मंदिर में जाकर श्रद्धापूर्वक शिव की उपासना करें। शिव पूजन के उपरांत अपने सामने दो दोने रख दें। एक दोने में यानी बायें हाथ वाले दोनें में 108 बिल्वपत्र पीले चंदन से प्रत्येक बिल्व पत्र में ॐ नम:शिवाय लिखकर रख दें। तत्पश्चात शुद्ध आसन बिछाकर एक बिल्वपत्र अपने दाहिनी हाथ में लें और इस ॐ ऋणमुक्तेश्वर महादेवाय नम:। मंत्र का जाप करें। और दाहिने हाथ वाले दोने में बिल्व पत्र को रख दें। ऐसा 108 बार करें। जाप पूरा होने के उपरांत एक पाठ ऋणमोचन मंगल स्तोत्र का करें। साथ ही सर्वारिष्ट शान्त्यर्थ शनि स्तोत्र का पांच पाठ भी करें। ऐसा नियमित 40 दिन तक पूजा करने से ऋण से छुटकारा मिल जाएगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>* आप अपने कारोबार में कर्जे से डूबे जा रहे है रात-दिन मेहनत करने के उपरांत भी कर्जा उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है तो यह प्रयोग आपके लिये बहुत ही अनुकूल व फायदेमंद रहेगा। किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथमा के दिन नित्यक्रम से निवृत्त होकर स्नानोपंरात स्वच्छ वस्त्र धारण करें और अपने पूजा स्थान में यह पूजा प्रारंभ करें। 6 इंच लम्बी गूलर की पेड़ की जड़ ले उसके ऊपर 108 बार काले रंग का धागा ॐ गं गणपतये नम:मंत्र का जाप करते हुये लपेटे। भगवान गणेश जी से ऋण मुक्ति की प्रार्थना करें। 108 चक्र होने के बाद इस लकड़ी को स्वच्छ थाली में पीला वस्त्र बिछाकर रख दें। तत्पश्चात श्रद्धानुसार धूप,दीप, नैवद्य, पुष्प अर्पित करें। घी का दीपक प्रज्जवलित कर उसमें एक इलायची डाल दें। शुद्ध आसन बिछाकर अपने सामने हल्दी से रंगे हुये अक्षत रख लें। अपने हाथ में थोड़े से अक्षत लें ॐ गं गणपतये ऋण हरताये नम:मंत्र का जाप करके अक्षत गूलर की लकड़ी के ऊपर छोड़ दे। ऐसा 108 बार करें। अगले दिन यह प्रक्रिया पुन:दोहरायें। ऐसा नवमी तक पूजन करें। नवमी के दिन रात में सवा ग्यारह बजे पुन:एक बार पूजन करें। ऋण हरता गणपति की 11 माला जाप करें। तत्पश्चात इस लकड़ी को अपने ऊपर से 11 बार उसार कर के अपने घर के किसी कोने में गड्डा खेंद कर दबा दे। उसके ऊपर कोई भारी वस्तु रख दें। ऐसा करने से कर्ज से छुटकारा मिल जायेगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>* किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार के दिन गेहूं के सवा किलो आटा में सवा किलो गुड़ मिलाकर उसके गुलगुले या पूएं बनाएं। शाम के समय हनुमान जी को चमेली के तेल में सिंदूर घोलकर अभिषेक करने के उपरांत घी का दीपक जलाएं और वहीं बैठकर हनुमान चालीसा के 7 पाठ करें। तत्पश्चात हनुमान जी को इन गुलगुले और पूएं का भोग लगाएं और गरीब व जरूरतमंद व्यक्तियों को बांट दें। ऐसा 11 मंगलवार करें, ऋण से छुटकारा मिलेगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>* ऋण मुक्ति के लिए उपाय सर्वप्रथम पांच गुलाब के फूल लाएं। ध्यान रहे कि उनकी पंखुड़ी टूटी हुई न हो। तत्पश्चात सवा मीटर सफेद कपड़ा, सामने रचो कर बिछाएं और गुलाब के वार फूलों को चारों कोनों पर बांध दें। फिर पांचवा गुलाब मध्य में डालकर गांठ लगा दें। इसे गंगा, यमुन और सरस्वती नदियों में प्रभावित करें। प्रभुकृपा से ऋण मुक्ति और घर में सुख समृध्दि की प्राप्ति होती है।</b><br />
<b>* व्यवसायिक परेशानी हल के लिये दीवाली के दिन नित्यकर्म से निवृत होकर स्नानोपरांत अपने पूजा स्थान में लक्ष्मी बीसा यंत्र एवं कुबेर यंत्र की श्रद्धापर्वूक स्थापना करने के उपरांत धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प और अक्षत से पंचोपचार पूजन करें। तत्पश्चात शुद्ध आसन बिछाकर स्फटिक की माला पर 11 माला इस ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्यादि पताये धन धान्य समृद्धि में देही दापय दापय स्वाहा मंत्र की जाप करें। संपूर्ण व्यावसायिक परेशानियों का निवारण होगा। हर रोज इस मंत्र की सुबह-शाम एक माला जाप करने से अवश्य धन में वृद्धि होगी।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>* व्यापार में घाटा हो रहा हो या काम नहीं चल पा रहा हो, तो आप एक चुटकी आटा लेकर रविवार के दिन व्यापार स्थल या अपनी दुकान के मुख्य द्वार के दोनों ओर थोड़ा-थोड़ा छिड़क दें, साथ में कहें- जिसकी नजर लगी है उसको लग जाये। बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला। यह क्रिया शुक्ल पक्ष में ही करें। संभव हो तो प्रयत्न करें कि इस क्रिया को करते हुए आपको कोई न देखे। गुप्त रूप से यह क्रिया करने पर व्यापार का घाटा दूर होने लगता है। इसके अलावा व्यापार स्थल में मकडिय़ों के जाले व्यापार की वृद्घि को रोकते हैं। अत: व्यापार में बरकत के लिए प्रत्येक शनिवार को दुकान की सफाई आदि करते समय मकड़ी के जालों को अवश्य हटा देना चाहिए।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>* जिन उद्योगपतियों या व्यापारियों को काफी प्रयास और अथक परिश्रम करने के बावजूद बिक्री में वृध्दि नहीं हो पा रहा हो तो यह उपाय शुक्ल पक्ष में गुरुवार से प्रारम्भ करें और प्रत्येक गुरुवार को इस क्रिया को दोहराते रहें। घर के मुख्य द्वार के एक कोने को गंगाजल से शुध्द कर लें या धो लें। शुध्द किए गए स्थान पर स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और उस पर थोड़ा दाल और गुड़ रख दें। साथ ही एक घी का दीपक जला दें। ध्यान रहे कि स्वस्तिक का चिह्न हल्दी से ही बनाएं। स्वास्तिक बनाने के बाद उसको बार-बार नहीं देखना चाहिए। यह उपाय बहुत ही सरल है और इसका प्रभाव शीघ्र ही परिलक्षित होने लगता है।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>* कारोबार में वृद्धि हेतु ही हर रोज प्रात:काल नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नानोपरांत तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें थोड़ी सी रोली डालकर ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:॥ मंत्र का जाप करते हुए तुलसी के पौधे में जल चढ़ाएं। शाम को गाय के शुद्ध देसी घी का दीपक जलांए और इसी मंत्र की पांच माला जाप करें।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>* कठिन परिश्रम व मेहनत करने के उपरांत लाभ की प्राप्ति नहीं हो रही हो तो प्रत्येक गुरुवार के दिन शुभ घड़ी में पीले कपड़े में 9 जोड़े चने की दाल, 9 पीले गोपी चंदन की डलियां, 9 गोमती चक्र इन सबको पोटली बनाकर किसी भी मंदिर में केले के पेड़ के ऊपर शाम के समय टांग दें। साथ ही एक घी का दीपक भी प्रज्ज्वलित कर लें। ऐसा 11 गुरुवार करने से धन की प्राप्ति होगी और व्यवसायिक समस्याओं का निवारण भी होगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>* धन न रूक रहा हो तो किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार के दिन 1 तांबे का सिक्का, 6 लाल गुंजा लाल कपड़े में बांधकर प्रात: 11 बजे से लेकर 1 बजे के बीच में किसी सुनसान जगह में अपने ऊपर से 11 बार उसार कर 11 इंच गहरा गङ्ढा खोदकर उसमें दबा दें। ऐसा 11 बुधवार करें। दबाने वाली जगह हमेशा नई होनी चाहिए। इस प्रयोग से कारोबार में बरकत होगी, घर में धन रूकेगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>* धन वृद्धि हेतु किसी भी गुरु पुष्य नक्षत्र के दिन प्रात:काल नित्यकर्म से निवृत होकर स्नानोपरांत शंख पुष्पी की जड़ अपने घर में लेकर आएं इस जड़ को गंगाजल से पवित्र कर दें। पवित्र करने के उपरांत चांदी की डिब्बी में पीले चावल भरकर उसके ऊपर रख दें। श्रद्धानुसार धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प, अक्षत अर्पित कर पंचोपचार पूजन करें। उसके बाद इस डिब्बी को अपनी तिजोरी में रख दें। धन में वृद्धि और कारोबारमें लाभ होगा। हर गुरु पुष्य के दिन शंख पुष्पी की जड़ व चांदी की डिब्बी बदल दें। पहले वाली बहते पानी में प्रवाह कर दें।</b><br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-47785318730537375032012-07-16T18:36:00.001-07:002012-07-16T18:36:52.077-07:00नीचे बताये गए उपायों में प्रयोग की जाने वाली सामग्री यदि सिद्ध हो तो जल्द फल की प्राप्ति होती है ! सिद्ध सामग्री प्राप्त करने हेतु कृपया गुरु जी से संपर्क करें - 09335219652<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<b>1. भर लें अपने भण्डार गृह</b><br />
<b>जिस स्थान पर होली जलाई जाती रही हो, वहां पर होली जलने से एक दिन पहले की रात्री में एक मटकी में गाय का घी, तिल का तेल, गेहूं और ज्वार तथा एक ताम्बे का पैसा रखकर मटकी का मुंह बंद करके गाड़ आएं। रात्रि में जब होली जल जाए, तब दूसरे दिन सुबह उसे उखाड़ लाएं। फिर इन सब वस्तुओं को पोटली में बांधकर जिस वास्तु में रख दिया जाएगा, वह वास्तु व्यय करने पर भी उसमें निरंतर वृद्धि होती रहेगी, और आपके भंडार भरे हुए रहेंगे।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>2. अगर आप चाहते हैं की आपके प्रतिष्ठान में बिक्री ज्यादा हो तो यह करें </b><br />
<b>आप अपने व्यापार में अधिक पैसा प्राप्त करना चाहते हैं और चाहते हैं की आपके व्यापार की बिक्री बढ़ जाए तो आप वट वृक्ष की लता को शनिवार के दिन जाकर निमंत्रण दे आएं। (वृक्ष की जड़ के पास एक पान, सुपारी और एक पैसा रख आएं) रविवार के दिन प्रातः काल जाकर उसकी एक जटा तोड़ लाएं, पीछे मुड़कर न देखें। उस जटा को घर लाकर गुग्गल की धूनी दें तथा 101 बार इस मंत्र का जप करें- </b><br />
<b>ॐ नमो चण्ड अलसुर स्वाहा। </b><br />
<b><br /></b><br />
<b>3. छोटे बच्चों को नजर लगने पर- </b><br />
<b>अगर आप चाहते हैं की छोटे बच्चों को नजर न लगे इसके लिए हाथ में चुटकी भर रक्षा लेकर ब्रहस्पतिवार के दिन 'ॐ चैतन्य गोरखनाथ नमः मंत्र का 108 बार जप करें। फिर इसे छोटी-सी पुडिया में डालकर काले रेशमी धागे से बच्चे के गले में बाँधने पर बुरी नजर नहीं लगती।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>4. अपने व्यापार में करें मनोवांछित उन्नति- </b><br />
<b>अगर आप अपने व्यापार में मनोवांछित उन्नति करना चाहते हैं तो सोमवार को प्रातः नवनिर्मित अंगूठी को गंगाजल में धोकर गाय के दूध में डुबो दें, उसमें थोड़ी-सी शक्कर, तुलसी के पत्ते और कोई भी सफ़ेद फूल डाल दें। इसके पश्चात स्नान ध्यान से निवृत्त होकर अंगूठी को पहन लें। ऐसा करने से व्यापार में मनोवांछित उन्नति प्राप्त होगी।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>5. कन्या के विवाह में विलम्ब होने पर- </b><br />
<b>अगर आपकी कन्या के विवाह में विलम्ब हो रहा हो या कन्या के लिए योग्य वर की तलाश पूरी नहीं हो रही हो तो किसी भी गुरूवार के दिन प्रातःकाल नहा धोकर बेसन के लड्डू स्वयं बनाएं। उनकी गिनती 109 होनी चाहिए। फिर पीले रंग की टोकरी में पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उन लड्डूओं को उसमें रख दें तथा अपनी श्रद्धानुसार कुछ दक्षिणा रख दें। पास के किसी शिव मंदिर में जाकर विवाह हेतु प्रार्थना कर घर आ जाएं।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>6. आपके ज्यादातर कार्य असफल हो रहे हैं तो यह करें- </b><br />
