(१) यदि शरीर में हमेशा थकान व आलस भरा लगने लगे।
(२) नहाने-धोने से अरूचि होने लगे या नहाने का वक्त ही न मिले।
(३) नए कपड़े खरीदने या पहनने का मौका न मिले।
(४) नए कपड़े व जूते जल्दी-जल्दी फटने लगे।
(५) घर में तेल, राई, दाले फैलने लगे या नुकसान होने लगे।
(६) अलमारी हमेशा अव्यवस्थित होने लगे।
(७) भोजन से बिना कारण अरूचि होने लगें
(८) सिर व पिंडलियों में, कमर में दर्द बना रहे।
(९) परिवार में पिता से अनबन होने लगे।
(१०) पढ़ने-लिखने से, लोगों से मिलने से उकताहट होने लगे, चिड़चिड़ाहट होने लगे।
यदि ये लक्षण आप स्वयं में महसूस करें, तो शनि का उपाय करें-
तेल, राई, उड़द का दान करें। पीपल के पेड़ को सीचें, दीपक लगाएँ। हनुमान जी व सूर्य की आराधना करें, मांस-मदिरा का त्याग करें, गरीबों की मदद करें, काले रंग न पहनें, काली चीजें दान करें।
साढ़े साती का नाम ही हमारी नींद उड़ाने के लिए पर्याप्त होता है। शनि वैसे ही कठोर माना जाता है, उस पर साढ़े सात वर्ष उसका हमारी राशि से संबंध होना मुश्किल ही प्रतीत होता है।
वास्तव में साढ़े साती में आने वाले अशुभ फलों की जानकारी लेकर उनसे बचने हेतु अपने व्यवहार में आवश्यक परिवर्तन लाए जाएं तो साढ़ेसाती की तीव्रता कम की जा सकती है। साढ़ेसाती में मुख्यत: प्रतिकूल बातें क्या घटती हैं?
आइए देखें- पारिवारिक कलह, नौकरी में परेशानी, कोर्ट कचहरी प्रकरण, रोग, आर्थिक परेशानी, काम न होना, धोखाधड़ी आदि साढ़ेसाती के मूल प्रभाव है। इनसे बचने के पूर्व उपाय करके, नए खरीदी-व्यवहार टालकर, शांति से काम करके इन परेशानियों को टाला या कम किया जा सकता है। वैसे भी साढ़ेसाती के सातों वर्ष खराब हो, ऐसा नहीं है। जब शनि मित्र राशि या स्व राशि में हो, गुरु अनुकूल हो तो अशुभ प्रभाव घटता है।
मूल कुंडली में शनि ३,६,११ भाव में हो, या मकर, कुंभ, वृषभ, तुला, मिथुन या कन्या में हो तो साढ़ेसाती फलदायक ही होती है। यही नहीं यदि शनि पर गुरु की शुभ दृष्टि हो तो भी साढ़ेसाती से परेशानी नहीं होती। कुंडली में बुध-शनि जैसी शुभ युति हो तो कुप्रभाव नहीं मिलते।
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