<b>आप चाहते हैं की आपके द्वारा किये गए कार्य सफल हो लेकिन कार्य के प्रारम्भ होते ही उसमें विध्न आ जाते हैं और वह असफल हो जाते हैं इसके लिए आप यह करें: प्रातःकाल कच्चा सूत लेकर सूर्य के सामने मुंह करके खड़े हो जाएं। फिर सूर्य देव को नमस्कार करके 'ॐ हीं घ्रणि सूर्य आदित्य श्रीम' मंत्र बोलते हुए सूर्य देव को जल चढ़ाएं। जल में रोली, चावल, चीनी तथा लाल पुष्प दाल लें। इसके पश्चात कच्चे सूत को सूर्य देव की तरफ करते हुए गणेशजी का स्मरण करते हुए सात गाँठ लगाएं। इसके पश्चात इस सूत को किसी खोल में रखकर अपनी कमीज की जेब में रख लें, आपके बिगड़े कार्य बनाने लगेंगे।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>7. गर्भ धारण करने के लिए- </b><br />
<b>अगर आपको किसी कारणवश गर्भ धारण नहीं हो रहा हो तो मंगलवार के दिन कुम्हार के घर आएं और उसमें प्रार्थना कर मिट्टी के बर्तन वाला डोरा ले आएं। उसे किसी गिलास में जल भरकर दाल दें। कुछ समय पश्चात डोरे को निकाल लें और वह पानी पति-पत्नी दोनों पी लें। यह क्रिया केवल मंगलवार को ही करनी है अगर संभव हो तो उस दिन पति-पत्नी अवश्य ही रमण करें। गर्भ की स्थिति बनते ही उस डोरे को हनुमानजी के चरणों में रख दें।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>8. अपने घर-गृहस्थी को बनाएं सुखी- </b><br />
<b>अक्सर हम गृहस्थ जीवन में देखते हैं तो गृहस्थ का सामान टूट-फूट जाता है या सामान चोरी हो जाता है। जो भी आता है असमय ही ख़त्म हो जाता है। रसोई में बरकत नहीं रहती है तो ऐसी स्त्रियाँ भोजन बनाने के बाद शेष अग्नि को न बुझाएं और जब सब जलकर राख हो जाए तो राख को गोबर में मिलाकर रसोई को लीप दें। फर्श हो तो उस राख को पानी में घोलकर उसी पानी से फर्श डालें। यह क्रिया कई बार करें। घर-गृहस्थी का छोटा-मोटा सामान, गिलास, कटोरी, चम्मच आदि सदैव बने रहेंगे।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>9. इच्छा के विरूद्ध कार्य करना पड़ रहा हो तो- </b><br />
<b>अगर आपको किसी कारणवश कोइ कार्य अपनी इच्छा के विपरीत करना पड़ रहा हो तो आप कपूर और एक फूल वाली लौंग एक साथ जलाकर दो-तीन दिन में थोड़ी-थोड़ी खा लें। आपकी इच्छा के विपरीत कार्य होना बंद हो जाएगा।</b><br />
<b> </b><br />
<b>10. दाम्पत्य जीवन से झगड़े दूर करें ऐसे- </b><br />
<b>अगर आपका दाम्पत्य जीवन अशांत है तो आप रात्री में शय न करते समय पत्नी अपने पलंग पर देशी कपूर तथा पति के पलंग पर कामिया सिन्दूर रखें. प्रातः सूर्यदे के समय पति देशी कपूर को जला दें और पत्नी सिन्दूर को भवन में छिटका दें। इस टोटके से कुछ ही दिनों में कलह समाप्त हो जाती है।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>11. बेरोजगारी दूर करने हेतु- </b><br />
<b>अगर आपको नौकरी या काम नहीं मिल रहा है और आप मारे-मारे फिर रहे हैं तो एक दागरहित बड़ा नीबूं लें और चौराहे पर बारह बजे से पहले जाकर उसके चार हिस्से कर लें और चारों दिशाओं में दूर-दूर फेंक दें। फलस्वरूप बेरोजगारी की समस्या समाप्त हो जाएगी।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>12. भाग्योदय करने के लिए करें यह उपाय-</b><br />
<b>अपने सोए भाग्य को जगाने के लिए आप प्रात सुबह उठकर जो भी स्वर चल रहा हो, वही हाथ देखकर तीन बार चूमें, तत्पश्चात वही पांव धरती पर रखें और वही कदम आगे बाधाएं। ऐसा नित्य-प्रतिदिन करने से निश्चित रूप से भाग्योदय होगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>13. त्वचा रोग होने पर यह करें- </b><br />
<b>त्वचा संबंधी रोग केतु के दुष्प्रभाव से बढ़ते हैं। यदि त्वचा संबंधी घाव ठीक न हो रहा हो तो सायंकाल मिट्टी के नए पात्र में पानी रखकर उसमें सोने की अंगूठी या एनी कोइ आभूषण दाल दें। कुछ देर बाद उसी पानी से घाव को धोने के बाद अंगूठी निकालकर रख लें तथा पाने किसी चौराहे पर फेंक आएं। ऐसा तीन दिन करें तो रोग शीघ्र ठीक हो जाएगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>14. मंदी से छुटकारा पाएं ऐसे- </b><br />
<b>अगर आपके व्यापार में मंदी आ गयी है या नौकरी में मंदी आ गयी है तो यह करें। किसी साफ़ शीशी में सरसों का तेल भरकर उस शीशी को किसी तालाब या बहती नदी के जल में डाल दें। शीघ्र ही मंदी का असर जाता रहेगा और आपके व्यापार में जान आ जाएगी।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>15. भय को दूर करें ऐसे-</b><br />
<b>अगर आपको बिना कारण भय रहता हो या सांप-बिच्छू या वन्य पशुओं का भय रहता हो तो यह करें : बांस की जड़ जलाकर उसे कान पर धारण करने से भय मिट जाता है। निर्गुन्डी की जड़ अथवा मोर पंख घर में रख देने से सर्प कभी भी घर में प्रवेश नहीं करता। रवि-पुष्य योग में प्राप्त सफ़ेद चादर की जड़ लाकर दाईं भुजा पर बाँधने से वन्य पशुओं का भय नहीं रहता है साथ ही अग्नि भय से भी छुटकारा मिल जाता है। केवड़े की जड़ कान पर धारण करने से शत्रु भय मिट जाता है।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>16. अगर आपके परिवार में कोई रोगग्रस्त हो तो यह करें. </b><br />
<b>अगर स्वास्थ्य में सुधर न होता हो तो यह उपाय करें: एक देशी अखंडित पान, गुलाब का फूल और कुछ बताशे रोगी के ऊपर से 31 बार उतारें तथा अंतोक चौराहे पर रख दें। इसके प्रभाव से रोगी की दशा में शीघ्रता से सुधार होगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>17. पारिवारिक सुख-शांति के लिए- </b><br />
<b>अगर आपके परिवार में अशांति रहती है और सुख-चैन का अभाव है तो प्रतिदिन प्रथम रोगी के चार भाग करें, जिसका एक गाय को, दूसरा काले कुत्ते को, तीसरा कौवे को तथा चौथा टुकड़ा किसी चौराहे पर रखवा दें तो इसके प्रभाव से समस्त दोष समाप्त होकर परिवार की शांति तथा सम्रद्धि बढ़ जाती है।</b><br />
<b> </b><br />
<b>18. अपनाएं सुखी रहने के कुछ नुस्खे- </b><br />
<b>ब्रहस्पतिवार या मंगलवार को सात गाँठ हल्दी तथा थोड़ा-सा गुड इसके साथ पीतल का एक टुकड़ा इन सबको मिलाकर पोटली में बांधें तथा ससुराल की दिशा में फेंक दें तो वहां हर प्रकार से शांति व सुख रहता है।</b><br />
<b>कन्या अपनी ससुराल में रहते हुए यह करें। मेहँदी तथा साबुत उरद जिस दिशा में वधु का घर हो, उसी दिशा में फेंकने से वर-वधु में प्रेम बढ़ता है।</b><br />
<b>किसी विशेष कार्य के लिए घर के निकलते समय एक साबुत नीबू लेकर गाय के गोबर में दबा दें तथा उसके ऊपर थोड़ा-सा कामिया सिन्दूर छिड़क दें तथा कार्य बोलकर चले जाएं तो कार्य निश्चित ही बन जाता है।</b><br />
<b> सावन के महीने में जब पहली बरसात हो तो बहते पानी में विवाह करने से दुर्भाग्य दूर हो जाता है।</b><br />
<b>. </b><br />
<b><br /></b><br />
<b>19. अविवाहित व अधिक उम्र की कन्या के विवाह के लिए- </b><br />
<b>अगर आपकी लडकी अविवाहित है या उसकी उम्र बहुत ज्यादा हो चुकी है इसके कारण विवाह होने में रूकावटें आ रही हो तो इसके लिए एक उपाय है: देवोत्थान एकादशी कच और देवयानी की मिट्टी की मूरतें बनाकर उन मूर्तियों में हल्दी, चावल, आते का घोल लगाकर उनकी पूजा करके उन्हें एक लकड़ी के फट्टे से ढक लेते हैं. फिर उस फट्टे पर कुमारी कन्या को बिठा दिया जाता है तो उसका विवाह हो जाता है।</b><br />
<b>20 राई से करें दरिद्रता निवारण- </b><br />
<b>पैसों का कोइ जुगाड़ न बन रहा हो तथा घर में दरिद्रता का वाश हो तो यह करें: एक पानी भरे घड़े में राई के पत्ते डालकर इस जल को अभिमंत्रित करके जिस भी किसी व्यक्ति को स्नान कराया जाएगा उसकी दरिद्रता रोग नष्ट हो जाते हैं।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>21. स्वप्न में भविष्य जानें इस तरह भी- </b><br />
<b>अगर आप स्वप्न में भविष्य की बात मालूम करना चाहते हैं तो जंगल में जाकर जिस वृक्ष पर अमर बेल हो, उसकी सात परिक्रमा कर अमर बेल्युक्त एक लकड़ी को तोड़ लाएं। फिर उस लकड़ी को धुप देकर जला दें तथा लता को सिरहाने रखकर विचार करते हुए सो जाएं तो स्वप्न में भविष्य की बात मालूम हो जाती है।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b><br /></b><br />
<br />
<b>पांवों को जगाने का टोटका :</b><br />
<b>बहुधा देखा गया है कि प्राणी कहीं देर तक बैठा हो तो हाथ-पैर सुन्न हो जाते हैं। जो अंग सुन्न हो गया हो, उस पर उंगली से 27 का अंक लिख दीजिये, अंग ठीक हो जाएगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>मृत्यु की आशंका से बचने के उपाय :</b><br />
<b>काले तिल और जौ का आटा तेल में गूंथकर एक मोटी रोटी बनाएं और उसे अच्छी तरह सेंकें। गुड को तेल में मिश्रित करके जिस व्यक्ति की मरने की आशंका हो, उसके सिर पर से 7 बार उतार कर मंगलवार या शनिवार को भैंस को खिला दें।</b><br />
<b>गुड के गुलगुले सवाएं लेकर 7 बार उतार कर मंगलवार या शनिवार व इतवार को चील-कौए को डाल दें, रोगी को तुरंत राहत मिलेगी।</b><br />
<b>महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। द्रोव, शहद और तिल मिश्रित कर शिवजी को अर्पित करें। 'ॐ नमः शिवाय' षडाक्षर मंत्र का जप भी करें, लाभ होगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>लक्ष्मी प्राप्ति के टोटके :</b><br />
<b>श्रावण के महीने में 108 बिल्व पत्रों पर चन्दन से नमः शिवाय लिखकर इसी मंत्र का जप करते हुए शिवजी को अर्पित करें। 31 दिन तक यह प्रयोग करें, घर में सुख-शांति एवं सम्रद्धि आएगी, रोग, बाधा, मुकदमा आदि में लाभ एवं व्यापार में प्रगति होगी व नया रोजगार मिलेगा। यह एक अचूक प्रयोग है।</b><br />
<b>भगवान् को भोग लगाई हुई थाली अंतिम आदमी के भोजन करने तक ठाकुरजी के सामने रखी रहे तो रसोई बीच में ख़त्म नहीं होती है।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>बालक की दीर्घायु के लिये :</b><br />
<b>बालक को जन्म के नाम से मत पुकारें।</b><br />
<b>पांच वर्ष तक बालक को कपडे मांगकर ही पहनाएं।</b><br />
<b>3 या 5 वर्ष तक सिर के बाल न कटाएं।</b><br />
<b>उसके जन्मदिन पर बालकों को दूध पिलाएं।</b><br />
<b>बच्चे को किसी की गोद में दे दें और यह कहकर प्रचार करें कि यह अमुक व्यक्ति का लड़का है।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>घर में सुख-शांति के लिये :</b><br />
<b>मंगलवार को चना और गुड बंदरों को खिलाएं।</b><br />
<b>आठ वर्ष तक के बच्चों को मीठी गोलियां बाँटें।</b><br />
<b>शनिवार को गरीब व भिखारियों को चना और गुड दें अथवा भोजन कराएं।</b><br />
<b>मंगलवार व शनिवार को घर में सुन्दरकाण्ड का पाठ करें या कराएं।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>ग्रहों के देवता :</b><br />
<b>सूर्य के देवता विष्णु, चन्द्र के देवता शिव, बुध की देवी दुर्गा, ब्रहस्पति के देवता ब्रह्मा, शुक्र की देवी लक्ष्मी, शनि के देवता शिव, राहु के देवता सर्प और केतु के देवता गणेश। जब भी इन ग्रहों का प्रकोप हो तो इन देवताओं की उपासना करनी चाहिए।</b><br />
<b>मनोकामना की पूर्ती हेतु</b><br />
<b>होली के दिन से शुरू करके प्रतिदिन हनुमान जी को पांच पुष्प चढाएं, मनोकामना शीघ्र पूर्ण होगी।</b><br />
<b>होली की प्रातः बेलपत्र पर सफ़ेद चन्दन की बिंदी लगाकर अपनी मनोकामना बोलते हुए शिवलिंग पर सच्चे मन से अर्पित करें। बाद में सोमवार को किसी मन्दिर में भोलेनाथ को पंचमेवा की खीर अवश्य चढाएं, मनोकामना पूरी होगी।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>रोजगार प्राप्ति हेतु</b><br />
<b>होली की रात्री बारह बजे से पूर्व एक दाग रहित बड़ा नीबू लेकर चौराहे पर जाएं और उसकी चार फांक चारों कोनों में फेंक दें। फिर वापिस घर जाएं किन्तु ध्यान रहे, वापिस जाते समय पीछे मुड़कर न देखें। उपाय श्रद्धापूर्वक करें, शीघ्र ही बुरे दिन दूर होंगे व रोजगार प्राप्त होगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>स्वास्थ्य लाभ हेतु </b><br />
<b>मृत्यु तुल्य कष्ट से ग्रस्त रोगी को छुटकारा दिलाने के लिये जौ के आटे में तिल एवं सरसों का तेल मिला कर मोटी रोटी बनाएं और उसे रोगी के ऊपर से सात बार उतारकर भैंस को खिला दें। यह क्रिया करते समय ईश्वर से रोगी को शीघ्र स्वस्थ करने की प्रार्थना करते रहें।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>व्यापार लाभ के लिये </b><br />
<b>होली के दिन गुलाल के एक खुले पैकेट में एक मोती शंख और चांदी का एक सिक्का रखकर उसे नए लाल कपडे में लाल मौली से बांधकर तिजोरी में रखें, व्यवसाय में लाभ होगा।</b><br />
<b>होली के अवसर पर एक एकाक्षी नारियल की पूजा करके लाल कपडे में लपेट कर दुकान में या व्यापार पर स्थापित करें। साथ ही स्फटिक का शुद्ध श्रीयंत्र रखें. उपाय निष्ठापूर्वक करें, लाभ में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होगी।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>धनहानी से बचाव के लिये </b><br />
<b>होली के दिन मुख्य द्वार पर गुलाल छिडकें और उस पर द्विमुखी दीपक जलाएं। दीपक जलाते समय धनहानि से बचाव की कामना करें। जब दीपक बुझ जाए तो उसे होली की अग्नि में डाल दें। यह क्रिया श्रद्धापूर्वक करें, धन हानि से बचाव होगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>दुर्घटना से बचाव के लिये</b><br />
<b>होलिका दहन से पूर्व पांच काली गुंजा लेकर होली की पांच परिक्रमा लगाकर अंत में होलिका की ओर पीठ करके पाँचों गुन्जाओं को सिर के ऊपर से पांच बार उतारकर सिर के ऊपर से होली में फेंक दें।</b><br />
<b>होली के दिन प्रातः उठते ही किसी ऐसे व्यक्ति से कोई वास्तु न लें, जिससे आप द्वेष रखते हों। सिर ढक कर रखें। किसी को भी अपना पहना वस्त्र या रूमाल नहीं दें। इसके अतिरिक्त इस दिन शत्रु या विरोधी से पान, इलायची, लौंग आदि न लें। ये सारे उपाय सावधानी पूर्वक करें, दुर्घटना से बचाव होगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>आत्मरक्षा हेतु </b><br />
<b>किसी को कष्ट न पहुंचाएं, किसी का बुरा न करें और न सोचें। आपकी रक्षा होगी।</b><br />
<b>घर के प्रत्येक सदस्य को होलिका दहन में घी में भिगोई हुई दो लौंग, एक बताशा और एक पान का पत्ता अवश्य चढ़ाना चाहिए। होली की ग्यारह परिक्रमा करते हुए होली में सूखे नारियल की आहुति देनी चाहिए।. इससे सुख-सम्रद्धि बढ़ती है, कष्ट दूर होते हैं।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>अनबन दूर करने के लिये </b><br />
<b>होली के दिन 5-5 रत्ती के 5 मोतियों का ब्रेसलेट पहनें। इसके अतिरिक्त हर पूर्णिमा को चांदी के पात्र में कच्चा दूध डालकर चन्द्रमा को अर्ध्य दें, पति-पत्नी की आपसी संबंधों में मधुरता आयेगी।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>मतभेद दूर करने के लिये </b><br />
<b>पुत्र की पिता से न बनती हो तो अमावस्या, चतुर्दर्शीय या ग्रहण के दिन पुत्र पिता के जूतों से पुराने मोज़े निकाल कर उनमें नए मोज़े रख दे, दोनों के बीच चल रहा वैमनस्य दूर हो जाएगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>आँखों के रोग से मुक्ति के लिए</b><br />
<b>आँखों में यदि काला मोतिया हो जाए तो ताम्बे के पात्र में जल लेकर उसमें ताम्बे का सिक्का व गुड डालकर प्रतिदिन सूर्य को अर्ध्य दें। यह उपाय शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से शुरू कर चौदह रविवार करें। अर्ध्य देते समय रोग से मुक्ति की प्रार्थना करते रहें। इसके अतिरिक्त पांच प्रकार के फल लाल कपडे में बांधकर किसी भी मन्दिर में दें। यह उपाय निष्ठापूर्वक करें, लाभ होगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>नौकरी की प्राप्ति के लिए</b><br />
<b>नौकरी न मिल रही हो तो मन्दिर में बारह फल चढ़ाएं। यह उपाय नियमित रूप से करें और इश्वर से नौकरी मिलने की प्रार्थना करें।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>शीघ्र विवाह के लिए</b><br />
<b>विवाह योग्य वर या कन्या के शीघ्र विवाह के लिए घर के मन्दिर में नवग्रह यन्त्र स्थापित करें। जिनकी नई शादी हो, उन्हें घर बुलाएं, उनका सत्कार करें और लाल वस्त्र भेंट करें उन्हें भोजन या जलपान कराने के पश्चात सौंफ मिस्री जरूर दें। यह सब करते समय शीघ्र विवाह की कामना करें। यह उपाय शुक्ल पक्ष के मंगलवार को करें, लाभ होगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>मनोकामना पूर्ती के लिये</b><br />
<b>व्यापार मंदा हो तथा पैसा टिकता न हो, तो नवग्रह यन्त्र और धन यन्त्र घर के मन्दिर में शुभ समय में स्थापित करें। इसके अतिरिक्त सोलह सोमवार तक पांच प्रकार की सब्जियां मन्दिर में दें और पंचमेवा की खीर भोलेनाथ को मन्दिर में अर्पित करें। सभी कामनाएं पूरी होंगी।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>कुछ अन्य टोटके</b><br />
<b>समाज में मान सम्मन की प्राप्ति के लिये कबूतरों को चावल मिश्रित डालें, बाजरा शुक्रवार को खरीदें व शनिवार से डालना शुरू करें।</b><br />
<b>शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार या बुधवार को चमकीले पीले वस्त्र में शुद्ध कस्तूरी लपेटकर अपने धन रखने के स्थान पर रखें, घर में सुख-समृद्धी आयेगी।</b><br />
<b>यदि मार्ग में कोई सफाई कर्मचारी सफाई करता दिखाई दे तो उसे यह कहकर की चाय-पानी पी लेना या कुछ खा लेना, कुछ दान अवश्य दें, परिवार में प्यार व सुख-समृद्धी बढ़ेगी। यदि सफाई कर्मचारी महिला हो तो शुभ फल अधिक मिलेगा।</b><br />
<b>किसी भी विशेष मनोरथ की पूर्ती के लिये शुक्ल पक्ष में जटावाला नारियल नए लाल सूती कपडे में बांधकर बहते जल में प्रवाहित करें। यह उपाय निष्ठापूर्वक करें।</b><br />
<b>शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से नित्य प्रातः में अर्पित करें। फूल हनुमानजी को मन्दिर में अर्पित करें। फूल अर्पित करते समय हनुमान जी से मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करते रहें। ध्यान रहे यह उपाय करते समय कोई आपको टोके नहीं और टोके तो आप उसका उत्तर न दें।</b><br />
<b>जन्म पत्रिका में 12वें भाव में मंगल हो और खर्च बहुत होता हो, तो बेलपत्र पर चन्दन से 'भौमाय नमः' लिखकर सोमवार को शिवलिंग पर चढ़ाएं, उक्त सारे कष्ट दूर हो जायेंगे।</b><br />
<br />
<b>स्वस्थ शरीर के लिए :</b><br />
<b>एक रुपये का सिक्का लें। रात को उसे सिरहाने रख कर सो जाएं। प्रातः इसे ष्मशान की सीमा में फेंक आएं। शरीर स्वस्थ रहेगा।</b><br />
<b>ससुराल में सुखी रहने के लिए :</b><br />
<b>साबुत हल्दी की गांठें, पीतल का एक टुकड़ा, थोड़ा सा गुड़ अगर कन्या अपने हाथ से ससुराल की तरफ फेंक दे, तो वह ससुराल में सुरक्षापूर्वक और सुखी रहती है।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>सुखी वैवाहिक जीवन के लिए :</b><br />
<b>कन्या का जब विवाह हो चुका हो और वह विदा हो रही हो, तो एक लोटे (गड़वी) में गंगा जल, थोड़ी सी हल्दी, एक पीला सिक्का डाल कर, लड़की के सिर के उपर से ७ बार वार कर उसके आगे फेंक दें। वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>परेषानियां दूर करने व कार्य सिद्धि हेतु :</b><br />
<b>शनिवार को प्रातः, अपने काम पर जाने से पहले, एक नींबू लें। उसके दो टुकड़े करें। एक टुकड़े को आगे की तरफ फेंके, दूसरे को पीछे की तरफ। इन्हें चौराहे पर फेंकना है। मुख भी दक्षिण की ओर हो। नींबू को फेंक कर घर वापिस आ जाएं, या काम पर चले जाएं। दिन भर काम बनते रहेंगे तथा परेषानियां भी दूर होंगी।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>काम या यात्रा पर जाते हुए :</b><br />
<b>कभी भी किसी काम के लिए, या यात्रा पर जाते समय, एक नारियल लें। उसको हाथ में ले कर, ११ बार श्री हनुमते नमः कह कर, धरती पर मार कर तोड़ दें। उसके जल को अपने ऊपर छिड़क लें और गरी को निकाल कर बांट दें तथा खुद भी खाएं, तो यात्रा सफल रहेगी तथा काम भी बन जाएगा।</b><br />
<b>काम के लिए : अगर आपको किसी विशेष काम से जाना है, तो नीले रंग का धागा ले कर घर से निकलें। घर से जो तीसरा खंभा पड़े, उस पर, अपना काम कह कर, नीले रंग का धागा बांध दें। काम होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>काम के लिए </b><br />
<b>हल्दी की ७ साबुत गांठें, ७ गुड़ की डलियां, एक रुपये का सिक्का किसी पीले कपड़े में बांध कर, रेलवे लाइन के पार फेंक दें। फेंकते समय कहें काम दे, तो काम होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>धन के लिए :</b><br />
<b>एक हंडियां में सवा किलो हरी साबुत मूंग दाल या मूंगी, दूसरी में सवा किलो डलिया वाला नमक भर दें। यह दो हंडियां घर में कहीं रख दें। यह क्रिया बुधवार को करें। घर में धन आना शुरू हो जाएगा।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>मिर्गी के रोग को दूर करने के लिए :</b><br />
<b>अगर गधे के दाहिने पैर का नाखून अंगूठी में धारण करें, तो मिर्गी की बीमारी दूर हो जाती है।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>भूत-प्रेत और जादू-टोना से बचने के लिए :</b><br />
<b>मोर पंख को अगर ताबीज में भर के बच्चे के गले में डाल दें, तो उसे भूत-प्रेत और जादू-टोने की पीड़ा नहीं रहती।</b><br />
<b><br /></b><br />
<b>परीक्षा में सफलता हेतु : परीक्षा में सफलता हेतु गणेश रुद्राक्ष धारण करें। बुधवार को गणेश जी के मंदिर में जाकर दर्शन करें और मूंग के लड्डुओं का भोग लगाकर सफलता की प्रार्थना करें। </b><br />
<b><br /></b><br />
<b>पदोन्नति हेतु : शुक्ल पक्ष के सोमवार को सिद्ध योग में तीन गोमती चक्र चांदी के तार में एक साथ बांधें और उन्हें हर समय अपने साथ रखें, पदोन्नति के साथ-साथ व्यवसाय में भी लाभ होगा। </b><br />
<b><br /></b><br />
<b>मुकदमे में विजय हेतु : पांच गोमती चक्र जेब में रखकर कोर्ट में जाया करें, मुकदमे में निर्णय आपके पक्ष में होगा। </b><br />
<b><br /></b><br />
<b>पढ़ाई में एकाग्रता हेतु : शुक्ल पक्ष के पहले रविवार को इमली के २२ पत्ते ले आएं और उनमें से ११ पत्ते सूर्य देव को ¬ सूर्याय नमः कहते हुए अर्पित करें। शेष ११ पत्तों को अपनी किताबों में रख लें, पढ़ाई में रुचि बढ़ेगी। </b><br />
<b><br /></b><br />
<b>कार्य में सफलता के लिए : अमावस्या के दिन पीले कपड़े का त्रिकोना झंडा बना कर विष्णु भगवान के मंदिर के ऊपर लगवा दें, कार्य सिद्ध होगा। </b><br />
<b><br /></b><br />
<b>व्यवसाय बाधा से मुक्ति हेतु : यदि कारोबार में हानि हो रही हो अथवा ग्राहकों का आना कम हो गया हो, तो समझें कि किसी ने आपके कारोबार को बांध दिया है। इस बाधा से मुक्ति के लिए दुकान या कारखाने के पूजन स्थल में शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को अमृत सिद्ध या सिद्ध योग में श्री धनदा यंत्र स्थापित करें। फिर नियमित रूप से केवल धूप देकर उनके दर्शन करें, कारोबार में लाभ होने लगेगा। </b><br />
<b><br /></b><br />
<b>गृह कलह से मुक्ति हेतु : परिवार में पैसे की वजह से कलह रहता हो, तो दक्षिणावर्ती शंख में पांच कौड़ियां रखकर उसे चावल से भरी चांदी की कटोरी पर घर में स्थापित करें। यह प्रयोग शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार को या दीपावली के अवसर पर करें, लाभ अवश्य होगा। </b><br />
<b><br /></b><br />
<b>क्रोध पर नियंत्रण हेतु : यदि घर के किसी व्यक्ति को बात-बात पर गुस्सा आता हो, तो दक्षिणावर्ती शंख को साफ कर उसमें जल भरकर उसे पिला दें। यदि परिवार में पुरुष सदस्यों के कारण आपस में तनाव रहता हो, तो पूर्णिमा के दिन कदंब वृक्ष की सात अखंड पत्तों वाली डाली लाकर घर में रखें। अगली पूर्णिमा को पुरानी डाली कदंब वृक्ष के पास छोड़ आएं और नई डाली लाकर रखें। यह क्रिया इसी तरह करते रहें, तनाव कम होगा। </b><br />
<b><br /></b><br />
<b>मकान खाली कराने हेतु : शनिवार की शाम को भोजपत्र पर लाल चंदन से किरायेदार का नाम लिखकर शहद में डुबो दें। संभव हो, तो यह क्रिया शनिश्चरी अमावस्या को करें। कुछ ही दिनों में किरायेदार घर खाली कर देगा। ध्यान रहे, यह क्रिया करते समय कोई टोके नहीं। </b><br />
<b><br /></b><br />
<b>बिक्री बढ़ाने हेतु : ग्यारह गोमती चक्र और तीन लघु नारियलों की यथाविधि पूजा कर उन्हें पीले वस्त्र में बांधकर बुधवार या शुक्रवार को अपने दरवाजे पर लटकाएं तथा हर पूर्णिमा को धूप दीप जलाएं। यह क्रिया निष्ठापूर्वक नियमित रूप से करें, ग्राहकों की संख्या में वृद्धि होगी और बिक्री बढ़ेगी। </b><br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-33727565926604185092012-07-15T18:56:00.000-07:002012-07-15T18:56:05.024-07:00बैंकिंग क्षेत्र में नौकरी की संभावना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<span style="color: red; font-size: small;"><b>जन्म-कुण्डली का विश्लेषण कर बैंकिंग क्षेत्र में नौकरी की संभावना का पता लगाया जा सकता है। बैंक / लिपिक सेवा वाणिज्य के अन्तर्गत आते हैं। वाणिज्य और वित्त का कारक बुध है। गुरू ज्ञान और तरक़्क़ी का कारक है, शुक्र धन के प्रबंधन / नक़दी / अर्थ का कारक है और शनि ऋण / बॉण्ड / जनता के लेन-देन / ख़रीद-फ़रोख़्त का कारक है। इन ग्रहों का कुछ ख़ास भावों में होना उस व्यक्ति के वित्त-क्षेत्र में काम करने को इंगित करता है।</b></span></div>
<b><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"></span></b><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<span style="color: red; font-size: small;"><b>जिन जातकों के लग्न में वृषभ, सिंह, कन्या, वृश्चिक और धनु राशि हो, उनके इस पेशे में क़ामयाब होने की संभावना ज़्यादा रहती है। कोई बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश कर सकेगा और अधिकारी या लिपिक के तौर पर सफल हो सकेगा या नहीं, ये जानने के लिए कुछ ज्योतिषीय योगों पर विचार करते हैं।</b></span></div>
<b><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"></span></b><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<span style="color: red; font-size: small;"><b>चौथे, पाँचवे या दसवें भाव में बुध और गुरू की स्थिति बैंकिंग / वित्त / वाणिज्य के क्षेत्र से जुड़े पेशे को दर्शाती है। चौथे भाव को शिक्षा के लिए, पाँचवें को लोगों से संपर्क और लेन-देन के लिए, नौवें भाव को उच्च शिक्षा के लिए, छठे भाव को नौकरी के लिए और दसवें भाव को सरकारी क्षेत्र या सरकारी कंपनी में करियर के लिए देखा जाता है। अगर ग्यारहवें भाव या उसके स्वामी पर गुरू और बुध व त्रिकोण में स्थित शुभ ग्रहों की दृष्टि हो, तो जातक बैंकिंग क्षेत्र से धन अर्जित करता है।</b></span></div>
<b><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"></span></b><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<span style="color: red; font-size: small;"><b>अगर चौथे या नौवें भाव का स्वामी बुध या गुरू हो तथा दसवें भाव से दृष्टि-संबंध हो, तो यह बैंक में नौकरी की सम्भावना को मज़बूत करता है। साथ ही इसमें अगर सूर्य की सहभागिता भी हो, तो जातक बैंक में अधिकारी बन सकता है। सूर्य सरकार या प्रशासन को भी दर्शाता है। यदि सूर्य ऊपर बताए गए संयोजन के साथ दसवें या ग्यारहवें भाव में सिंह राशि में बैठा हो, तो जातक शीघ्र ही तरक़्क़ी करता है और सरकारी बैंक व रिज़र्व बैंक आदि में उच्च-अधिकारी का पद भी हासिल कर सकता है।</b></span></div>
<b><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"></span></b><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<span style="color: red; font-size: small;"><b>अगर बुध या गुरू चौथे, नौवें या दसवें भाव के स्वामी हों और लग्न को देख रहे हों, तो जातक वाणिज्य से संबंधित शिक्षा / पेशे से जुड़ा होता है। यदि शुक्र चौथे, नौवें या दसवें भाव का स्वामी हो और दसवें, ग्यारहवें भाव में स्थित हो या उसे देख रहा हो तथा उस पर बुध या बृहस्पति की दृष्टि हो, तो ज़्यादातर देखा गया है कि ऐसा जातक बैंक में नक़द लेन-देन का काम संभालता है। यहाँ भी सूर्य की स्थिति कार्यक्षेत्र में उन्नति को तय करेगी। अगर चौथे, पाँचवें घर का स्वामी शनि हो और ख़ुद दसवें, ग्यारहवें भाव में बैठा हो या देख रहा हो तथा उसके ऊपर बुध या बृहस्पति की दृष्टि हो, तो प्रायः जातक जनता की पूँजी के व्यवहार या लेन-देन से संबंधित काम करता है।</b></span></div>
<b><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"></span></b><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<span style="color: red; font-size: small;"><b>यदि लग्न धनु हो और इसपर किसी भी रूप में सूर्य, बुध या शुक्र की दृष्टि हो, तो ऐसे में उस व्यक्ति के बैंकिंग क्षेत्र में काम करने की प्रबल सम्भावना रहती है। इसके अलावा अगर लग्न धनु हो और शनि जन्म-कुण्डली में या तो दूसरे या नौवें भाव में स्थित हो व उसपर बृहस्पति या बुध की दृष्टि हो, तो जातक बैंक और उससे जुड़ी सेवाओं के ज़रिए धनार्जन करेगा। इसी तरह यदि लग्न में धनु राशि हो और गुरू दूसरे, ग्यारहवें भाव के स्वामी को देख रहा हो या स्वयं इन भावों में कहीं बैठा हो तथा शुक्र और बुध साथ में बैठे हों व शक्तिशाली हों, तो जातक को बैंकिंग क्षेत्र में निश्चित तौर पर सफलता मिलती है।</b></span></div>
<b><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"></span></b><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<span style="color: red; font-size: small;"><b>यदि लग्न कन्या है, बुध मिथुन राशि में है और गुरू के साथ बैठा है तथा शुक्र शक्तिशाली है, तो जातक को इस क्षेत्र में क़ामयाबी हासिल होती है। इसी तरह कन्या लग्न की कुण्डली में अगर बुध और बृहस्पति की युति हो तथा उनपर शुक्र या चन्द्र की दृष्टि हो तो वह व्यक्ति इस क्षेत्र में सफलता अर्जित करता है। अगर बुध और चन्द्र दोनों ही शक्तिशाली हैं और तो जातक इस क्षेत्र में आकर काफ़ी प्रगति करता है।</b></span></div>
<b><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"></span></b><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<span style="color: red; font-size: small;"><b>यदि लग्न वृषभ है और लग्न में बुध शनि के साथ बैठा है या लग्न को देख रहा है या फिर शनि द्वारा देखा जा रहा है और गुरू शक्तिशाली है, तो जातक बैंकिंग क्षेत्र में क़ामयाबी पाकर अधिकारी बनता है। अगर वृषभ, कन्या या धनु लग्न है और नौवें, दसवें या ग्यारहवें भावों में बुध, शुक्र और शनि के बीच संबंध है, तो जातक बैंक में काम करेगा।</b></span></div>
<b><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"></span></b><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<span style="color: red; font-size: small;"><b>इसी तरह अगर सूर्य, बुध और गुरू शक्तिशाली हों व दसवें भाव से संबंधित हों तो जातक अर्थशास्त्री बन सकता है।</b></span></div>
<b><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"></span></b><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<span style="color: red; font-size: small;"><b>अगर ग्रहों की शक्ति क्षीण है या वे तटस्थ राशि में बैठे हैं, तो यह औसत शिक्षा को दिखलाता है और बैंक से जुड़ी क्लर्क वग़ैरह की नौकरी को इंगित करता है। यदि वे शत्रु राशियों में बैठे हैं या उनपर अशुभ दृष्टियाँ हैं, तो उन्हें नौकरी के दौरान बेहद समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।</b></span></div>
<b><span style="color: red; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"></span></b><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<span style="color: red; font-size: small;"><b>बुधादित्य योग वाणिज्य के क्षेत्र में दिलचस्पी को दर्शाता है। यह जातक को अर्थाशास्त्री, बैंक अधिकारी, सांख्यिकीविद, एमबीए या सीए बनाता है। बुध सूर्य से जितना क़रीब हो और पीछे हो, वह उतना ही बेहतर परिणाम देता है।</b></span></div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-83620298787249130712012-07-15T18:39:00.003-07:002012-07-15T18:39:54.003-07:00न्याय के देव शनि<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="Text_Default" id="I2323" style="clear: both; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;">
<div class="sys_txt" id="I2323_sys_txt" style="margin: 0px; padding: 0px;">
<div style="padding: 5px 0px;">
<span style="font-size: medium;"><b>न्याय के देव शनि को कौन नहीं भला जानता होगा, और शनि की साढ़ेसाती से लगभग सभी लोग परिचित होते ही हैं। ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर 15 नवंबर 2011 को शनि तुला राशि में प्रवेश करेंगे जिसकी वजह से सिंह राशि वालों की साढ़ेसाती समाप्त हो जाएगी तथा कन्या, तुला और वृश्चिक राशि वाले जातकों पर साढ़ेसाती का प्रभाव बना रहेगा। इन तीनों राशियों में तुला राशि के जातकों के लिए शनि की साढ़ेसाती शुभ रहेगी।<br />15 नवंबर को तुला राशि में प्रवेश करेंगे शनि :<br />प्रिय पाठकों, ज्योतिष गणनाओं के आधार पर शनि तुला राशि में 15 नवंबर 2011 को प्रवेश करेगा। खुशी की बात यह है कि सिंह राशि वाले महानुभावों को शनि की साढ़े साती से मुक्ति मिलेगी, वहीं दूसरी ओर वृश्चिक राशि वालों पर शनि की साढ़ेसाती प्रारंभ होगी तथा कन्या और तुला राशि वालों को शनि की साढ़े साती चालू यथावत बनी रहेगी। कन्या राशि वालों को यह अंतिम ढैय्या रहेगी और तुला राशि वालों को दूसरी ढैय्या रहेगी। तुला राशि का स्वामी शुक्र और कन्या राशि का स्वामी बुध यह दोनों ही शनिदेव के मित्र हैं। इस कारण से इन राशि वालों को कष्ट की मात्रा अल्प रहेगी। इसके अतिरिक्त यदि शनिदेव की आराधना करके उनका सम्मान किया जाये तो साढ़ेसाती का असर नगण्य हो सकता है।<br />देश के लिए कैसा रहेगा यह शनि का राशि परिवर्तन :<br />हमारे देश भारतवर्ष की वृष लग्न और कर्क राशि है। अतएव अपने देश भारत पर शनि के साढ़े साती का असर बिल्कुल न के बराबर रहेगा। बल्कि वृष लग्न वाले भारतवर्ष एवं जातकों के लिए शनि सकारात्मक फल प्रदान करने वाला योगकारी और भाग्योदयकारी है।<br /> हजारों कुंडलीयों में मैने प्राय: ऐसा देखा है कि जन्म पत्रिका में शनि यदि लाभकारी स्थिति में है तो उन व्यक्तियों को लाभ देगा। इस लेख के माध्यम से उन भविष्यवक्ताओं एवं लोगों को बताना चाहूंगा कि यदि शनि की साढ़े साती का विश्लेषण करते समय हमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित तथ्यों का जरूर ध्यान देना चाहिए।<br />जन्म पत्रिका के अनुसार किस ग्रह की महादशा, अंतर्दशा चल रही है, यह भी ध्यान में रखना होगा। यह नियम भी याद रखना आवश्यक है कि जब शनि 3, 6, 11 स्थानों पर भ्रमण करता है तो बहुत अच्छा फ ल देता है। इस नियम के अनुसार तुला का शनि सिंह राशि, वृष राशि एवं धनु राशि वालों को लाभकारी रहने की संभावना है। कन्या राशि वालों को यह धन स्थान में मित्र क्षेत्री रहने से यदि जन्म पत्रिका में लाभकारी है तो बहुत लाभकारी सिद्ध होगा। यदि सर्विस में है तो प्रमोशन मिलेगा। जहां 15 नवंबर 2011 से शनि की साढ़ेसाती कन्या, तुला, वृश्चिक राशि पर रहेगी, उसी के साथ कर्क, मीन राशि वालों को शनि की ढैय्या रहेगी। इनका समय कष्टकारी रहेगा। शनि लाभकारी रहेगा या कष्टकारी, इसका निर्णय अष्टक वर्ग में उसे प्राप्त बिंदु के आधार पर ही रिकया जाना चाहिए। क्योंकि वह उसी के अनुसार फ ल देगा। यदि 28 से कम बिंदु मिले हैं तो परिणाम ठीक नहीं होंगे, यदि 28 से अधिक बिंदु मिलते हैं तो उस अवस्था में शनि कम कष्टकारी रहेगा। शनि के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए व्यापक दृष्टिकोण रखना होगा। यह भी विचार करें कि वह जन्म पत्रिका में किस ग्रह के ऊपर से भ्रमण कर रहा है, उसके अनुसार परिणाम होंगे। ज्योतिष का यह नियम भी याद रखें कि शनि जिस स्थान पर रहता है उसमें उस भाव से संबंधित शुभ फल देता है, परंतु जिस घर पर उसकी दृष्टि रहती है उससे संबंधित वस्तुओं को नुकसान पहुंचाता है।<br /> शनि की दृष्टि है अमंगलकारी :<br />शनि की दृष्टि अमंगलकारी रहने का कारण यह भी है कि शनि को उनकी धर्म पत्नी द्वारा श्राप दिया गया था। शनि अपने स्थान से सप्तम स्थान, तृतीय स्थान एवं दशम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है। जिन युवकों एवं कन्याओं की जन्म पत्रिका में शनि की पूर्ण दृष्टि सप्तम यानी विवाह स्थान पर रहती है, ऐसे लड़के, लडकियों के विवाह बहुत कठिनाई से होते हैं। यदि किसी लड़के, लड़की के विवाह में विलंब होता है तो देखें कि शनि की दृष्टि तो विवाह स्थान पर है या नहीं, यदि है तो दृष्टि प्रभाव हेतु समुचित उपायों का उपयोग कर सकते हैं।<br />माननीया सुश्री मायावती का शनि पंचम में है और विवाह स्थान को तृतीय पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। वह शायद इसी कारण अविवाहित हैं, जैसा कि ऊपर वर्णन कर चुके हैं। वृश्चिक राशि पर 15.11.2011 से साढ़े साती आयेगी। तुला का शनि उच्च का रहेगा तो तुला, मिथुन, धनु, मकर तथा कुंभ राशि वालों के लिए लाभकारी रहेगा। परंतु भारतीय जनता पार्टी की राशि पर साढ़ेसाती के कारण पार्टी में परेशानी पैदा करेगा। नेताओं में मतभेद उभरेंगे। प्रधानमंत्री पद के दावेदार को लेकर भी मतभेद बढऩे की संभावना रहेगी।<br />कैसे प्रसन्न होंगे शनिदेव :<br />श्री शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए निम्नलिखित मंत्रों में से किसी मंत्र का जप श्रद्धापूर्वक करें तो कष्टों का निवारण होगा।<br />तांत्रिक मंत्र : 1. ऊँ शं शनैश्चराय नम: 2. ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:<br />वैदिक मंत्र : ऊँ शन्नौ देवीरभिष्टयाऽआपो भवंतु पीतये। शंय्योरभि:श्रवंतु न:॥<br />श्री शंकर भगवान की उपासना व श्री बजरंगबली की उपासना से भी शनि के कष्ट दूर होते हैं। अत: आप श्री शंकर भगवान या श्री बजरंगबली की आराधना करें। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनि की वस्तुओं का दान करना भी लाभकारी रहता है। ये वस्तुएं हैं- काले उड़द, काले तिल, तेल, लोहा, बर्तन में सरसों का तेल आदि- श्री बजरंगबली के मंदिर में भेंट करना, बहुत लाभकारी रहता है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी बहुत लाभकारी सिद्ध होता है। वह मंत्र इस प्रकार है- ऊँ त्र्यंबकम् यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।<br /> हम सभी जानते हैं कि शनिदेव, सूर्य पुत्र और यम के सहोदर हैं। भगवान भोलेनाथ ने शनि को भ्रष्ट जीवों को दंड देने की जिम्मेदारी दी है। इस प्रकार शनिदेव दंडाधिकारी हैं। शनि जन्म पत्रिका में कर्म स्थान यानी दशम स्थान- भाग्य में स्वगृही या उच्च का होने पर उक्त व्यक्ति को राजनीति में शिखर पर पहुंचा देता है। पत्रिका में वृष, तुला और मकर लग्न वालों को यह योगकारी होता है और वह स्वगृही या उच्च का हो तो उच्चपद दिलाता है जैसे माननीय अटल बिहारी बाजपेई जी का तुला का शनि लग्न में उच्च का है।<br />1. श्री के. पी. एस. गिल प्रसिद्ध पुलिस अधिकारी का शनि भाग्य में स्वगृही है और बार-बार उच्चपद मिलता गया।<br />2. श्री मनमोहन सिंह जी का शनि धनस्थान में स्वगृही होने का लाभ यह हुआ कि उन्हें उच्चपद मिला।<br />3. श्री मुरली मनोहर जोशी जी का शनि स्वगृही है और विपरीत राजयोग बनाया है तथा शनि की महादशा 18 जुलाई 2013 से लाभकारी रहेगी पार्टी में पूछ परख बढ़ेगी और अचानक लाभ मिलेगा।<br />4. बी.जे.पी. के श्री विक्रम वर्मा जी, को भी शनि आय स्थान में 15 नवंबर 2011 से लाभकारी रहेगा।<br />5. श्री शिवराज सिंह चौहान मुखयमंत्री (म.प्र.) की मकर राशि होने से शनि भाग्य में लाभकारी रहेगा। उत्तर प्रदेश की मुखयमंत्री सुश्री मायावती की वृष लग्न है और भाग्य का स्वामी शनि पंचम (बुद्धि स्थान) में होने से पुन: मुखयमंत्री बनी। श्री नारायण दत्त तिवारी और नर्मदा आंदोलन की नेता सुश्री मेघा पाटकर की मकर लग्न में एवं शनि भाग्य में उच्च का है वह राजनीति में उच्चपद पर अवश्य जायेंगी। शनि की दशा में अभी उनका समय अनुकूल चल रहा है। शनि व्यक्ति को कर्मठ बनाता है। यदि किसी की जन्म पत्रिका में शनि बलहीन मेष राशि में बैठा हो तो व्यक्ति बार-बार उन्नति के शिखर तक पहुंचते-पहुंचते रह जाता है। वृष, तुला, मकर राशि-लग्न वाले व्यक्ति नीलम की अंगूठी पहनकर शनि को प्रसन्न कर सकते हैं। </b></span></div>
</div>
</div>
<div class="Text_Default" id="I2318" style="clear: both; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;">
<div class="sys_txt" id="I2318_sys_txt" style="margin: 0px; padding: 0px;">
<div style="padding: 5px 0px;">
<b><span class="artshowhead"></span></b></div>
<h1 style="color: #6a0000; font-size: 24px; line-height: 22px; margin: 5px 0px; padding: 10px 0px;">
राशि 2011: साढ़ेसाती का प्रभाव</h1>
<b><br /></b><div style="padding: 5px 0px;">
</div>
<div class="Normal">
<span style="font-size: small;"><b>शनि साढ़ेसाती वर्ष 2011 के अधिकांश समय में सिंह , कन्या और तुला राशि पर रहेगी। 14 नवम्बर को शनि अपनी राशि बदलेगा यानी कन्या राशि से तुला राशि में प्रवेश करेगा। फलत: सिंह राशि से साढे़साती उतरेगी और वृश्चिक राशि पर साढ़ेसाती आरंभ होगी।<br /><br />मेष , वृश्चिक और मिथुन राशि को ढैया स्वर्ण पाद यानी सोने के पाये से रहेगी। मीन , धनु और सिंह राशि को ढैया चांदी के पाये से रहेगी। कुंभ ,तुला और कर्क राशि को तांबे के पाये से ढैया रहेगी। मकर , कन्या और वृष राशि को शनि लौहपाद यानी लोहे के पाये से फल देगा। शनि के विभिन्न पाये यानी चरणों का फल धातुओं के हिसाब से आंका जाता है।<br /><br />साढे़साती के दौरान जातक की जन्मकालीन कुण्डली में स्थित शनि का असर मुख्य रूप से होता है। फिर भी गोचर में सबसे खराब लोहे के पाये का असर बताया है। तांबे और चांदी के पाये का असर कुछ अच्छा विकास और उन्नतिदायक बताया है। उसी प्रकार सोने के पाये का असर मतिभ्रम अपव्यय और तनाव व्यापार और नौकरी में घाटे की स्थिति को दर्शाता है।<br /><br />सभी राशियों पर शनि का प्रभाव<br />मेष : इस समय आपके मधुर संबंधों में कटुता बनी रहेगी। उद्योग-व्यापार में लाभ कम हानि की आशंका अधिक रहेगी। दाम्पत्य जीवन में अशांति परन्तु संतान पक्ष की कामयाबी से हर्ष रहेगा। स्वास्थ्य से पूर्ण संतुष्टी नहीं रहेगी। 15 नवम्बर के बाद सभी परिस्थितियों में सुधार होगा। शांति मिलेगी।<br /><br />वृष : आपके द्वारा किया गया प्रयास सार्थक होगा। उद्योग , व्यापार में लाभ के अवसर मिलेंगे। शिक्षा-परीक्षा में सफलता घरेलू सुख शांति में कुछ गतिरोध बना रहेगा। परन्तु वाद-विवाद में सफलता मिलेगी। 15 नवम्बर के बाद मानसिक अस्थिरता , गृह प्रपंच बढ़ सकता है।<br /><br />मिथुन : घरेलू सुखों में उतार-चढ़ाव , माता-पिता को कष्ट , विद्युत अग्निभय , मनस्ताप , कार्य व्यवसाय में गतिरोध , अनुचित खर्च से परेशानी। 15 नवम्बर के बाद सभी परिस्थितियों में सुधार , कार्यसिद्धि , मन खुश रहेगा। सुख शांति बनी रहेगी।<br /><br />कर्क : स्वास्थ्य बाधा , शिक्षा परीक्षा में गतिरोध बना रहेगा। शारीरिक दुर्बलता , कार्य व्यवसाय में गतिरोध आगंतुकों से कष्ट , अपयश और मान-हानि हो सकती है। शारीरिक स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। 15 नवम्बर के बाद विपरीत परिस्थितियों में सुधार , आजीविका संबंधी कार्यों में सफलता , वैवाहिक जीवन में शांति तथा अदालती कार्यों में सफलता मिल सकती है।<br /><br />सिंह : शारीरिक मानसिक कष्ट , चोर अग्नि भय , वाहन से कष्ट , नवीन परिवर्तनों में विश्वासघात , शत्रु वृद्धि , चल अचल सम्पत्ति में बाधाएं उत्पन्न होंगी। 15 नवम्बर के बाद अचानक वित्त लाभ , प्रतियोगिता में सफलता , पारिवारिक सुख सम्पन्नता तथा इच्छित कार्य सिद्धि हो सकती है।<br /><br />कन्या : स्वास्थ्य बाधा , अपकृति , शत्रु वृद्धि , अपमानजनक स्थितियां। स्वजन परिजन से विवाद , अनर्गल खर्चा , स्त्री-संतान को कष्ट , कार्य-व्यवसाय में हानि हो सकती है। 15 नवम्बर के बाद स्थितियों में सुधार , नौकरी-व्यापार के लिए किया गया प्रयास सार्थक होगा। दाम्पत्य जीवन में अनुराग तथा ऐच्छिक कार्य सिद्धि।<br /><br />तुला : नौकरी व्यापार में किया गया प्रयास सार्थक होगा। कोई महत्वपूर्ण पद की प्राप्ति हो सकती है। समाज में मान-सम्मान तथा महत्वपूर्ण अधिकार की प्राप्ति। 15 नवम्बर के बाद निराशाजनक स्थितियां बन सकती हैं। जिससे अपच , हाई बीपी , धन की कमी होगी। नौकरी व्यापार में भी गतिरोध उत्पन्न हो सकते हैं।<br /><br />वृश्चिक : नवीन संकट का सामना , उत्पीड़न सहन करना पड़ेगा। लाभ कम हानि की आशंका ज्यादा रहेगी। आर्थिक स्थिति अनियंत्रित रहेगी। स्त्री , पुत्र , माता , पिता को शारीरिक कष्ट हो सकता है। 15 नवम्बर के बाद औद्योगिक क्षमता का विस्तार , शत्रुओं का शमन , बौद्धिक विकास ,नए वाहन भूमि भवन का लाभ संभव है।<br /><br />धनु : कुछ नए तरह की समस्या का सामना करना पड़ेगा। कार्य व्यवसाय में हानि , पारिवारिक और राजकीय उलझन बनी रहेंगी। शिक्षा-परीक्षा में गतिरोध बना रहेगा। 15 नवम्बर के बाद कार्य विस्तार और भूमि या वाहन की प्राप्ति हो सकती है। प्रियजनों का विछोह हो सकता है।<br /><br />मकर : बौद्धिक विकास , नौकरी व्यापार में स्थान परिवर्तन , अभीष्ट कार्यसिद्धि से प्रसन्नता , पुराने विवाद से निवृति , स्त्री संतान का सुख सहयोग , परन्तु 15 नवम्बर के बाद धन दव्य की हानि व्यर्थ भ्रमण दैनिक जीवन में खट्टे-मीठे अनुभव होंगे।<br /><br />कुंभ : उद्योग व्यापार में लाभ , महत्वपूर्ण पद अधिकार की प्राप्ति , बौद्धिक कौशल से बाधाओं की निवृति होगी। ज्ञान , धर्म , धन , पुत्र सुख वृद्धि से मानसिक सुख बना रहेगा। परन्तु 15 नवम्बर के बाद अप्रिय वातावरण भोजन शयन में व्यवधान , धन सुख की हानि , विविध कष्ट का योग। स्त्री या संतान के कारण मान हानि की संभावना है , वाहन या शत्रु से कष्ट का योग।<br /><br />मीन : धन अभाव , राजकीय सामाजिक परेशानी , कार्य अवरोधक प्रभाव , उत्साह में कमी , स्त्री संतान को कष्ट , प्रियजनों का विछोह। व्यापारिक पूंजी का क्षय , पुलिस के मामलों से धन अपव्यय हो सकता है। 15 नवम्बर के बाद सभी परिस्थितियों में सुधार , रोग सुख की निवृति और कार्य-व्यवसाय से धन लाभ हो सकता है। धर्म , अध्यात्म , अनुराग से यश और सफलता की प्राप्ति हो सकती है।<br /><br /><span style="color: red;">शनि का प्रभाव </span><br />शनि अपना प्रभाव 3 चरणों में दिखाता है , जो साढ़े सात हफ्ते से साढ़े सात वर्ष तक होता है।<br />पहले चरण में : जातक का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और वह अपने उद्देश्य से भटक कर चंचल वृत्ति धारण कर लेता है। उसके अंदर स्थिरता का अभाव अपनी गहरी पैठ बना लेता है। पहले चरण की अवधि लगभग ढाई वर्ष तक होती है।<br /><br />दूसरे चरण में : मानसिक के साथ-साथ शारीरिक कष्ट भी उसको घेरने लगते हैं , उसके सारे प्रयास असफल होते जाते हैं। तन , मन , धन से वह निरीह और दयनीय अवस्था में अपने को महसूस करता है। इस दौरान अपने और परायों की परख भी हो जाती है। अगर उसने अच्छे कर्म किए हों तो इस दौरान इसके कष्ट भी धीरे-धीरे कम होने लगते हैं। अगर दूषित कर्म किए हैं और गलत विचारधारा से जीवनयापन किया है तो साढ़ेसाती का दूसरा चरण घोर कष्टप्रद होता है। इसकी अवधि भी ढाई साल होती है।<br /><br />तीसरे चरण में : तीसरे चरण के प्रभाव से ग्रस्त जातक अपने संतुलन को पूर्ण रूप से खो चुका होता है और उसमें क्रोध की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है। परिणाम स्वरूप हर कार्य का उल्टा ही परिणाम सामने आता है तथा उसके शत्रुओं की वृद्धि होती जाती है। मतिभ्रम और गलत निर्णय लेने से फायदे के काम भी हानिप्रद हो जाते हैं। स्वजनों और परिजनों से विरोध बढ़ता है। आम लोगों में छवि खराब होने लगती है। अत: जिन राशियों पर साढे़ साती और ढैया का प्रभाव है , उन्हें शनि की शांति के उपचार करने पर अशुभ फलों की कमी होने लगती है और धीरे-धीरे वे संकट से निकलने के रास्ते प्राप्त कर सकते हैं। </b></span></div>
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</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-14939022165001052352012-07-14T21:05:00.001-07:002012-07-14T21:05:10.708-07:00कुंडली मिलान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: red;"><b><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;">भारतीय ज्योतिष में विवाह शादी के लिए कुंडली मिलान के लिए गुण मिलान की विधि आज भी सबसे अधिक प्रचलित है। इस विधि के अनुसार वर-वधू की जन्म कुंडलियों में चन्द्रमा की स्थिति के आधार पर निम्नलिखित अष्टकूटों का मिलान किया जाता है।<br />1) वर्ण<br />2) वश्य<br />3) तारा<br />4) योनि<br />5) ग्रह-मैत्री<br />6) गण<br />7) भकूट<br />8) नाड़ी<br /><br />उपरोक्त अष्टकूटों को क्रमश: एक से आठ तक गुण प्रदान किये जाते हैं, जैसे कि वर्ण को एक, नाड़ी को आठ तथा बाकी सबको इनके बीच में दो से सात गुण प्रदान किये जाते हैं। इन गुणों का कुल जोड़ 36 बनता है तथा इन्हीं 36 गुणों के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित किया जाता है। 36 में से जितने अधिक गुण मिलें, उतना ही अच्छा कुंडलियों का मिलान माना जाता है। 36 गुण मिलने पर उत्तम, 36 से 30 तक बहुत बढ़िया, 30 से 25 तक बढ़िया तथा 25 से 20 तक सामान्य मिलान माना जाता है। 20 से कम गुण मिलने पर कुंडलियों का मिलान शुभ नहीं माना जाता है। </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"></span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />किन्तु व्यवहारिक रूप में गुण मिलान की यह विधि अपने आप में पूर्ण नहीं है तथा सिर्फ इसी विधि के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित कर देना उचित नहीं है। इस विधि के अनुसार वर-वधू की कुंडलियों में नवग्रहों में से सिर्फ चन्द्रमा की स्थिति ही देखी जाती है तथा बाकी के आठ ग्रहों के बारे में बिल्कुल भी विचार नहीं किया जाता जो किसी भी पक्ष से व्यवहारिक नहीं है क्योंकि नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह का अपना महत्त्व है तथा किसी भी एक ग्रह के आधार पर इतना महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया जा सकता। इस लिए गुण मिलान की यह विधि कुंडलियों के मिलान की विधि का एक हिस्सा तो हो सकती है लेकिन पूर्ण विधि नहीं। आइए अब विचार करें कि एक अच्छे ज्योतिषि को कुंडलियों के मिलान के समय किन पक्षों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />सबसे पहले एक अच्छे ज्योतिषि को यह देखना चाहिए कि क्या वर-वधू दोनों की कुंडलियों में सुखमय वैवाहिक जीवन के लक्ष्ण विद्यमान हैं या नहीं। उदाहरण के लिए अगर दोनों में से किसी एक कुंडली मे तलाक या वैध्वय का दोष विद्यमान है जो कि मांगलिक दोष, पित्र दोष या काल सर्प दोष जैसे किसी दोष की उपस्थिति के कारण बनता हो, तो बहुत अधिक संख्या में गुण मिलने के बावज़ूद भी कुंडलियों का मिलान पूरी तरह से अनुचित हो सकता है। इसके पश्चात वर तथा वधू दोनों की कुंडलियों में आयु की स्थिति, कमाने वाले पक्ष की भविष्य में आर्थिक सुदृढ़ता, दोनों कुंडलियों में संतान उत्पत्ति के योग, दोनों पक्षों के अच्छे स्वास्थय के योग तथा दोनों पक्षों का परस्पर शारीरिक तथा मानसिक सामंजस्य देखना चाहिए। उपरोक्त्त विष्यों पर विस्तृत विचार किए बिना कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित करना मेरे विचार से सर्वथा अनुचित है। इस लिए कुंडलियों के मिलान में दोनों कुंडलियों का सम्पूर्ण निरीक्षण करना अति अनिवार्य है तथा सिर्फ गुण मिलान के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित करने के परिणाम दुष्कर हो सकते हैं। </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"></span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /></span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"></span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"> सिर्फ गुण मिलान की विधि से ही 25 से अधिक गुण मिलने के कारण वर-वधू की शादी करवा दी गई तथा कुंडली मिलान के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया गया जिसके परिणाम स्वरुप इनमें से बहुत से केसों में शादी के बाद पति पत्नि में बहुत तनाव रहा तथा कुछ केसों में तो तलाक और मुकद्दमें भी देखने को मिले। अगर 28-30 गुण मिलने के बाद भी तलाक, मुकद्दमें तथा वैधव्य जैसी परिस्थितियां देखने को मिलती हैं तो इसका सीधा सा मतलब निकलता है कि गुण मिलान की प्रचलित विधि सुखी वैवाहिक जीवन बताने के लिए अपने आप में न तो पूर्ण है तथा न ही सक्षम। इसलिए इस विधि को कुंडली मिलान की विधि का एक हिस्सा मानना चाहिए न कि अपने आप में एक सम्पूर्ण विधि।<br /><br /><br />भारतीय ज्योतिष में कुंडली मिलान के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की विधि में मिलाए जाने वाले अष्टकूटों में नाड़ी और भकूट को सबसे अधिक गुण प्रदान किए जाते हैं। नाड़ी को 8 तथा भकूट को 7 गुण प्रदान किए जाते हैं। इस तरह अष्टकूटों के इस मिलान में प्रदान किए जाने वाले 36 गुणों में से 15 गुण केवल इन दो कूटों अर्थात नाड़ी और भकूट के हिस्से में ही आ जाते हैं। इसी से गुण मिलान की विधि में इन दोनों के महत्व का पता चल जाता है। नाड़ी और भकूट दोनों को ही या तो सारे के सारे या फिर शून्य गुण प्रदान किए जाते हैं, अर्थात नाड़ी को 8 या 0 तथा भकूट को 7 या 0 अंक प्रदान किए जाते हैं। नाड़ी को 0 अंक मिलने की स्थिति में वर-वधू की कुंडलियों में नाड़ी दोष तथा भकूट को 0 अंक मिलने की स्थिति में वर-वधू की कुंडलियों में भकूट दोष बन जाता है। भारतीय ज्योतिष में प्रचलित धारणा के अनुसार इन दोनों दोषों को अत्यंत हानिकारक माना जाता है तथा ये दोनों दोष वर-वधू के वैवाहिक जीवन में अनेक तरह के कष्टों का कारण बन सकते हैं और वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु का कारण तक बन सकते हैं। तो आइए आज भारतीय ज्योतिष की एक प्रबल धारणा के अनुसार अति महत्वपूरण माने जाने वाले इन दोनों दोषों के बारे में चर्चा करते हैं। </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"></span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />आइए सबसे पहले यह जान लें कि नाड़ी और भकूट दोष वास्तव में होते क्या हैं तथा ये दोनों दोष बनते कैसे हैं। नाड़ी दोष से शुरू करते हुए आइए सबसे पहले देखें कि नाड़ी नाम का यह कूट वास्तव में होता क्या है। नाड़ी तीन प्रकार की होती है, आदि नाड़ी, मध्या नाड़ी तथा अंत नाड़ी। प्रत्येक व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा की किसी नक्षत्र विशेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है। नक्षत्र संख्या में कुल 27 होते हैं तथा इनमें से किन्हीं 9 विशेष नक्षत्रों में चन्द्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है। उदाहरण के लिए :</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की आदि नाड़ी होती है :</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तर फाल्गुणी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा तथा पूर्व भाद्रपद। </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"></span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की मध्य नाड़ी होती है :</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्व फाल्गुणी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा तथा उत्तर भाद्रपद।</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की अंत नाड़ी होती है :</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />कृत्तिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाती, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती। </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"></span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /></span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"></span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"> गुण मिलान करते समय यदि वर और वधू की नाड़ी अलग-अलग हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 8 अंक प्राप्त होते हैं, जैसे कि वर की आदि नाड़ी तथा वधू की नाड़ी मध्या अथवा अंत। किन्तु यदि वर और वधू की नाड़ी एक ही हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 0 अंक प्राप्त होते हैं तथा इसे नाड़ी दोष का नाम दिया जाता है। नाड़ी दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार वर-वधू दोनों की नाड़ी आदि होने की स्थिति में तलाक या अलगाव की प्रबल संभावना बनती है तथा वर-वधू दोनों की नाड़ी मध्य या अंत होने से वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु की प्रबल संभावना बनती है। नाड़ी दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है :<br /><br />यदि वर-वधू दोनों का जन्म एक ही नक्षत्र के अलग-अलग चरणों में हुआ हो तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता।</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />यदि वर-वधू दोनों की जन्म राशि एक ही हो किन्तु नक्षत्र अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता।</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />यदि वर-वधू दोनों का जन्म नक्षत्र एक ही हो किन्तु जन्म राशियां अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता।</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />नाड़ी दोष के बारे में विस्तारपूर्वक जानने के बाद आइए अब देखें कि भकूट दोष क्या होता है। यदि वर-वधू की कुंडलियों में चन्द्रमा परस्पर 6-8, 9-5 या 12-2 राशियों में स्थित हों तो भकूट मिलान के 0 अंक माने जाते हैं तथा इसे भकूट दोष माना जाता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि वर की जन्म कुंडली में चन्द्रमा मेष राशि में स्थित हैं, अब :<br /><br />यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा कन्या राशि में स्थित हैं तो इसे षड़-अष्टक भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर कन्या राशि छठे तथा कन्या राशि से गिनती करने पर मेष राशि आठवें स्थान पर आती है। </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"></span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा धनु राशि में स्थित हैं तो इसे नवम-पंचम भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर धनु राशि नवम तथा धनु राशि से गिनती करने पर मेष राशि पांचवे स्थान पर आती है। </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"></span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />यदि कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्रमा मीन राशि में स्थित हैं तो इसे द्वादश-दो भकूट दोष का नाम दिया जाता है क्योंकि मेष राशि से गिनती करने पर मीन राशि बारहवें तथा मीन राशि से गिनती करने पर मेष राशि दूसरे स्थान पर आती है। </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"></span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />भकूट दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार षड़-अष्टक भकूट दोष होने से वर-वधू में से एक की मृत्यु हो जाती है, नवम-पंचम भकूट दोष होने से दोनों को संतान पैदा करने में मुश्किल होती है या फिर सतान होती ही नहीं तथा द्वादश-दो भकूट दोष होने से वर-वधू को दरिद्रता का सामना करना पड़ता है। भकूट दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है :</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो तो भकूट दोष खत्म हो जाता है। जैसे कि मेष-वृश्चिक तथा वृष-तुला राशियों के एक दूसरे से छठे-आठवें स्थान पर होने के बावजूद भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि मेष-वृश्चिक दोनों राशियों के स्वामी मंगल हैं तथा वृष-तुला दोनों राशियों के स्वामी शुक्र हैं। इसी प्रकार मकर-कुंभ राशियों के एक दूसरे से 12-2 स्थानों पर होने के बावजूद भी भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि इन दोनों राशियों के स्वामी शनि हैं।</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों के स्वामी आपस में मित्र हैं तो भी भकूट दोष खत्म हो जाता है जैसे कि मीन-मेष तथा मेष-धनु में भकूट दोष नहीं बनता क्योंकि इन दोनों ही उदाहरणों में राशियों के स्वामी गुरू तथा मंगल हैं जो कि आपसे में मित्र माने जाते हैं।</span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"> </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /><br />इसके अतिरिक्त अगर दोनो कुंडलियों में नाड़ी दोष न बनता हो, तो भकूट दोष के बनने के बावजूद भी इसका असर कम माना जाता है। </span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"></span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"><br /></span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;"></span><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;"> किन्तु इन दोषों के द्वारा बतायी गईं हानियां व्यवहारिक रूप से इतने बड़े पैमाने पर देखने में नहीं आतीं और न ही यह धारणाएं तर्कसंगत प्रतीत होती हैं। उदाहरण के लिए नाड़ी दोष लगभग 33 प्रतिशत कुंडलियों के मिलान में देखने में आता है कयोंकि कुल तीन नाड़ियों में से वर और वधू की नाड़ी एक होने की सभावना लगभग 33 प्रतिशत बनती है। इसी प्रकार की गणना भकूट दोष के विषय में भी करके यह तथ्य सामने आता है कि कुंडली मिलान की लगभग 50 से 60 प्रतिशत उदाहरणों में नाड़ी या भकूट दोष दोनों में से कोई एक अथवा दोनों ही उपस्थित होते हैं। और क्योंकि बिना कुंडली मिलाए विवाह करने वाले लोगों में से 50-60 प्रतिशत लोग ईन दोनों दोषों के कारण होने वाले भारी नुकसान नहीं उठा रहे इसलिए इन दोनों दोषों से होने वाली हानियों तथा इन दोनों दोषों की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। <br /><br />मेरे अपने अनुभव के अनुसार नाड़ी दोष तथा भकूट दोष अपने आप में दो लोगों के वैवाहिक जीवन में उपर बताई गईं विपत्तियां लाने में सक्षम नहीं हैं तथा इन दोषों और इनके परिणामों को कुंडली मिलान के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं के साथ ही जोड़ कर देखना चाहिए। नाड़ी दोष तथा भकूट दोष से होने वाले बुरे प्रभावों को ज्योतिष के विशेष उपायों से काफी हद तक कम किया जा सकता है। </span></b></span>
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/01410904281000248143noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-743727072460878608.post-78109876744163595442012-07-14T04:10:00.000-07:002012-07-14T04:10:12.591-07:00नव दुर्गा की आराधना.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="foto_mgshw" style="color: #5b010b; font-family: verdana; font-size: 11px;">
<span style="color: blue;"><div class="Normal" style="margin-bottom: 5pt; margin-top: 5pt;">
<span style="color: magenta;">जिस प्रकार सृष्टि या संसार का सृजन ब्रह्मांड के गहन अंधकार के गर्भ से नवग्रहों के रूप में हुआ , उसी प्रकार मनुष्य जीवन का सृजन भी माता के गर्भ में ही नौ महीने के अन्तराल में होता है। मानव योनि के लिए गर्भ के यह नौ महीने नव रात्रों के समान होते हैं , जिसमें आत्मा मानव शरीर धारण करती है।</span></div>
<div class="Normal" style="margin-bottom: 5pt; margin-top: 5pt;">
<span style="color: magenta;">नवरात्र का अर्थ शिव और शक्ति के उस नौ दुर्गाओं के स्वरूप से भी है , जिन्होंने आदिकाल से ही इस संसार को जीवन प्रदायिनी ऊर्जा प्रदान की है और प्रकृति तथा सृष्टि के निर्माण में मातृशक्ति और स्त्री शक्ति की प्रधानता को सिद्ध किया है। दुर्गा माता स्वयं सिंह वाहिनी होकर अपने शरीर में नव दुर्गाओं के अलग-अलग स्वरूप को समाहित किए हुए है।</span></div>
<div class="Normal" style="margin-bottom: 5pt; margin-top: 5pt;">
<span style="color: magenta;">शारदीय नवरात्र में इन सभी नव दुर्गाओं को प्रतिपदा से लेकर नवमी तक पूजा जाता है। इन नव दुर्गाओं के स्वरूप की चर्चा महर्षि मार्कण्डेय को ब्रह्मा जी द्वारा इस क्रम के अनुसार संबोधित किया है।</span></div>
<div class="Normal" style="margin-bottom: 5pt; margin-top: 5pt;">
<span style="color: red;">प्रथमं </span><span style="color: red;">शैलपुत्री </span><span style="color: red;">च </span><span style="color: red;">द्वितीयं </span><span style="color: red;">ब्रह्मचारिणी।</span></div>
<div class="Normal" style="margin-bottom: 5pt; margin-top: 5pt;">
<span style="color: red;">तृतीयं </span><span style="color: red;">चन्द्रघंटेति </span><span style="color: red;">कूष्माण्डेति </span><span style="color: red;">चतुर्थकम् </span><span style="color: red;">।।</span></div>
<div class="Normal" style="margin-bottom: 5pt; margin-top: 5pt;">
<span style="color: red;">पंचमं </span><span style="color: red;">स्क्न्दमातेति </span><span style="color: red;">षष्ठं </span><span style="color: red;">कात्यायनीति </span><span style="color: red;">च </span><span style="color: red;">।</span></div>
<div class="Normal" style="margin-bottom: 5pt; margin-top: 5pt;">
<span style="color: red;">सप्तमं </span><span style="color: red;">कालरात्रीति </span><span style="color: red;">महागौरीति </span><span style="color: red;">चाष्टमम् </span><span style="color: red;">।।</span></div>
<div class="Normal" style="margin-bottom: 5pt; margin-top: 5pt;">
<span style="color: red;">नवमं </span><span style="color: red;">सिद्धिदात्री </span><span style="color: red;">च </span><span style="color: red;">नवदुर्गाः </span><span style="color: red;">प्रकीर्तिताः </span><span style="color: red;">।।</span></div>
<div class="Normal" style="margin-bottom: 5pt; margin-top: 5pt;">
</div>
<div class="Normal" style="margin-bottom: 5pt; margin-top: 5pt;">
<span style="color: red;">प्रथम </span><span style="color: red;">दुर्गा </span><span style="color: red;">शैलपुत्री </span><span style="color: red;">:</span></div>
<div class="Normal" style="margin-bottom: 5pt; margin-top: 5pt;">
<span style="color: magenta;">पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में साक्षात शैलपुत्री की पूजा देवी के मंडपों में प्रथम नवरात्र के दिन होती है। इसके एक हाथ में त्रिशूल , दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है। यह नंदी नामक वृषभ पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है। शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण नवदुर्गा का सर्वप्रथम स्वरूप शैलपुत्री कहलाया है। यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है। घोर तपस्चर्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी हैं। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं , जो योग साधना तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। जम्मू - कश्मीर से लेकर हिमांचल पूर्वांचल नेपाल और पूर्वोत्तर पर्वतों में शैलपुत्री का वर्चस्व रहता है। आज भी भारत के उत्तरी प्रांतों में जहां-जहां भी हल्की और दुर्गम स्थली की आबादी है , वहां पर शैलपुत्री के मंदिरों की पहले स्थापना की जाती है , उसके बाद वह स्थान हमेशा के लिए सुरक्षित मान लिया जाता है ! कुछ अंतराल के बाद बीहड़ से बीहड़ स्थान भी शैलपुत्री की स्थापना के बाद एक सम्पन्न स्थल बल जाता है।</span></div>
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<span style="color: red;">द्वितीय </span><span style="color: red;">ब्रह्मचारिणी </span><span style="color: red;">:</span></div>
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<span style="color: magenta;">नवदुर्गाओं में दूसरी दुर्गा का नाम ब्रह्मचारिणी है। इसकी पूजा-अर्चना द्वितीया तिथि के दौरान की जाती है। सच्चिदानंदमय ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति कराना आदि विद्याओं की ज्ञाता ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता है। इसका स्वरूप सफेद वस्त्र में लिपटी हुई कन्या के रूप में है , जिसके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल विराजमान है। यह अक्षयमाला और कमंडल धारिणी ब्रह्मचारिणी नामक दुर्गा शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त है। अपने भक्तों को यह अपनी सर्वज्ञ संपन्नन विद्या देकर विजयी बनाती है ।</span></div>
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<span style="color: red;">तृतीय </span><span style="color: red;">चन्द्रघंटा </span><span style="color: red;">:</span></div>
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<span style="color: magenta;">शक्ति के रूप में विराजमान चन्द्रघंटा मस्तक पर चंद्रमा को धारण किए हुए है। नवरात्र के तीसरे दिन इनकी पूजा-अर्चना भक्तों को जन्म जन्मांतर के कष्टों से मुक्त कर इहलोक और परलोक में कल्याण प्रदान करती है। देवी स्वरूप चंद्रघंटा बाघ की सवारी करती है। इसके दस हाथों में कमल , धनुष-बाण , कमंडल , तलवार , त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र हैं। इसके कंठ में सफेद पुष्प की माला और रत्नजड़ित मुकुट शीर्ष पर विराजमान है। अपने दोनों हाथों से यह साधकों को चिरायु आरोग्य और सुख सम्पदा का वरदान देती है।</span></div>
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<span style="color: red;">चतुर्थ </span><span style="color: red;">कूष्मांडा </span><span style="color: red;">:</span></div>
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<span style="color: magenta;">त्रिविध तापयुत संसार में कुत्सित ऊष्मा को हरने वाली देवी के उदर में पिंड और ब्रह्मांड के समस्त जठर और अग्नि का स्वरूप समाहित है। कूष्माण्डा देवी ही ब्रह्मांड से पिण्ड को उत्पन्न करने वाली दुर्गा कहलाती है। दुर्गा माता का यह चौथा स्वरूप है। इसलिए नवरात्रि में चतुर्थी तिथि को इनकी पूजा होती है। लौकिक स्वरूप में यह बाघ की सवारी करती हुई अष्टभुजाधारी मस्तक पर रत्नजड़ित स्वर्ण मुकुट वाली एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में कलश लिए हुए उज्जवल स्वरूप की दुर्गा है। इसके अन्य हाथों में कमल , सुदर्शन , चक्र , गदा , धनुष-बाण और अक्षमाला विराजमान है। इन सब उपकरणों को धारण करने वाली कूष्मांडा अपने भक्तों को रोग शोक और विनाश से मुक्त करके आयु यश बल और बुद्धि प्रदान करती है।</span></div>
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<span style="color: red;">पंचम </span><span style="color: red;">स्कन्दमाता </span><span style="color: red;">:</span></div>
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<span style="color: magenta;">श्रुति और समृद्धि से युक्त छान्दोग्य उपनिषद के प्रवर्तक सनत्कुमार की माता भगवती का नाम स्कन्द है। अतः उनकी माता होने से कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री देवी को पांचवीं दुर्गा स्कन्दमाता के रूप में पूजा जाता है। नवरात्रि में इसकी पूजा-अर्चना का विशेष विधान है। अपने सांसारिक स्वरूप में यह देवी सिंह की सवारी पर विराजमान है तथा चतुर्भज इस दुर्गा का स्वरूप दोनों हाथों में कमलदल लिए हुए और एक हाथ से अपनी गोद में ब्रह्मस्वरूप सनत्कुमार को थामे हुए है। यह दुर्गा समस्त ज्ञान-विज्ञान , धर्म-कर्म और कृषि उद्योग सहित पंच आवरणों से समाहित विद्यावाहिनी दुर्गा भी कहलाती है।</span></div>
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<span style="color: red;">षष्टम </span><span style="color: red;">कात्यायनी </span><span style="color: red;">:</span></div>
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<span style="color: magenta;">यह दुर्गा देवताओं के और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई महर्षि ने उन्हें अपनी कन्या के स्वरूप पालन पोषण किया साक्षात दुर्गा स्वरूप इस छठी देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया। यह दानवों और असुरों तथा पापी जीवधारियों का नाश करने वाली देवी भी कहलाती है। वैदिक युग में यह ऋषिमुनियों को कष्ट देने वाले प्राणघातक दानवों को अपने तेज से ही नष्ट कर देती थी। सांसारिक स्वरूप में यह शेर यानी सिंह पर सवार चार भुजाओं वाली सुसज्जित आभा मंडल युक्त देवी कहलाती है। इसके बाएं हाथ में कमल और तलवार दाहिने हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है।</span></div>
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<span style="color: red;">सप्तम </span><span style="color: red;">कालरात्रि </span><span style="color: red;">:</span></div>
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<span style="color: magenta;">अपने महाविनाशक गुणों से शत्रु एवं दुष्ट लोगों का संहार करने वाली सातवीं दुर्गा का नाम कालरात्रि है। विनाशिका होने के कारण इसका नाम कालरात्रि पड़ गया। आकृति और सांसारिक स्वरूप में यह कालिका का अवतार यानी काले रंग रूप की अपनी विशाल केश राशि को फैलाकर चार भुजाओं वाली दुर्गा है , जो वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती है। इसकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर दूसरे हाथ में खड़क तलवार से युद्ध स्थल में उनका नाश करने वाली कालरात्रि सचमुच ही अपने विकट रूप में नजर आती है। इसकी सवारी गंधर्व यानी गधा है , जो समस्त जीवजंतुओं में सबसे अधिक परिश्रमी और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है। कालरात्रि की पूजा नवरात्र के सातवें दिन की जाती है। इसे कराली भयंकरी कृष्णा और काली माता का स्वरूप भी प्रदान है , लेकिन भक्तों पर उनकी असीम कृपा रहती है और उन्हें वह हर तरफ से रक्षा ही प्रदान करती है।</span></div>
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<span style="color: red;">अष्टम </span><span style="color: red;">महागौरी </span><span style="color: red;">:</span></div>
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<span style="color: red;"> </span><span style="color: magenta;">नवरात्र के आठवें दिन आठवीं दुर्गा महागौरी की पूजा-अर्चना और स्थापना की जाती है। अपनी तपस्या के द्वारा इन्होंने गौर वर्ण प्राप्त किया था। अतः इन्हें उज्जवल स्वरूप की महागौरी धन , ऐश्वर्य , पदायिनी , चैतन्यमयी , त्रैलोक्य पूज्य मंगला शारिरिक , मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी का नाम दिया गया है। उत्पत्ति के समय यह आठ वर्ष की आयु की होने के कारण नवरात्र के आठवें दिन पूजने से सदा सुख और शान्ति देती है। अपने भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप है। इसीलिए इसके भक्त अष्टमी के दिन कन्याओं का पूजन और सम्मान करते हुए महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं। यह धन-वैभव और सुख-शान्ति की अधिष्ठात्री देवी है। सांसारिक रूप में इसका स्वरूप बहुत ही उज्जवल , कोमल , सफेदवर्ण तथा सफेद वस्त्रधारी चतुर्भुज युक्त एक हाथ में त्रिशूल , दूसरे हाथ में डमरू लिए हुए गायन संगीत की प्रिय देवी है , जो सफेद वृषभ यानि बैल पर सवार है।</span></div>
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<span style="color: red;">नवम </span><span style="color: red;">सिद्धिदात्री </span><span style="color: red;">:</span></div>
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<span style="color: red;"> </span><span style="color: magenta;">नवदुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ और सिद्धि और मोक्ष देने वाली दुर्गा को सिद्धिदात्री कहा जाता है। यह देवी भगवान विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मी के समान कमल के आसन पर विराजमान है और हाथों में कमल शंख गदा सुदर्शन चक्र धारण किए हुए है। देव यक्ष किन्नर दानव ऋषि-मुनि साधक विप्र और संसारी जन सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्र के नवें दिन करके अपनी जीवन में यश बल और धन की प्राप्ति करते हैं। सिद्धिदात्री देवी उन सभी महाविद्याओं की अष्ट सिद्धियां भी प्रदान करती हैं , जो सच्चे हृदय से उनके लिए आराधना करता है। नवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा उपासना करने के लिए नवाहन का प्रसाद और नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करके जो भक्त नवरात्र का समापन करते हैं , उनको इस संसार में धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप है , जो सफेद वस्त्रालंकार से युक्त महा ज्ञान और मधुर स्वर से अपने भक्तों को सम्मोहित करती है। नवें दिन सभी नवदुर्गाओं के सांसारिक स्वरूप को विसर्जन की परम्परा भी गंगा , नर्मदा , कावेरी या समुद्र जल में विसर्जित करने की परम्परा भी है। नवदुर्गा के स्वरूप में साक्षात पार्वती और भगवती विघ्नविनाशक गणपति को भी सम्मानित किया जाता है।</span></div>
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